कैंसर जागरूकता के लिये 66 दिन मोटरसाईकिल पर पूरा देश घूूमे गौरव
पेश से वेडिंग प्लानर मूलतः जोधपुर निवासी फिलहाल उदयपुर में रहने वाले गौरव मोहनोत अकेले 66 दिन तक मोटरसाईकिल पर साढे़ 16 हजार किमी. की यात्रा कर आज पुनः उदयपुर पंहुचे। इस दौरान वे कश्मीर से कन्या कुमारी व अरूणाचल प्रदेश से लेकर लेह, भूटान, नेपाल तक की यात्रा की और हर जगह उन्हें बच्चों, अध्यापकों एवं जनता का अपार स्नेह मिला। यात्रा के दौरान करीब 40 हजार लोगों से मिलें और उन्हें उन सभी वस्तुओं के बारें में ब
पेश से वेडिंग प्लानर मूलतः जोधपुर निवासी फिलहाल उदयपुर में रहने वाले गौरव मोहनोत अकेले 66 दिन तक मोटरसाईकिल पर साढे़ 16 हजार किमी. की यात्रा कर आज पुनः उदयपुर पंहुचे। इस दौरान वे कश्मीर से कन्या कुमारी व अरूणाचल प्रदेश से लेकर लेह, भूटान, नेपाल तक की यात्रा की और हर जगह उन्हें बच्चों, अध्यापकों एवं जनता का अपार स्नेह मिला। यात्रा के दौरान करीब 40 हजार लोगों से मिलें और उन्हें उन सभी वस्तुओं के बारें में बताया जिनसे कैंसर होने की संभावना होती है।
मोहनोत ने बताया कि अपने जोधपुर निवासी सचिन श्रीवास्तव के मात्र ढाई वर्ष के बेटे दक्ष की ब्लड कैंसर से हुई मौत ने उन्हें इतना झकझोरा कि वे इससे बचने के लिये जनता को जागरूक करने के लिये देशभर की यात्रा पर निकल पड़े। यात्रा के दौरान ईश्वर ने भी उनका साथ दिया। बीच में लगातार पन्द्रह दिन तक बेंगलोर तक उन्हें लगातार बारीश का सामना करना पड़ा लेकिन बारीश भी उनकी राह में बाधा नहीं डाल पायी।
अनेक स्थानों पर वे स्कूली एवं काॅलेज के छात्रों से मिले और उन्हें हर प्रकार के नशे से दूर रहकर कैंसर को आमंत्रण नहीं देने के लिये जागरूक किया। उन्होंने बताया कि देश में कुल कैंसर रोगियों में से 40% कैंसर रोगी अकेले पंजाब में पाये जाते है क्योंकि वहां पेस्टिसाईड्स का भरपूर उपयोग होता है और कैंसर होने का यह सबसे बड़ा मुख्य कारण है। इसके अलावा 30% कैंसर जेनेटिक भी होता है जिससे सिर्फ जागरूकता से ही बचाव संभव है। बीकानेर में स्पेशल कैंसर हाॅस्पिटल है और वहां सिर्फ कैंसर रोगियों के स्पेशल रेल भी चलती है जिसमें सिर्फ कैंसर रोगी ही सवार होते है।
गौरव ने इस पूरी यात्रा का खर्च स्वयं वहन किया है। यात्रा के दौरान उन्हें चौथी स्टेज पर चल रहा एक ऐसा कैंसर रोगी भी मिला जिसे लंग्स का कैंसर था उसमें जीने की बहुत चाह थी लेकिन वह भी जनता था कि अब उसका जीवन लम्बा नहीं है। इसको लेकर वह भी काफी व्यथित हुए थे। 66 दिन में वे प्रतिदिन 300-400 किमी. चलते थे सिर्फ एक दिन ऐसा जब उन्होंने 700 किमी की यात्रा की थी। वे लेह के पास खरडूंगला भी गये जो समुद्रतल से 18320 मीटर की उंचाई पर स्थित है और वहां जाकर देश के सिपाहियों से मिले।
यात्रा के दौरान वे यात्रा के दौरान वे रतलाम, इंदौर, जलगांव, पुणे, कोल्हापुर, पंजिम, उडुपी, बेंगलुरु, कोयंबटूर, तिरूवनंनतपुरम, कन्याकुमारी, रामेश्वरम, पांडिचेरी, चेन्नई, ओंगोल, हैदराबाद, विजयवाड़ा, विशाखापत्तनम, ब्रह्मपुर, भुवनेश्वर, खड़गपुर, कोलकाता, दुमका, सिलीगुड़ी, अलीपुर द्वार, थिम्पू, कलिम्पोंग, दार्जिलिंग, काठमांडू, बुटवल, गोरखपुर, लखनऊ, लखीमपुर खरी, नैनीताल, कौसानी, कर्णप्रयाग, बद्रीनाथ, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, देहरादून, चंडीगढ़, अमृतसर, पठानकोट, चंबा, किश्तवाड़, श्रीनगर, द्रास, कारगिल, लेह, भी गये। इस कार्य में उनकी पत्नी प्रतिभा सिंघवी मोहनोत का अप्रत्यक्ष रूप से पूर्ण सहयोग रहा।
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