शराबखोरी के विरुद्ध संगठित मातृशक्ति की जीत

शराबखोरी के विरुद्ध संगठित मातृशक्ति की जीत

काछबली, मंडावर एवं बरजाल की साहसी महिलाओं ने समाज सुधार की दिशा में कदम बढ़ा पुरुष समाज को चैंका दिया। इसी घटना से प्रेरित हो डाॅ. महेन्द्र कर्णावट, उनके परिवार एवं गांधी सेवा सदन परिजनों ने कदम बढ़ाये और शराबबंदी के पक्ष में भारी मतदान करने की अपील के साथ काछबली, मंडावर एवं बरजाल के एक-एक घर पर दस्तक दी। शराबबंदी के पक्ष में डाॅ. कर्णावट अगुवाई में गांधी सेवा सदन के विद्यार्थियों, शिक्षक-शिक्षिकाओं एवं कार्यकर्ताओं ने अणुव्रत कर्मियों के साथ रह जिस तरह से प्रचार-प्रसार किया वह काछबली, मंडावर एवं बरजाल में शराबबंदी अभियान का स्वर्णिम पृष्ठ है।

 

शराबखोरी के विरुद्ध संगठित मातृशक्ति की जीत

विश्व की गम्भीर समस्याओं में प्रमुख है शराब का बढ़ता प्रचलन और उससे होने वाली अकाल मौते। सरकार भी विवेक से काम नहीं ले रही है। शराबबन्दी का नारा देती है, नशे की बुराइयों से लोगों को आगाह भी करती है और शराब का उत्पादन भी बढ़ा रही है। राजस्व प्राप्ति के लिए जनता की जिन्दगी से खेलना क्या किसी लोककल्याणकारी सरकार का काम होना चाहिए? गुजरात प्रांत में कुल शराबबन्दी है, क्योंकि वह महात्मा गांधी का गृह प्रदेश है। क्या पूरा देश गांधी का नहीं है? वे तो राष्ट्र के पिता थे, जनता के बापू थे। इसी बात को लेकर राजस्थान में शराबबंदी के लिये सार्थक प्रयत्न हुए है। काछबली, मंडावर एवं बरजाल जैसे अनेक स्थानों पर अनेक बाधाओं को चीर कर एक नया इतिहास बना है। अभी भी शराब के खिलाफ जंग जारी है और इस जंग के नायक है डाॅ. महेन्द्र कर्णावट।

आये दिन जगह-जगह शराब के ठेकों पर जहरीली शराब के पीने से सैकड़ों लोग मर जाते हैं। आए दिन आप देखते हैं कि हर सड़क पर नशा करके वाहन चलाने वाले ड्राईवर दुर्घटना के शिकार हो जाते है व दूसरे निर्दोष राहगीर या यात्री भी मारे जाते हैं। कितने ही परिवारों की सुख-शांति परिवार का मुखिया शराब के साथ पी जाता है। बूढ़े मां-बाप की दवा नहीं, बच्चों के लिए कपड़े-किताब नहीं, पत्नी के गले में मंगलसूत्र नहीं, चूल्हे पर दाल-रोटी नहीं, पर बोतल रोज चाहिए। अस्पतालों के वार्ड ऐसे रोगियों से भरे रहते है जो अपनी जवानी नशे को भेंट कर चुके होते हैं। ये तो वे उदाहरणों के कुछ बिन्दु हैं, वरना करोड़ों लोग अपनी अमूल्य देह में बीमार फेफड़े और जिगर लिए एक जिन्दा लाश बने जी रहे हैं पौरुषहीन भीड़ का अंग बन कर।

शराब के दुष्परिणामों के प्रति सचेत करने के लिए तथा विश्व की इस ज्वलंत समस्या के प्रति लोगों में भिज्ञ कराने के लिए अणुव्रत आन्दोलन ने अनूठे उपक्रम किये है। अणुव्रत आन्दोलन समाज व राष्ट्रीय जीवन में व्याप्त अनेक बुराइयों के खिलाफ अपने कार्यक्रमों एवं अभियानों के माध्यम से आवाज उठाता रहा है। इन दिनों राजस्थान में अणुव्रत आन्दोलन के एक सक्रिय कार्यकर्ता डाॅ. महेन्द्र कर्णावट शराब के बढ़ते प्रचलन को नियंत्रित करने के लिये एक शंखनाद किया है। इस शंखनाद ने काछबली, मंडावर एवं बरजाल में एक ऐसी क्रांति को घटित किया है, जिसकी प्रतिध्वनियां चहुं ओर सुनाई दे रही हैं। डाॅ. कर्णावट के प्रयासों ने महिलाओं के हाथों में क्रांति का बिगुल थमा दिया है।

