मुंशी प्रेमचंद जयंती पर कलाकारों द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित


मुंशी प्रेमचंद जयंती पर कलाकारों द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित

नाट्यांश नाटकीय एवं प्रदर्शनीय कला संस्थान की ओर से साहित्य सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 138 वीं जयंती के उपलक्ष्य में संस्था के कलाकारों द्वारा महाराष्ट्र समाज भवन में मुंशी जी के द्वारा लिखी गई विभिन्न साहित्यिक रचनाओं को कहानीकार बनकर सुन्दर अभिनय के रूप में प्रस्तुत किया गया और कहानियों के प्रदर्शन के माध्यम से मुंशी जी को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

 
मुंशी प्रेमचंद जयंती पर कलाकारों द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित

नाट्यांश नाटकीय एवं प्रदर्शनीय कला संस्थान की ओर से साहित्य सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 138 वीं जयंती के उपलक्ष्य में संस्था के कलाकारों द्वारा महाराष्ट्र समाज भवन में मुंशी जी के द्वारा लिखी गई विभिन्न साहित्यिक रचनाओं को कहानीकार बनकर सुन्दर अभिनय के रूप में प्रस्तुत किया गया और कहानियों के प्रदर्शन के माध्यम से मुंशी जी को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

आज की परिपाटी में जहाँ नयी पीढ़ी का रुझान किताबों से ज्यादा डिजिटल मीडिया पर है, वहीँ संस्था के युवा कलाकारों ने मुंशी जी की कहनियों को आज की नयी पीढ़ी के लिए तैयार किया। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य मुंशी जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ ही मुंशी जी की कहानियों में मौजूद भावों, मानवीय संवेदनाओं और नैतिक शिक्षाओं को कलाकारों और दर्शकों तक पहुँचाना है, संस्था के अध्यक्ष ने बताया की इस तरह की कहानियों का मंचन निकट भविष्य में पुनः होगा और ये क्रम यूँही चलता रहेगा।

मुंशी जी की लेखनी


कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने अपने जीवन में लगभग 200 से अधिक कहानियों का सफल लेखन किया है, मुंशी जी अपने काल में तात्कालिक परिस्थितियों, जन-जीवन, और सामाजिक विषमताओं – कुरीतियों को केंद्र में रखते हुए , लगभग हर एक बिंदु को अपनी कहानियों में सुन्दरता के साथ दर्शाया और उसका प्रभाव उनकी 138 वी पुण्यतिथि तक भी बरकरार देखा जा सकता है। मुंशी जी ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी और आगे भी इसी तरह करती रहेगी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उस समय भी उनकी कहानियां अपने साहित्यिक गुणों से भरपूर रहती जिसमें ज्ञान और मानवीय संवेदनाओं के विकास की कहीं कमी न लगती।


कहानियों में राघव गुर्जरगौड़ द्वारा ‘बड़े भाई साहब’ का मंचन किया। बड़े भाई साहब कहानी उन दो भाइयों की की कहानी है जिसमें से छोटा भाई अपनी पढाई लिखाई की जिम्मेदारियों से भागता है और तरह तरह की खेल प्रपंचों में समय को व्यतीत करता है वहीँ दूसरी ओर बड़ा भाई अपनी और छोटे भाई की जिम्मेदारियों को संभालता है। छोटा भाई अपने बचपन की कहानियां दर्शकों के सम्मुख प्रस्तुत करता है जिसमें वह अपने बड़े भाई के बारे में बचपन में हुए घटनाक्रम को चित्रित करता है जिसमें साफ़ झलकता है कि किस तरह बड़े भाई के प्रेम और रोष से मिले हुए शब्दों के सत्कार ने उसका जीवन बदल दिया।

मुंशी प्रेमचंद जयंती पर कलाकारों द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित

दुसरी कहानी अगस्त्य हार्दिक नागदा द्वारा प्रस्तुत की गई ‘सुभागी’, एक ऐसी लड़की की कहानी है जो बाल्यावस्था में ही विधवा हो जाती है और घर के बंटवारे के बाद उसके पिता और माता का स्वर्ग सिधारने तक कई दुखों के पहाड उसपर टूट पड़ते है जिसमें भी उसकी कोई सहायता के लिए कोई नहीं होता , पर इन सब हालातों में भी वो अपना सामर्थ्य बिलकुल नहीं खोती और सारे हालातों से लड़कर वो समाज में एक अच्छा मान सम्मान पाती है।

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‘सवा सेर गेहूं’ धर्मेन्द्र टिलावत द्वारा प्रस्तुत की गयी जो पुराने और आज के समाज में हमारे बीच मौजूद ऐसे ठगों की कहानी है जो सर्व गुण संपन्न होते हुए भी मजबूर और गरीब लोगों का शोषण करते है, कहानी में किसान शंकर को गाँव का धनी सेठ विप्र केवल सवा सेर गेहूं के सूद के चक्कर में उलझा कर और अपनी क्रूर चाल में फंसाकर उसके जीवन को गुलामी की बेड़ियों में जकड देता है अंततः शंकर और उसका पूरा परिवार गुलाम बन जाते हैं।

मुंशी प्रेमचंद जयंती पर कलाकारों द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित

रेखा सिसोदिया द्वारा अभिनीत कहानी ‘एक्ट्रेस’ एक मध्य आयु वर्ग की सफल रंगमंच की अदाकारा तारा देवी के जीवन का वर्णन करती है। तारा देवी को अपने एक प्रशंसक कुंवर निर्मलकांत चोधरी से प्यार हो जाता है, जो की शहर के सबसे बड़े रईस और बहुत बड़े विद्वान है। कुंवर साहब तारा देवी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखते है जिसे वो स्वीकार कर लेती है। परन्तु उसकी छद्म आवरण में ढकी जीवन शैली उसे इस बात को अहसास करती है की वो केवल रंग रोगन करी हुई गुडिया है जो सिर्फ मनोरंजन का साधन मात्र है। उसे लगता है कि वह अब एक नवयौवना नहीं रही है इसलिए वह कुंवर को खुश रखने में सक्षम नहीं होगी। विवाह की एक रात पहले वह कुंवर साहब के लिए एक पत्र और उनसे मिले उपहार छोड़कर चली जाती है और सांसारिक मोह-माया को त्यागकर एक नए सादे जीवन की शुरुआत करती है।

प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष्य में हुए कहानी प्रस्तुतीकरण में पार्श्व मंच में अब्दुल मुबीन खान, मुहम्मद रिजवान, योगिता सिसोदिया, रिषभ यादव ने सहयोग किया। अध्यक्ष श्री अशफाक नूर खान ने बताया की इस तरह की कहानियों की गतिविधि निकट भविष्य में जल्द ही होंगी और इसमें सभी कलाकारों को प्रशिक्षण दिया जायेगा जिससे की कहानी कहने की यह कला आगे बढ़ पाए और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी पहुँच बनाये। चूँकि बालमन पर कहानियों का ज्यादा प्रभाव पड़ता है तो कलाकारों की कोशिश रहेगी की आगामी प्रस्तुतियां बच्चों के समक्ष हो जो उन्हें नैतिक शिक्षा सिखाये और जीवन में कठिनाइयों से बचने की शिक्षा दे।

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