वर्तमान आधुनिक जीवन शैली एवं बढ़ते प्रदूषण के कारण पूरे विश्व में अस्थमा के रोगी बढ़ रहे है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 2018 में जारी अनुमान के अनुसार पूरे विश्व में लगभग 33 करोड़ 40 लाख लोग अस्थमता से पीड़ित हैं। भारत में भी लगभग 3 प्रतिशत आबादी इस रोग से पीड़ित है।
अस्थमा का ईलाज बहुत लम्बा या पूरी उम्र लेना हेाता है। अस्थमा गंभीर रोग नहीं हैं। यदि उचित ईलाज निरन्तर लिया जाये तो अस्थमा से जीवन की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होती है। जब ईलाज लम्बा हैं तो हमें ईलाज की ऐसी पद्धति को चुनना चहिये जो अधिक असरदार व सुरक्षित हो। प्रायः अस्थमा के रोगी गोली या इन्जेक्शन द्वारा दवाईयां लेना पसंद करते हैं परन्तु यह उचित नहीं है। क्योंकि गोलीयां व इन्जेक्शन को लम्बे समय तक लेने से गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
इन्हेलर के माध्यम से दवा ली जाये तो दवा जल्दी आरामदायक होती है व उसके दुष्प्रभाव भी बहुत कम होते हैं। इन्हेलर द्वारा ली गई दवा सीधे श्वास नली व फेफड़ो में पहुंचकर अपना कार्य करती है जिससे दवा का असर जल्दी होता है और शरीर के अन्य अंगों में दवा के दुष्प्रभाव भी नहीं होते हैं। गोलीयां या इन्जेक्शन में दवा मिलीग्राम में होती है जबकि इन्हेलर से दी जाने वाली दवा माईक्रोग्राम में होती है यानी यदि हमने एक गोली पांच मीलीग्राम की ली तो इन्हेलर की दवा यदि दो सौ माईक्रोग्राम की है तो 1गोली इन्हेलर की 25 डोज के बराबर होती है।
इन्हेलर द्वारा दी जोने वाली दवाईयां नवजात शिशु से लेकर वृद्ध अवस्था तक प्रत्येक रोगी को दी जा सकती है एवं सुरक्षित है। यदि रोगी बालक हैं तो प्रायः माता-पिता इन्हेलर को लेकर चिंतित हो जाते हैं। परन्तु इन्हेलर बच्चो में भी गोलियों व इन्जेक्शन से ज्यादा सुरक्षित होता हैं। अधिकतर रोगी इस बात को लेकर संशय में आ जाते है कि उनको इन्हेलर की आदत या लत ना पड़ जाये। इन्हेलर का दिमाग पर कोई प्रभाव नहीं होता इसलिए लत पड़ने या एडिक्शन होने का सवाल ही नहीं उठता हैं।
अतः इन्हेलर अस्थमा व सी.ओ.पी.डी. रोगीयों के ईलाज में सबसे ज्यादा असरदार व सुरक्षित है। इन्हेलर का उपयोग करते समय हमें निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये:-
अन्त में एक बहुत जरूरी जानकारी ये है कि हमारे लक्षण कम होने या खत्म होने पर दवा बन्द ना करे बल्कि अपने डॉक्टरके बताये अनुसार दवा लेते रहे क्योंकि लक्षण कम या खत्म होने के बावजुद श्वास की नलीयों में इन्फ्लामेशन व हाइपररिएक्टीवीटी बनी रहती हैं और दवा बीच में बन्द करने पर अस्थमा अनियंत्रित हो सकता है या अटैक आ सकता हैं।
Article by - डॉ. अतुल लुहाड़िया (प्रोफेसर)
रेस्पीरेटरी मेडिसन विभाग
गीताजंली मेडिकल कॉलेजएण्ड हॉस्पिटल, उदयपुर
To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on GoogleNews | Telegram | Signal