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अरावली पर्वतमाला की उपत्यकाओं में अवस्थित राजसमंद जिले की भीम तहसील का मंडावर ग्राम जिसके एक छोर पर राजस्थान की प्रथम शराब मुक्त पंचायत काछबली है तो दूसरे छोर पर अजमेर जिले का इतिहास प्रसिद्ध टाडगढ़। पर्वतमाला के उस पार है मारवाड़ प्रदेश। मेवाड़ और मारवाड़ की मिली-जुली संस्कृति की झलक यहां दिखाई देती है। सरपंच बनते ही महिलाओं ने शराबबंदी के विरुद्ध वातावरण बनाना प्रारंभ किया। काछबली सरपंच गीतादेवी ने अगुवाई की और काछबली को 30 मार्च 2016 को देश की पहली शराब ठेका मुक्त पंचायत होने का गौरव प्राप्त हुआ। काछबली का ही अनुसरण करते हुए मंडावर, ठीकरवास, थानेटा, बरार, बरजाल इत्यादि गांवों ने शराब विरोधी अभियान प्रारंभ किए।

शराबखोरी के विरुद्ध मंडावर में सामाजिक मूल्यों और संगठित मातृशक्ति की जीत हुई है। स्त्री जब ठान लेती है तो वह पहाड़ को भी हिला सकती है। मंडावर की प्रतिध्वनि धीरे-धीरे चहुं और फैलेगी और महात्मा गांधी एवं आचार्य तुलसी के नशामुक्त समाज का सपना साकार होगा। संकल्पी लोगों के छोटे समूह ने इतिहास की धारा को बदला और मंडावर ग्राम पंचायत ने राजस्थान की तृतीय शराब ठेका मुक्त पंचायत होने का गौरव प्राप्त किया। शराबबंदी मुहिम में मगरा क्षेत्र की नारी शक्ति ने नेतृत्व किया और समाज उनके पीछे चल पड़ा। सुखी परिवार और स्वस्थ समाज की पहली शर्त है – व्यसनमुक्त जीवन। मंडावर की विजय इस बात का संकेत है कि मगरावासियों की सोच बदल रही है। शराबबंदी मुहिम की गूंज सर्वत्र गूंजने लगी है।

राजस्थान के ही राजसमंद, पाली, जोधपुर, बीकानेर, अलवर, भरतपुर, जयपुर इत्यादि जिलों मेें महिलाओं ने शराबबंदी के पक्ष में हुंकार भरी है तो बिहार राज्य में मुख्यमंत्री ने अपना वादा निभाते हुए संपूर्ण राज्य में शराबबंदी करने का साहसिक निर्णय लिया है। इस तरह काछबली की आवाज पूरे देश में प्रतिध्वनित हो रही है जो हमारे लिए गौरवास्पद है।

राजस्थान में डाॅ. महेन्द्र कर्णावट ने एक नया इतिहास रचा है। इसके लिये उन्हें व्यापक संघर्ष करना पड़ा है। विशेषतः प्रशासनिक एवं राजनैतिक असहयोग ने उनके सामने अनेक चुनौतियां खड़ी की हैं। पहली बार 12 अगस्त 2017 को शराबबंदी के लिए हुए मतदान में मतदानक कर्मियों ने खेल खेला और हाथ लगी पराजय। लेकिन हजारों नम आंखों ने पुनः आत्मविश्वास से भर सिंहनाद किया। इस संकल्प के साथ की प्रशासन कितने ही प्रयत्न कर लें, बरजाल में शराब का ठेका नहीं खुलेगा। प्रशासनिक एवं राजनैतिक असहयोग भी काछबली, मंडावर एवं बरजाल वासियों के आत्मविश्वास को नहीं हिला सका। अपने पूर्वज हालुजी की तरह चट्टान बन कर खड़े हो गए बरजाल के नर-नारी शराब के खिलाफ।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यही स्वप्न था कि गांव के निर्णय गांव के लोग लें, और स्व स्तर पर क्रियान्वित करें। बरजालवासियों ने राष्ट्रपिता के स्वप्न को सत्याग्रह के माध्यम से साकार कर दिखाया चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष 2017 में और रचा नया इतिहास स्वस्थ समाज निर्माण का। गांधी सेवा सदन, अणुव्रत परिवार, मजदूर किसान शक्ति संगठन, महिला मंच इत्यादि संस्थाओं के कार्यकर्ता काछबली, मंडावर एवं बरजालवासियों के साथ कदम मिलाकर शराबबंदी सत्याग्रह में साथ चले हैं।

