हमें अपना मीडिया बनाना होगा

हमें अपना मीडिया बनाना होगा

छठे उदयपुर फ़िल्म फेस्टिवल की शुरुआत युवा फ़िल्मकारों अशफ़ाक, फुरकान और विशु द्वारा निर्मित फ़िल्म ‘लिंच नेशन से हुई। ‘लिंच नेशन’ पिछले वर्षों देश भर में धर्म और जाति के नाम पर हुई हिंसा से प्रभावित लोगों की आप बीती का बेहद जरुरी दस्तावेज़ है जो देश में चल रही नयी लहर को ठीक से रेखांकित कर पाती है।

 

हमें अपना मीडिया बनाना होगा

छठे उदयपुर फ़िल्म फेस्टिवल की शुरुआत युवा फ़िल्मकारों अशफ़ाक, फुरकान और विशु द्वारा निर्मित फ़िल्म ‘लिंच नेशन से हुई। ‘लिंच नेशन’ पिछले वर्षों देश भर में धर्म और जाति के नाम पर हुई हिंसा से प्रभावित लोगों की आप बीती का बेहद जरुरी दस्तावेज़ है जो देश में चल रही नयी लहर को ठीक से रेखांकित कर पाती है।

फ़िल्म पर बातचीत शुरू होने से पहले उदयपुर फिल्म सोसाइटी की मनीषा, नेहा और मनीष ने स्मृति चिन्ह देकर फिल्मकारों को सम्मानित किया। फिल्म के बाद हुई बातचीत दो युवाओं की इस आत्मस्वीकृति से हुई कि आज इस फिल्म को देखने के बाद हमारी समझदारी में बहुत इजाफा हुआ है और हमारे कई पूर्वाग्रह ख़त्म भी हुए हैं। एक श्रोता ने फिल्मकारों को बधाई देते हुए इस तरह के विमर्श को बड़े पैमाने पर आम लोगों के बीच ले जाने का अनुरोध किया।

एक सवाल यह भी आया कि लिंचिंग करने वाला समूह कौन है इस पर फिल्मकारों ने जवाब दिया कि लिंचिग को किसी व्यक्ति विशेष या समूह तक सीमित नही किया जा सकता बल्कि यह एक विचार है जिसका बड़े पैमाने पर प्रतिरोध किया जाना चाहिए। सत्र के अंत में फिल्मकारों ने दर्शकों को इस बात के लिए प्रेरित किया कि सच जानने के लिए हमें अपना मीडिया बनाना होगा।

दूसरे दिन की दूसरी लघु फ़िल्म ‘गुब्बारे’ मथुरा के स्वशिक्षित फिल्मकार मोहम्मद गनी की दूसरी कथा फिल्म थी। यह फिल्म 9 मिनट में मानवीयता के गुण को बहुत सुन्दर तरीके से पकड़ने में कामयाब रहती है और हमारी दुनिया को और सुन्दर बनाने में मददगार साबित होती है। यह गुब्बारा बेचने वाली एक छोटी बच्ची की कहानी है जो अपने खेलने के लिए भी एक भी गुब्बारा बचा नही पाती और जिसे उसका एक बुजुर्ग खरीददार फिर से हासिल करने की कोशिश करता है।

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तीसरी फ़िल्म युवा फिल्मकार शिल्पी गुलाटी और जैनेद्र दोस्त द्वारा निर्मित दस्तावेज़ी फ़िल्म ‘नाच भिखारी नाच थी’ यह फ़िल्म प्रसिद्ध लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के साथ काम किये चार नाच कलाकारों की कहानी के बहाने भिखारी ठाकुर की कला को समझने का बेहतर माध्यम बनती है। ‘नाच भिखारी नाच’ सत्र का संचालन एस एन एस जिज्ञासु ने किया।

चौथी फ़िल्म उन्नीस सौ सत्तासी में बनी मशहूर दस्तावेज़ी फ़िल्म ‘बाबू लाल भुइयां की कुरबानी’ थी जिसका निर्देशन मंजीरा दत्ता ने किया है। समारोह का एक महत्वपूर्ण सत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सक्रिय ‘चलचित्र अभियान’ के एक्टिविस्टों मोहम्मद शाकिब रंगरेज और विशाल कुमार की आडियो –विजुअल प्रस्तुति थी जिसमे उन्होंने अपने अभियान के वीडियो के माध्यम से नए सिनेमा के महत्व को रेखांकित करने की कोशिश की।

गौरतलब है कि चलचित्र अभियान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किया जा रहा एक अनूठा प्रयोग है जिसके तहत स्थानीय युवाओं को फ़िल्म निर्माण और फ़िल्म प्रदर्शन का व्यावहारिक प्रशिक्षण देकर अपने इलाके की वास्तविक खबरें और हलचलों को दर्ज करने के लिए तैयार किया जा रहा है। यह प्रयोग महत्वपूर्ण इसलिए भी हो जाता है क्योंकि कैराना, शामली, मुज्ज़फरनगर के ये इलाके पांच साल पहले झूठी अफवाहों के चलते साम्प्रदायिक दंगों की आग में झुलस गए थे।

चलचित्र अभियान के दोनों एक्टिविस्टों को उदयपुर फिल्म सोसाइटी की तरफ से नेहा ने स्मृति चिन्ह भेंट किया। दूसरे दिन की आख़िरी फ़िल्म सईद मिर्ज़ा निर्देशित फीचर फ़िल्म ‘सलीम लंगड़े पे मत रो’ थी।

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