जिले के कोटड़ा इलाके में जहाँ वक्सीनेशन को लेकर भ्रांतिया फैली हुई थी वहां वैक्सीन लगाना असंभव सा लग रहा वही अब वेक्सिनेशन के आंकड़े में सफलता मिलती जा रही है। पहले आदिवासियों में वैक्सीन को लेकर इतनी भ्रांतिया फैली हुई थी के जितने वैक्सीन लाते वही वापस लौटानी पड़ती थी लेकिन अभी इन दिनों में आदिवसीयो में आदिवासियों की संस्कृति और उनकी के तरीको ढोल-ताशो, गीतों के द्वारा इस बात की जागरूकता फैली जिसके वजह से उनके वैक्सीन की समझ आई और उनमे वैक्सीन को लेकर डर को दूर किया गया।
इस गतिविधि का इतना असर रहा की जहाँ 1 महीने में कोटड़ा में 3 प्रतिशत वैक्सीनेशन हुआ था वही अब 20 प्रतिशत वैक्सीनेशन हो चूका है। वैक्सीनेशन के प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है।
कोटड़ा में अब वैक्सीन की कमी नजर आने लगी है। जहाँ पहले के मुकाबले यहाँ टीका लगवाने के लिए काफी मशक्कत के बाद 66 ग्राम पंचायतो में सिर्फ एक दो ही पंचायत पर टीका कारण हुआ था वहीँ अब कोटड़ा में 20 - 20 दिनों तक एक भी टीका नहीं लग रहा और वैक्सीन की शॉर्टेज की वजह से लोगो को भी चक्कर करना पड रहा है।
कोटड़ा आधुनिक समय में भी पिछड़ा हुआ होने से टीकाकरण में देरी की एक वजह यह भी
कोटड़ा राजस्थान का इतना पिछड़ा हुआ इलाका है जहाँ स्वतंत्रता के 70 साल बाद बिजली पहुंची। ऐसे इलाको में शिक्षा और तकनीक के अभाव की वजह से आज भी यहाँ ढोल गीत के ज़रिये वैक्सीनेशन की जागरूकता फैलाई जा रही है आदिवासियों को उनके तरीको से वेक्सीशन के बारे में उनको समझने में यह तरीका काफी कारगर साबित हुआ है।
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