गीतांजली के नेफ्रोलोजिस्ट एवं न्यूरो वेसक्यूलर इंटरवेंशनल रेडियोलोजिस्ट ने किया राज्य में प्रथम सफल इलाज


गीतांजली के नेफ्रोलोजिस्ट एवं न्यूरो वेसक्यूलर इंटरवेंशनल रेडियोलोजिस्ट ने किया राज्य में प्रथम सफल इलाज

54 वर्ष की उम्र में दोनों किडनियां फेल हो चुकी थी। और डायलिसिस कैथेटर लगाने के सारे रास्ते ब्लाॅक हो चुके थे। ऐसे में ट्रांसलम्बर प्रक्रिया द्वारा मुख्य शिरा इंफीरियर वेना केव में स्थायी डायलिसिस कैथेटर लगाकर इलाज किया गया। यह सफल इलाज राज्य में प्रथम गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के नेफ्रोलोजिस्ट डाॅ जी के मुखिया एवं न्यूरो वेसक्यूलर रेडियोलोजिस्ट डाॅ सीताराम बारठ ने किया।

 
गीतांजली के नेफ्रोलोजिस्ट एवं न्यूरो वेसक्यूलर इंटरवेंशनल रेडियोलोजिस्ट ने किया राज्य में प्रथम सफल इलाज

उदयपुर, 54 वर्ष की उम्र में दोनों किडनियां फेल हो चुकी थी। और डायलिसिस कैथेटर लगाने के सारे रास्ते ब्लाॅक हो चुके थे। ऐसे में ट्रांसलम्बर प्रक्रिया द्वारा मुख्य शिरा इंफीरियर वेना केव में स्थायी डायलिसिस कैथेटर लगाकर इलाज किया गया। यह सफल इलाज राज्य में प्रथम गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के नेफ्रोलोजिस्ट डाॅ जी के मुखिया एवं न्यूरो वेसक्यूलर रेडियोलोजिस्ट डाॅ सीताराम बारठ ने किया।

चन्द्र कला टंडन (उम्र 54 वर्ष) पिछले तीन वर्षों से कई निजी हाॅस्पिटलों में डायलिसिस पर जीवन यापन कर रही थी। इसी दौरान डायलिसिस कराने के रास्ते ब्लाॅक हो गए और कई हाॅस्पिटल ने उन्हें किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी। इसी क्रम के चलते उन्होंने गीतांजली मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल के नेफ्रोलोजिस्ट डाॅ जी के मुखिया से परामर्श लिया।

डाॅ मुखिया ने बताया कि डायलिसिस के लिए फिस्टूला की जरुरत पड़ती है। परंतु इस रोगी में तीन बार फिस्टूला फेल हो चुका था। गले व पैर की नसों को भी डायलिसिस के लिए इस्तेमाल किया जा चुका था जिससे सारी नसें ब्लाॅक व संक्रमित हो चुकी थी और डायलिसिस कैथेटर लगाना संभव नहीं था। इस रोगी में पेरीटोनियल डायलिसिस भी नसों के संक्रमित होने एवं हर्निया की परेशानी के कारण संभव नहीं था। रोगी पिछले आठ दिनों से बिना डायलिसिस पर थी जिससे उसके शरीर में अधिक सूजन आ गई थी और पिशाब भी पास नहीं हो रहा था। रोगी पूरी तरह से बिस्तर बाध्य हो चुकी थी और कुछ खा-पी भी नहीं पा रही थी। इस रोगी का खून थोड़ा मोटा होने पर नसों में क्लोटिंग (नसों का अवरुद्ध हो जाना) बहुत जल्दी-जल्दी हो रही थी। जिस कारण शरीर के किसी भी हिस्से से डायलिसिस संभव नहीं हो पा रहा था।

तत्पश्चात् डाॅ मुखिया ने न्यूरो वेसक्यूलर इंटरवेंशनल रेडियोलोजिस्ट डाॅ सीताराम बारठ की मदद से रोगी का कैथ लेब में उपचार शुरु किया। सर्वप्रथम रोगी की एंजियोग्राफी की गई जिससे ग्राफ्ट लगाना संभव है या नहीं सुनिश्चित किया जा सके। परंतु गले की सारी नसें अवरुद्ध एवं संक्रमित थी जिस कारण ग्राफ्ट लगाना संभव नहीं था। इस कारण चिकित्सकों ने ट्रांसलम्बर प्रक्रिया, पीठ के रास्ते से डायलिसिस कैथेटर का प्रत्यारोपण, द्वारा इलाज करने का निर्णय लिया जिसके तहत रोगी के लिए दिल्ली से विशेष प्रकार का डायलिसिस कैथेटर मंगवाया गया। दोनों चिकित्सकों ने रोगी की मुख्य शिरा इंफीरियर वेना केव में स्थायी डायलिसिस कैथेटर लगा इलाज किया। इस प्रक्रिया में कुल तीन घंटें का समय लगा। इसमें चिकित्सक 15 सेंटीमीटर लम्बी सुई की मदद से नस तक पहुँचें और स्पेशल वायर लगाकर डायलिसिस कैथेटर को प्रत्यारोपित किया। यह प्रक्रिया काफी जोखिमपूर्ण थी क्योंकि रोगी का डायलिसिस न होने के कारण सूजन से वजन अधिक बढ़ गया था। परंतु रोगी अब स्वस्थ है और अपने रोज के कार्य आसानी से कर पा रही है। साथ ही डायलिसिस कैथेटर को कमर की तरफ से बाहर निकाला गया है, जिसके परिणामस्वरुप वह सीधा लेट कर डायलिसिस करा पा रही है।

डाॅ मुखिया ने बताया कि जिन रोगियों की किडनियां खराब हो जाती है उन्हें डायलिसिस पर रहने की सलाह दी जाती है। डायलिसिस दो प्रकार से संभव है, पहला हीमो डायलिसिस और दूसरा पेरीटोनियल डायलिसिस। साथ ही वह रोगी जिनके डायलिसिस कराने के रास्ते बंद हो चुके हो, फिस्टूला नहीं बन रहा हो, नसें ब्लाॅक या संक्रमित हो वह रोगी ट्रांसलम्बर प्रक्रिया द्वारा इलाज करा सकते है।

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