होटल व्यवसायियों के दबाव में, झील पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी

होटल व्यवसायियों के दबाव में, झील पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी

सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2017 में देश की दो लाख झीलों तालाबों इत्यादि नम भूमियों (वेटलैंड) को बचाने के लिए आदेश दिए थे। राजस्थान सहित पूरे देश मे इसकी पालना नही हो रही है।
 
होटल व्यवसायियों के दबाव में, झील पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी
उदयसागर झील में वर्धा समूह की होटल बनवाने के लिए इस झील को वेटलैंड की परिभाषा से बाहर रखने के कुत्सित प्रयास आज भी चालू है।

उदयपुर, 15 दिसंबर 2019। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2017 में देश की दो लाख झीलों तालाबों इत्यादि नम भूमियों (वेटलैंड) को बचाने के लिए आदेश दिए थे। राजस्थान सहित पूरे देश मे इसकी पालना नही हो रही है। राजस्थान में वेटलैंड पर अतिक्रमण व इनमें प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। 

रविवार को आयोजित झील संवाद में झील संरक्षण समिति के सहसचिव डॉ अनिल मेहता ने कहा कि वर्ष 2010 में तैयार सेटेलाइट नक्शे में राजस्थान के सवा दो हेक्टेयर से बड़े साढ़े  बारह हजार से अधिक झील तालाब अंकित है। 

राज्य के लगभग चौतीस हजार छोटे छोटे तालाबो का भी अंकन किया गया था। इनमें उदयपुर की महत्वपूर्ण झीले व तालाब अंकित है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार इनको नोटिफाई कर संरक्षण के उपाय करने थे। लेकिन सरकारी स्तर पर इसमें कोई प्रयास नही हुए। 

मेहता ने आरोप लगाया कि भूमाफ़िया व होटल व्यवसायियों के प्रभाव व दबाव में सरकारी तंत्र नही चाहता कि झीलों तालाबो पर वेटलैंड नियम लागू हो। 

मेहता ने कहा कि उदयसागर झील में वर्धा समूह की होटल बनवाने के लिए इस झील को वेटलैंड की परिभाषा से बाहर रखने के कुत्सित प्रयास आज भी चालू है।

झील विकास प्राधिकरण के सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि वेटलैंड नियमो से झीलों तालाबो के किनारे, उनके टापू व आस पास का क्षेत्र संरक्षित हो जाते है। तथा इन पर व्यावसायिक निर्माण रुक जाते है। यही कारण है कि राजस्थान में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी की जा रही है। पालीवाल ने कहा कि सेटेलाइट नक्शे में दिखने वाली हर वेटलैंड की वर्तमान स्थिति का आंकलन कर उस वेटलैंड पर विस्तृत डॉक्युमेंट बनाया जाए तथा संरक्षण के कार्य प्रारंभ किये जायें।

गांधी मानव कल्याण समिति के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि झीलो तालाबो को बचाया नही गया तो पेयजल से लेकर खेती व उद्योगों, किसी के भी लिए पानी नही मिल सकेगा। यह दुखद है कि होटल व्यावसायियो के हितों के लिए व्यापक जनहित व पर्यावरण को नुकसान पंहुचाया जा रहा है। यंहा तक कि  झीलों तालाबो को वेटलैंड नही माना जाए, ऐसे अवैज्ञानिक तर्क भी दिए जाते है।

पर्यावरण प्रेमी पल्लब दत्ता व क्रुणाल कोस्ठी ने कहा कि वेटलैंड हमारी जैव विविधता के आधार है व बाढ़ व सूखे सहित जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचाते है। इनका संरक्षण सर्वोच्च प्राथमिकता बनाना होगा।

इस अवसर पर बारी घाट पर श्रमदान कर कूड़े कचरे को हटाया गया। श्रमदान में मोहन सिंह चौहान, द्रुपद सिंह, क्रुणाल कोस्ठी, पल्लब दत्ता, धारित्र, तेज शंकर पालीवाल, नंद किशोर शर्मा ने भाग लिया।

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