काछबली, मंडावर एवं बरजाल की साहसी महिलाओं ने समाज सुधार की दिशा में कदम बढ़ा पुरुष समाज को चैंका दिया। इसी घटना से प्रेरित हो डाॅ. महेन्द्र कर्णावट, उनके परिवार एवं गांधी सेवा सदन परिजनों ने कदम बढ़ाये और शराबबंदी के पक्ष में भारी मतदान करने की अपील के साथ काछबली, मंडावर एवं बरजाल के एक-एक घर पर दस्तक दी। शराबबंदी के पक्ष में डाॅ. कर्णावट अगुवाई में गांधी सेवा सदन के विद्यार्थियों, शिक्षक-शिक्षिकाओं एवं कार्यकर्ताओं ने अणुव्रत कर्मियों के साथ रह जिस तरह से प्रचार-प्रसार किया वह काछबली, मंडावर एवं बरजाल में शराबबंदी अभियान का स्वर्णिम पृष्ठ है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की शराब व स्वास्थ्य स्टेटस रिपोर्ट के अनुसार विश्व में वर्ष 2012 में शराब से 33 लाख मौतें हुईं। विश्व में होने वाली सभी मौतों में से 5.9 प्रतिशत मौतें शराब के कारण हुई है। वर्ष 2012 बीमारियों व चोटों का जितना बोझ था उसमें से 5.1 प्रतिशत शराब उपयोग के कारण था। इस रिपोर्ट ने यह भी बताया है कि 200 तरह की बीमारियों व चोटों में शराब का हानिकारक उपयोग एक कारण है। लीवर सिरोसिस व अनेक तरह के कैंसर मे और विशेषकर दुर्घटनाओं में लगने वाली चोटों में शराब एक महत्वपूर्ण कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस विषय पर स्टेटस रिपोर्ट के अनुसार हाल के समय में एल्कोहल उपभोग व तपेदिक तथा एचआईवी/एड्स जैसे संक्रामक रोगों के फैलाव में भी कारणात्मक संबंध स्थापित हुआ है।

पहले अधिक शराब पीने को ही मस्तिष्क की क्षति याद रखने की क्षमता पर प्रतिकूल असर व डिमेनशिया से जोड़ा जाता था पर अब आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी व यूनिवर्सिटी काॅलेज लंदन के नए अनुसंधान (ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित) से पता चलता है कि अपेक्षाकृत कम शराब पीने से भी मस्तिष्क की ऐसी क्षति होती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में 1300 महिलाओं के अध्ययन से भी यही स्थिति सामने आती है। नशीली दवाओं, एल्कोहल व एडिक्टिव बिहेवियर के विश्वकोष के अनुसार मौत होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में से 44 प्रतिशत में एल्कोहल की भूमिका पायी गई है। दुर्घटना में मरने वाले 50 प्रतिशत तक मोटर साइकिल चालकों के शराब के नशे में होने की संभावना पायी गई है। इस विश्वकोष के अनुसार घर में होने वाली दुर्घटनाओं में 23 से 30 प्रतिशत में एल्कोहल की भूमिका होती है। आग लगने व जलने से मौत होने की 46 प्रतिशत दुर्घटनाओं में एल्कोहल की भूमिका होती है। इन आंकडों की रोशनी में शराब किस तरह व्यक्ति, परिवार, समाज एवं राष्ट्र के लिये घातक है, सहज अनुमान लगाया जा सकता है।

राजस्थान में शराबबंदी का एक नया इतिहास रचा गया है, इसके लिये डाॅ. महेन्द्र कर्णावट लम्बे समय से अपने डाक्टरी के पेशा को छोड़कर शराबमुक्त समाज को निर्मित करने में लगे हैं। उन्होंने हजारों व्यक्तियों को शराब का सेवन न करने के संकल्प करवाए हैं। हजारों व्यक्तियों को शराब मुक्ति की ओर सोचने को प्रेरित किया है एवं बदलाव की भूमिका बनायी है। शराब के नशे की आदत कांच की तरह नहीं टूटती, इसे लोहे की तरह गलाना पड़ता है। यह सत्य है कि नशा मुक्ति की सशक्त स्थिति पैदा नहीं की जा सकती पर नशे के प्राणघातक परिणामों के प्रति ध्यान आकर्षित किया जा सकता है। पक्षी भी एक विशेष मौसम में अपने घोंसले बदल लेते हैं। पर मनुष्य अपनी वृत्तियां नहीं बदलता। वह अपनी वृत्तियां तब बदलने को मजबूर होता है जब दुर्घटना, दुर्दिन या दुर्भाग्य का सामना होता है।

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