मौजपुर के दुल्हों को विदा कर ले जाने लगी दुल्हनें

मौजपुर के दुल्हों को विदा कर ले जाने लगी दुल्हनें

नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफोर्मिंग आर्ट्स और भारतीय लोक कला मंडल के संयुक्त तत्वावधान में छठे राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव अल्फाज 2018 की तसरी संध्या पर टीम नाट्यांश के कलाकारों ने नाटक ‘किस्सा मौजपुर का’ का मंचन किया। पिछले छः वर्षो से पुर्णतया नारी शक्ति के विषय पर केन्द्रित राजस्थान का एक मात्र नाट्य महोत्सव अल्फ़ाज़, इस वर्ष भारतीय लोक कला मंडल के संस्थापक पद्मश्री देवीलाल सामर की पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें समर्पित है।

 

मौजपुर के दुल्हों को विदा कर ले जाने लगी दुल्हनें

नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफोर्मिंग आर्ट्स और भारतीय लोक कला मंडल के संयुक्त तत्वावधान में छठे राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव अल्फाज 2018 की तसरी संध्या पर टीम नाट्यांश के कलाकारों ने नाटक ‘किस्सा मौजपुर का’ का मंचन किया। पिछले छः वर्षो से पुर्णतया नारी शक्ति के विषय पर केन्द्रित राजस्थान का एक मात्र नाट्य महोत्सव अल्फ़ाज़, इस वर्ष भारतीय लोक कला मंडल के संस्थापक पद्मश्री देवीलाल सामर की पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें समर्पित है।

अल्फ़ाज़ 2018 के तीसरे दिन जयवर्धन द्वारा लिखित नाटक ‘किस्सा मौजपुर का’ का मंचन हुआ। नाटक ‘किस्सा मौजपूर का’ हमारी सामाजिक व्यवस्था पर कटाक्ष है। समाज को एकजुट करने के लिए बनाई गयी व्यवस्था का जब से मानव ने खुद के फायदे के लिये इस्तेमाल किया करना शुरू किया है, तब से पूरी सामाजिक व्यवस्था ही चरमराने लगी है।

नाटक में एक डॉक्टर खुद के फायदे के लिए एक गाँव में क्लिनिक खोलता है ,जिसमें लिंग परिक्षण किया जाता है और कन्या भ्रूण हत्या की जाती है। गाँव में जैसे ही ये बात फैलती है पूरा गाँव लड़के की चाह में क्लिनिक की ओर दौड़ पड़ता है। फिर एक समय ऐसा आता है जब गाँव लड़को से भर जाता है पर लड़की एक भी नहीं होती है।

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ऐसे हालात में कोई भी इस गाँव में अपनी बेटियो की शादी करवाने को राज़ी नहीं होता। गाँव में जवान हो रहे लड़को की शादी करने के लिए उन लोगों को पापड़ बेलने पड़ते हैं, जिन्होंने बेटी की शादी में सिर झुकने और रुपये खर्च होने का तर्क दिया था। अब उन्हें बेटो की शादी में दहेज़ देने के साथ उन्हें विदा भी करना पड़ा। बेटों की शादी के लिए बेटी के पिता की हर शर्त मानने की मजबूरी भविष्य दिखा गई कि बेटियां नहीं होंगी तो बेटों के लिए बहू लाने में दहेज देना होगा और लड़की घोड़े पर बैठकर बारात लेकर आएगी। बहू नहीं, बल्कि बेटा घर से विदा होगा। कोख में बेटियों को मार देने की प्रवृत्ति से सामाजिक तानाबाना टूट जाने को हास्य के जरिए दिखाया गया।

प्रस्तुति प्रबन्धक रेखा सिसोदिया ने बताया कि उदयपुर के नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफोर्मिंग आर्ट्स के कलाकारों में मंच पर अगस्त्य हार्दिक नागदा, राघव गुर्जरगौड़, अशफ़ाक नूर खान, नेहा पुरोहित, महेश जोशी, मोहमद रिजवान, धर्मेन्द्र टिलावत, सत्यजीत सिंह, राहुल सोलंकी, अमित श्रीमाली, मोहन शिवतारे, चक्षु सिंह रुपवत, वल्लभ शर्मा, मोहम्मद हाफिज, हरिश प्रजापत, परख जैन, दीपक जोशी, करण, इन्दर सिंह सिसोदिया, अक्षय गुर्जर, अंकित मौर्य, श्रीमयी एम् निर्मल, रूबी कुमारी, ईशा जैन, आकांक्षा द्विवेदी, कुमुद द्विवेदी ने बेहतरिन अभिनय कर दर्शको का मन मोह लिया।

मंच पार्श्व में संगीत भुवन शर्मा, मोहन शिवतारे, मंच डिजाईन योगिता सिसोदिया, वस्त्र विन्यास पलक कायस्थ, मनीषा शर्मा और मंच निमार्ण हेमंत अमेटा और अशफ़ाक़ नुर खान ने किया। इस नाटक में प्रकाश व्यवस्था और संचालन जयपुर से आये सहयोगी कलाकार शहजोर अली ने किया। नाटक का निर्देशन और प्रकाश डिज़ाईनिंग अब्दुल मुबीन खान की रही।  नाटक समाप्ति के बाद लोक कला मण्डल के पुर्व मानद सचिव रियाज़ तहसीन, वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ. लईक हुसैन नाट्यांश के कार्यक्रम संचालक मोहम्मद रिजवान ने कलाकारों को प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सभी का उत्साहवर्धन किया।

आज की प्रस्तुति

आज दिनांक 03 दिसम्बर 2018 को लोक कला मण्डल के मंच पर शाम 6ः30 बजे नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफोर्मिंग आर्ट्स, उदयपुर के कलाकारों के द्वारा तैयार नाटक ‘पागलखाना’ की प्रस्तुति होगी। जन सहभागीता से आयोजित इस नाट्य महोत्सव के सभी नाटकों मे दर्शको का प्रवेश निशुल्क रहेगा।

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