देश के विकास में सभी नागरिकों की एक समान भागीदारी बहुत मायने रखती है। केवल शहरी और औद्योगिक क्षेत्र ही नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों की भूमिका भी विकास में प्रमुख रूप से होती है। फिर चाहे वह कृषि क्षेत्र हो या लघु उद्योग, देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने में सभी का बराबर का योगदान रहता है। इसके बावजूद शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में कई प्रकार की बुनियादी सुविधाओं का अभाव देखने को मिलता है। हालांकि सरकार की ओर से गांव के विकास के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जाती हैं। लेकिन जागरूकता और संसाधनों का अभाव समेत कई अन्य कारणों से ग्रामीण जनता इसका लाभ उठाने से पीछे रह जाती है। राजस्थान के अजमेर का नाचनबाड़ी गांव भी ऐसा ही एक उदाहरण है, जहां ग्रामीण सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं से न केवल वंचित हैं, बल्कि कई स्तरों पर उन्हें इसकी जानकारियां तक नहीं है। जिस कारण यहां के लोग विकास की दौड़ में पिछड़ते जा रहे हैं।
इस संबंध में गांव की 55 वर्षीय सीता देवी अपने घर की हालत बयां करते हुए कहती हैं कि "पति और बेटा दैनिक मज़दूर है। प्रतिदिन मज़दूरी करने अजमेर शहर जाते हैं। आमदनी इतनी ही होती है कि किसी प्रकार गुज़ारा चल जाए। मकान आज तक पक्का नहीं बन सका है। न ही इसमें बिजली की व्यवस्था है। घर में शौचालय तक नहीं है। ज़रूरतमंदों के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही किसी भी योजना का उन्हें बहुत अधिक पता नहीं है।" वह कहती हैं कि बीमारी के कारण मैं चलने फिरने से मजबूर हूं। लोग कहते हैं कि घर बनाने के लिए सरकार से पैसा मिलता है। लेकिन इसके लिए कहां जाना होगा? किसे आवेदन देनी होगी? यह बताने वाला कोई नहीं है। पति या बेटा इसके लिए दौड़ भाग नहीं कर सकते क्योंकि वह दोनों दैनिक मज़दूरी करते हैं। जिस दिन आवेदन के लिए भाग दौड़ करेंगे तो उस दिन की मज़दूरी कहां से आएगी? सीता देवी कहती हैं कि हम साक्षर नहीं है इसलिए सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने से पीछे रह जाते हैं। वह कहती हैं कि हमारे कालबेलिया समुदाय में पहले की तुलना में सामाजिक, आर्थिक और वैचारिक रूप से काफी बदलाव आया है। लेकिन अभी भी शिक्षा के प्रति बहुत अधिक गंभीरता नहीं है। जिसके कारण हमारा समाज विकास की दौड़ में पीछे रह जाता है।
गौरतलब है कि जिला के घूघरा पंचायत स्थित नाचनबाड़ी गांव में कालबेलिया समुदाय की बहुलता हैं। इन्हें सरकार की ओर से अनुसूचित जनजाति समुदाय का दर्जा प्राप्त है। यहां की पंचायत में दर्ज आंकड़ों के अनुसार गांव में लगभग 500 घर हैं। गांव के अधिकतर पुरुष और महिलाएं दैनिक मज़दूरी करने अजमेर जाते हैं। कुछ स्थानीय चूना भट्टा पर काम करते हैं। यहां से मिलने वाली मज़दूरी इतनी कम होती है कि उनके परिवार का मुश्किल से गुज़ारा चलता है। यही कारण है कि इस समुदाय के कई बुज़ुर्ग पुरुष और महिलाएं आसपास के गांवों से भिक्षा मांगकर गुज़ारा करते है। यह समुदाय कई दशकों तक खानाबदोश जीवन गुज़ारता रहा है। जिसके कारण इनका कोई स्थाई ठिकाना नहीं रहा था। लेकिन अब बड़ी संख्या में इस समुदाय के लोग नाचनबाड़ी और उसके आसपास के गांवों में स्थाई रूप से आबाद हो चुके हैं। हालांकि पूर्व में विस्थापन वाला जीवन गुज़ारने के कारण वर्तमान में किसी के पास भी खेती के लिए अपनी ज़मीन नहीं है। इस समुदाय में बालिका शिक्षा की स्थिति अब भी बहुत अच्छी नहीं है। वहीं योजनाओं से लाभ प्राप्त करने की बात की जाए तो इसका स्तर भी बहुत कम नज़र आता है।
