GMCH में हुआ डिज़ोलविंग स्टेंट हार्ट ब्लॉकेज का उपचार

GMCH में हुआ डिज़ोलविंग स्टेंट हार्ट ब्लॉकेज का उपचार

इस स्टेंट की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि प्रत्यारोपण के लगभग 3 साल बाद आर्टरी में घुल जाता है

 
GMCH

हार्ट ब्लोकेज वाले 62 वर्षीय मरीज का हुआ सफल ईलाज

दिल के मरीजों के लिए एक अच्छी खबर है अब उन्हें ब्लॉकेज के उपचार के लिए मेटेलिक स्टेंट्स लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि शरीर में घुलने वाले स्टेंट से सरल और सफल उपचार किया जा सकता है।   

गीतांजली मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल ने अत्याधुनिक बायोरिसोर्बेबल वैस्क्यूलर स्टेंट्स का प्रत्यारोपण कर 62 वर्षीय गंभीर हृदय रोगी का सफल उपचार किया है, यह स्टेंट लगभग तीन साल में शरीर में घुल जाता है। कम उम्र के हृदय रोगियों के लिए यह अच्छा उपचार विकल्प साबित हो सकता है। नवीनतम तकनीक का उपयोग करके कार्डियोलॉजिस्ट के डॉ. रमेश पटेल, डॉ. कपिल भार्गव, डॉ. डैनी मंगलानी व टीम ने यह सफलतम प्रोसिजर किया है।

डॉ. रमेश पटेल ने बताया कि 62 वर्षीय छाती में दर्द के मरीज को अस्पताल लाया गया| एंजियोग्राफी करने पर हार्ट में ब्लोकेज का पता लगा, रोगी की उम्र, सुरक्षा और सफलता को ध्यान में रखते हुए उन्हें बायोरिसोर्बेबल वैस्क्यूलर स्टेंट्स  सलाह दी गयी। मरीज की स्वीकृति के बाद ब्लॉकेज हटाने के लिए बायोरेसोर्बेबल स्टेंट लगाया गया। अभी मरीज पूरी तरह से स्वस्थ है। पूरा प्रोसिजर एंजियोप्लास्टिी कोरोनरी इमेजिंग (आई.वी.यू.एस) की सहायता से किया गया जिसमें पैर या हाथ की नस के माध्यम से ब्लॉकेज  को खोला जाता है। शरीर में घुलने वाले स्टंट जैसी आधुनिक उपचार सुविधा शुरू होने से हृदय रोगियों को शरीर में मेटल रह जाने की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।  

क्या है घुलने वाला स्टेंट  

डॉ. रमेश पटेल ने बताया इस स्टेंट की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि प्रत्यारोपण के लगभग 3 साल बाद आर्टरी में घुल जाता है। हृदय की कोरोनरी आर्टरी में ब्लॉकेज होने पर आमतौर पर एंजियोप्लास्टी या  बायपास सर्जरी द्वारा ठीक किया जाता है। बिना सर्जरी के उपचार के लिए एंजियोप्लास्टी द्वारा स्टेंट लगाना काफी कारगर उपचार है लेकिन कई मामलों में मरीज को स्टेंट से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं लेकिन अब नवीनतम तकनीक से लगाए गये स्टेंट कुछ समय बाद शरीर में घुल जाते हैं और आर्टरी सामान्य रूप से कार्य करने लगती है। पुरानी तकनीक से लगाये गये मेटेलिक फ्रेम से बने स्टेंट हमेशा आर्टरी में रहते हैं लेकिन बायो डिग्रेडेबल ऐसी तकनीक है जिसमें मेटेलिक फ्रेम का प्रयोग नहीं किया जाता, यह स्टेंट पोलीमर से बना होता है जो शरीर में इम्पलांट होने के लगभग  3 साल बाद अपने आप घुल जाता है। स्टेंट घुलने के बाद आर्टरी प्राकृतिक अवस्था में आ जाती है । कम आयु के मरीजों के लिए बायोडिग्रेडेबल स्टेंट से एंजियोप्लास्टी और भी अधिक उपयोगी हो सकती है।

गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल एक उच्च स्तरीय टर्शरी सेंटर है जहां एक ही छत के नीचे सभी विश्वस्तरीय सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यहाँ का कार्डियक सेंटर सभी अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है।

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