आत्मज्ञान की साधना के बिना जीवन का कोई औचित्य नहींः शिवमुनि


आत्मज्ञान की साधना के बिना जीवन का कोई औचित्य नहींः शिवमुनि

आचार्यश्री शिवमुनि महाराज ने महाप्रज्ञ विहार में आयोजित धर्मसभा में कहा कि आपको मानव जीवन मिला है इसमें अगर आपने आत्मज्ञान की साधना नहीं की तो आपके जीवन का कोई भी औचित्य नहीं रह जाता है। चाहे आप कितना ही धर्म-ध्यान करो, दूसरों की सेवा और पुण्य कार्य करो, कुछ नहीं होगा जब तक आप अपने स्वयं के लिए कुछ नहीं करोगे। स्वयं के कल्याण के भी कुछ करना चाहते हो तो आत्म साधना करो, आत्म चिन्तन करो।

 

आत्मज्ञान की साधना के बिना जीवन का कोई औचित्य नहींः शिवमुनिआचार्यश्री शिवमुनि महाराज ने महाप्रज्ञ विहार में आयोजित धर्मसभा में कहा कि आपको मानव जीवन मिला है इसमें अगर आपने आत्मज्ञान की साधना नहीं की तो आपके जीवन का कोई भी औचित्य नहीं रह जाता है। चाहे आप कितना ही धर्म-ध्यान करो, दूसरों की सेवा और पुण्य कार्य करो, कुछ नहीं होगा जब तक आप अपने स्वयं के लिए कुछ नहीं करोगे। स्वयं के कल्याण के भी कुछ करना चाहते हो तो आत्म साधना करो, आत्म चिन्तन करो।

उन्होंने कहा कि बाहरी खोजों से पलक झपकते ही तुम दुनिया का चक्कर लगा लगाओगे, लेकिन उससे होगा क्या। इसमें आपको शांति कहां प्राप्त होगी। यह आत्मज्ञान नहीं है। जब तक हमें तत्व का बोध और आत्म ज्ञान नहीं होगा हम बाहर की दुनिया में ऐसे ही भटकते रहेंगें।

Click here to Download the UT App

तत्व बोध के ज्ञान के अभाव में ही आज पुत्र बुढापे में माता- पिता की सेवा कहां करते हैं। पहले माता- पिता कहते थे बुढ़ापे में बेटा हमारी सेवा करेगा। लेकिन अब जमाना बदल गया है। बुढ़ापे में तो अब बेटा माता-पिता से अपनी औेलाद की सेवा करवाते हैं। जब उस पुत्र के पुत्र होता है तब उसे माता-पिता की याद आती है और वह माता- पिता को अपने घर ले जाता है कि अब आप इसे बड़ा करो और सम्भालो क्योंकि हमें तो फुर्सत है नहीं। बेटा- बहू दोनों कमाते हैं, नौकरी करते हैं और वो घर पर माता- पिता से नौकरी करवाते हैं। आज मनुष्य अपने ज्ञान से पृथ्वी से चान्द पर पहुच गया है उससे भी आगे निकल गया हो, समुद्र की गहराई भी नाप चुका है, लेकिन यह सारा बाहरी ज्ञान है, यह सभी बाहरी खोज है। इन खोजों से मनुष्य को शांति नहीं मिलती है।

युवाचार्यश्री महेन्द्रऋषि ने कहा कि शिक्षकों के प्रति हमेशा कृतज्ञाता का भाव रखना चाहिये। अच्छा शिक्षक और गुरू वो ही बन सकता है जो स्वयं एक अच्छा शिष्य बना हो। अगर आप स्वयं अच्छा सीखोगे तो ही दूसरों को अच्छा सिखा पाओगे। मनुष्य को हमेशा ज्ञानपिपासू बन कर रहना चाहिये। शिक्षा गुरूओं के प्रति मान-सम्मान और कृतज्ञता भाव से ही ली जा सकती है। जो गुरूओं- शिक्षकों का सम्मान नहीं करते हैं, उनके प्रति कृतज्ञाता का भाव नहीं रखते हैं वह जीवन में कभी सफल नहीं हो सकते हैं। न तो वह स्वयं संस्कारी हो सकते हैं और न ही वो किसे भी संस्कारों का पाठ पढ़ा सकते हैं।

To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on   GoogleNews |  Telegram |  Signal