संसार के सागर में भटकने से नही होगा कल्याणः शिवमुनि

संसार के सागर में भटकने से नही होगा कल्याणः शिवमुनि

महाप्रज्ञ विहार में आचार्य शिवमुनि के सानिध्य में चले रहे सप्त दिवसीय आतम ध्यान शिविर का मंगलवार को समापन हुआ। इस अवसर पर युवाचार्यश्री महेन्द्रऋषि सहित कई शिविरार्थियों ने अपने-अपने अनुभव साझा किये। धर्मसभा में आचार्यश्री शिवमुनि ने कहा कि आत्म साधना नहीं करेंगे तो आत्मा का पोषण नहीं होगा। अगर आत्मा पोषण नहीं होगा तो आपके कर्मबन्ध नहीं टूटेंगे। अगर ऐसा नहीं होगा तो आप संसार सागर में भटकते ही रहोगे आपका कल्याण नहीं होगा। आत्म साधना से ही यह भेद पता चलता है कि शरीर अलग है और आत्मा अलग हैं। हमें शरीर का नहीं आत्मा का कल्याण करना है।

 

संसार के सागर में भटकने से नही होगा कल्याणः शिवमुनि

महाप्रज्ञ विहार में आचार्य शिवमुनि के सानिध्य में चले रहे सप्त दिवसीय आतम ध्यान शिविर का मंगलवार को समापन हुआ। इस अवसर पर युवाचार्यश्री महेन्द्रऋषि सहित कई शिविरार्थियों ने अपने-अपने अनुभव साझा किये। धर्मसभा में आचार्यश्री शिवमुनि ने कहा कि आत्म साधना नहीं करेंगे तो आत्मा का पोषण नहीं होगा। अगर आत्मा पोषण नहीं होगा तो आपके कर्मबन्ध नहीं टूटेंगे। अगर ऐसा नहीं होगा तो आप संसार सागर में भटकते ही रहोगे आपका कल्याण नहीं होगा। आत्म साधना से ही यह भेद पता चलता है कि शरीर अलग है और आत्मा अलग हैं। हमें शरीर का नहीं आत्मा का कल्याण करना है।

उन्होंने कहा कि यह आत्म साधना शिविर सिर्फ शिविर नहीं है। यह महावीर की साधना है, आत्मा की साधना है, भेद विज्ञान की साधना है, यह स्वयं में स्थिर होने और आत्मा में डूबने की साधना है। आत्मा के बिना देह कुछ नहीं है। देह का मूल है आत्मा। जेसे हम पेड़ के पत्तों को ही पानी पिलाएंगे, उकी जड़ों को पानी नहीं देंगे तो पेड़ सूख जाएगा उी तरह से हम सिर्फ और सिर्फ देह के लिए ही सब कुछ करेंगे, क्योंकि आत्मा तो अजर अमर है, शरीर की तो आयुष निर्धारित है लेकिन आत्मा तो अनन्तकालीन है। मैं कौन हूं, कहां से आया हूं, मुझे कहां जाना है यह जानना ही आतम साधना शिविर है।

Click here to Download the UT App

आचार्यश्री ने कहा कि आत्म साधना से आत्म बल और आत्म निर्णय लेने में परिपक्वता आती है। हम सभी एक हैं हमारे पंथ अलग हो सकते हैं लेकिन महावीर की साधना एक है। आत्म साधना मानव मात्र के लिए है और यह साधना सभी को करके जीवन कल्याण करना हैं। इस साधना से मान, माया, लोभ, क्रोध और कषायों से मुक्ति मिलती है। ध्यान तो उल्लास और आनन्द का विषय है। आत्मा में अष्ट गुण और अष्ट कर्म हैं, हमें सभी की साधना करनी है।

युवाचार्यश्री महेन्द्रऋषि ने कहा कि आत्म ध्यान शिविर आत्मा से परमात्मा तक जाने का मार्ग है। जो व्यक्ति एक बार आतमध्यान शिविर कर लेता है फिर उसे भीतर आत्मा तक का अनुभव होेने लगता है और उसे बाहर की वस्तुओं से अपने आप ही अनासक्ति होने लगती है। जो व्यक्ति भीतर डूब कर आत्मा की साधना करने लगता है उसके जीवन का कल्याण तो होता ही है उसे प्रभु के निकट जाने का भी अवसर मिलता है।

चातुर्मास संयोजक विरेन्द्र डांगी ने बताया कि शिविर में 200 से ज्यादा शिविरार्थियों ने भाग लिया। धर्मसभा में देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये श्रींसंघ के पदाधिकारियों एवं श्रावकों ने आचार्यश्री के समक्ष उपस्थित होकर क्षमा याचना की। बाहर से आये तेरापंथ युवक परिषद के कमल सेठिया ने भजन की प्रस्तुति दी। लुधियाना से आई साधक रेणु जैन ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on   GoogleNews |  Telegram |  Signal