जिन्हे शब्दों से प्यार है उसे किताबो से भी प्यार मिलेगा
प्रभा खेतान फाउंडेशन और कल्चरल रोंदेव्यु की कलम सीरीज के अंतर्गत शनिवार शाम को होटल रेडिसन ब्लू में हिंदी की कहानीकार, उपन्यासकार, और पत्रकारिता में अपने हाथ आज़मा चुकी लेखिका अनु सिंह चौधरी से खुले सत्र में चर्चा की गई जिसमे उसने पूछे गए सभी प्रश्नो के उत्तर बेहद संतुलित तरीके से दिए। अनु सिंह चौधरी ने मम्मा की डायरी, नीला स्कार्फ़ भी लिखी है। अनु सिंह मीडिया जगत, रेडियो, डिजिटल मीडिया, इंटरनेट ब्लॉगिंग से भी जुडी रह चुकी है।
प्रभा खेतान फाउंडेशन और कल्चरल रोंदेव्यु की कलम सीरीज के अंतर्गत शनिवार शाम को होटल रेडिसन ब्लू में हिंदी की कहानीकार, उपन्यासकार, और पत्रकारिता में अपने हाथ आज़मा चुकी लेखिका अनु सिंह चौधरी से खुले सत्र में चर्चा की गई जिसमे उसने पूछे गए सभी प्रश्नो के उत्तर बेहद संतुलित तरीके से दिए। अनु सिंह चौधरी ने मम्मा की डायरी, नीला स्कार्फ़ भी लिखी है। अनु सिंह मीडिया जगत, रेडियो, डिजिटल मीडिया, इंटरनेट ब्लॉगिंग से भी जुडी रह चुकी है।
अनु सिंह चौधरी की लिखी मम्मा की डायरी के बारे में बताते हुए कहती है यह किताब पेरेंटिंग गाइड नहीं है। न ही उनकी यह किताब कालजयी रचना है। मुमकिन है की एक बार पढ़ने के बाद इस किताब को आपकी शेल्फ पर बचे रहने की दरकार भी न हो। यह किताब उनके अनुभबों का लेखा जोखा है। उनके अपनी ज़िन्दगी के खट्टे मीठे अनुभवों पर आधारित है।
अनु सिंह ने बताया की इस किताब को लिखने की प्रेरणा उन्हें उनके बच्चो से मिली है। जब वह अपने जुड़वाँ बच्चो की परवरिश अपने ससुराल यानि गांव में कर रही थी तोह उस वक़्त उन्हें काफी सहारे की ज़रुरत महसूस हुई जो उन्हें परिवार, समाज से मिली और वक़्त काटने के लिए कुछ न कुछ करने के लिए लिखना शुरू किया और आज वह मम्मा की डायरी की शक्ल में सामने है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बतया की आज के वक़्त की सबसे ज़्यादा ज़रुरत परिवार के सभी सदस्यों के मध्य खुल कर संवाद (ओपन डायलॉग) स्थापित करना है। ताकि एक दूसरे की ज़रुरत और सीमाएं में रह कर उलझनों को सुलझाया जा सकता है। जो परिवार सुरक्षा का सबसे बड़ा घेरा होता है वहीँ परिवार जटिलताओं और उलझनों का साक्षी भी होता है। एक परिवार के तौर पर हम साथ रहते ज़रूर है लेकिन अपने अपने हिस्से के दर्द के साथ जीते है। जो दर्द हमें जोड़ सकता है वही दर्द हमे उम्र भर के लिए तन्हा छोड़ भी सकता है।
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में अनु ने कहा की इंटरनेट के युग में भी किताबो (हार्ड कॉपी) का भविष्य बरकरार रहेगा। जिन्हे शब्दों से प्यार है उसे किताबो से भी प्यार मिलेगा। हिंदी साहित्य को मिल रही चुनौती को लेकर अनु सिंह ने विचार व्यक्त किया की आने वाले कई दशकों तक बल्कि बहुत लम्बे समय तक हिंदी काबिज़ रहेगी। हम बोलते अंग्रेजी में है, लिखते अंग्रेजी में है लेकिन सोचते हिंदी में है, क्यूंकि यह हमारी मातृभाषा है। हालाँकि आज के युग में हिंदी की स्क्रिप्ट भी अंग्रेजी (टाइम्स न्यू रोमन) में लिखी होती है। यहाँ तक की हिंदी फिल्मो की स्क्रिप्ट भी लेकिन अभी भी मनोज वाजपेयी और बिग बी अमिताभ बच्चन जैसे कलाकार हिंदी लिपि में लिखी हुई स्क्रिप्ट स्वीकार करते है जो की काफी सुखद है।
इस अवसर पर प्रभा खेतान फाउंडेशन की स्वाति अग्रवाल, मूमल भंडारी, शुभ सिंघवी, श्रद्धा मुर्डिया, कनिका अग्रवाल और रिद्धिमा दोशी समेत अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
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