इसी समुदाय की एक अन्य महिला चरमू देवी कहती हैं कि "हमने सुना है कि घर बनाने के लिए सरकार पैसा देती है। इसके लिए पंचायत में आवेदन देनी होती है। लेकिन हमारे समुदाय में बहुत कम लोग साक्षर हैं। इसलिए हमें आवेदन लिखने की जानकारी नहीं है।" वह कहती हैं कि योजनाओं का लाभ उठाने के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है? इसका मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं है। साक्षर नहीं होने का समुदाय को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। वह कहती हैं गांव में एक स्कूल है। जहां पांचवी तक पढ़ाई होती है। इसके आगे की शिक्षा के लिए दो किमी दूर घूघरा जाना होता है। जहां लड़के तो चले जाते हैं लेकिन माता-पिता लड़कियों की शिक्षा बंद करवा देते हैं। वहीं दिव्यांग पप्पू नाथ कालबेलिया बताते हैं कि उनका पूरा परिवार एक छोटी झोपड़ी में रहता है। न तो उसमें बिजली और न ही पानी की व्यवस्था है। किसी प्रकार गुज़ारा चलता है। उन्होंने दिव्यांग पेंशन स्कीम और प्रधानमंत्री आवास योजना के अतिरिक्त अन्य किसी योजनाओं का नाम भी नहीं सुना है। वह कहते हैं कि दिव्यांग होने के कारण गांव के कुछ लोग उन्हें इन योजनाओं की जानकारियां देकर चले गए लेकिन इसे कैसे शुरू कराया जाए और कहां आवेदन जमा किया जाए? इस संबंध में मदद करने वाला कोई नहीं है।
रमेश नाथ कालबेलिया कहते हैं कि उनकी तीन बेटी और एक बेटा है। सभी को उन्होंने उच्च शिक्षा दिलाया है। हालांकि 12वीं के बाद ही उन पर समुदाय की ओर से लड़कियों की शादी कराने का दबाव बढ़ने लगा था। ऐसा नहीं करने पर उन्हें समुदाय से बेदखल करने की बात भी कही गई थी। लेकिन उन्होंने इसकी परवाह किये बिना अपनी सभी लड़कियों को कॉलेज तक की शिक्षा दिलाई है। वह कहते हैं कि "मैं स्वयं साक्षर नहीं हूं। लेकिन शिक्षा की महत्ता को खूब समझता हूं। इसलिए अपने बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। उनके अनुसार सरकार की ओर से किसी भी पिछड़े समुदाय के विकास के लिए कई योजनाएं संचालित की जाती हैं। जिसका लाभ उठाने के लिए हमें जागरूक होना आवश्यक है। जो शिक्षा से ही संभव है। इसीलिए मैंने अपने बच्चों को पढ़ने लिखने के लिए प्रेरित किया। रमेश कहते हैं कि मैं अपने समुदाय में भी बच्चों की शिक्षा के लिए सभी को प्रेरित करता रहता हूं"। हालांकि वह मानते हैं कि कई बार केवल जागरूकता की कमी ही नहीं, बल्कि संसाधनों तक पहुंच का अभाव भी विकास में रुकावट बन जाता है।
रमेश कहते हैं कि मैं लकड़ी से सामान बनाने का काम करता हूं। लेकिन समय निकाल कर गांव की पंचायत सभा में भी न केवल नियमित रूप से शामिल होता हूँ बल्कि योजनाओं के लिए आवाज़ भी उठाता हूं। वह कहते हैं कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदाय के विकास के लिए सरकार की कई योजनाएं संचालित हैं, जिससे लाभान्वित होकर समुदाय न केवल अपना बल्कि गांव का विकास भी संभव बना सकता है। इसके लिए स्वयं समुदाय को पहल करनी होगी। संसाधनों तक लोगों की पहुंच आसान बनानी होगी। स्रोत के माध्यम उपलब्ध कराने होंगे। उन्हें शिक्षा से जोड़ना होगा ताकि वह जागरूक हो सकें और योजनाओं का लाभ उठा कर सशक्त बन सकें। (चरखा फीचर)
To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on GoogleNews | Telegram | Signal