हर साल की तरह इस साल भी 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोक थाम दिवस उदयपुर में मनाया गया। डिप्टी सी.एम्.एच.ओ राघवेंद्र रॉय ने बताया की इस मौके पर दिन की शुरुआत जागरूकता रैली से हुई जो पुरे संभाग के सभी ज़िलों में निकाली गई, इस के पश्चात ओथ टेकिंग सेरेमनी का आयोजन किया गया जिसमे आत्महत्या रोकथाम को लेकर सभी ने शपथग्रहण की।
इस मौके पर प्रेस से बातचीत करते हुए एनएम्एचपी (NMHP) के नोडल ऑफिसर डॉ. अरविन्द झाकड़ ने देश में लगातार बढ़ रहे आत्महत्या के मामले, उनके पीछे के कारणों और और उनको कम करने के सुझावों के बारे में चर्चा की साथ ही में इन मामलों की रिपोर्टिंग को लेकर कर अख़बारों और न्यूज़ चेनल के लिए कोर्ट की गाइडलाइंस के बारे में भी बताया।
डॉ. अरविन्द ने कहा की नेशनल क्राइम ब्यूरो (NCB) की 2021 की रिपोर्ट से के हिसाब से देश में कुल 1,64,000 मामले सामने आए थे जिसमे से राजस्थान में 5,500 मामले थे तो वही 2020 की रिपोर्ट के हिसाब से 4800 मामले ही थे।
डॉ. झाकड़ ने बताया की 2016-17 की रिपोर्ट के हिसाब से देश में ये आंकड़ा एक लाख में से 12 व्यक्ति प्रतिवर्ष (12 person per year per lakh population) था तो वही प्रदेश में 2016-17 के आंकड़े 7 व्यक्ति प्रतिवर्ष (7 person per year per lakh population ) था और इनमे साल 2020 में 7% की बढोतरी हुई है।
डॉ. झाकड़ ने कहा की आत्महत्या के कुल मामलों में से 33% मामले पारिवारिक (family issue) की वजह से होते है, 20% मामले मानसिक बीमारी (mental illness) की वजह से और 8% परसेंट मामलों उन बच्चो के है जो पढाई करते है, और इन से 80% मामले प्रिवेंटिव (preventive) मामले है जिनको समझाइश और काउंसिलिंग करके टाला जा सकता है।
बच्चो में आत्महत्या के बढ़ते मामलों के बारे में बताते हुए डॉ. झाकड़ ने कहा की ज्यादातर मामले पढाई में असफलता की वजह होना ही सामने आया है। लेकिन इन्हें कम किया जा सकता है बच्चो को कोई फिक्स्ड गोल्स (fixed goals ) न दे कर उनकी सस्याओं को सुनकर उसका समाधान करके (Help them to solve their problems)
मीडिया के लिए गाइड लाइन का जिक्र करते हुए डॉ.झाकड़ ने कहा मानसिक बीमारी और आत्महत्या के मामलो पर जिम्मेदार रिर्पोटिंग- त्वरित सन्दर्भ मार्गदर्शिका मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम 2017 की धारा 24(1) के अर्न्तगत "किसी मानसिक स्वास्थ्य स्थापन में उपचार के दौरान किसी मानसिक रूग्णता से ग्रस्त व्यक्ति से संबंधित कोई फोटो या कोई अन्य जानकारी मानसिक रूग्णता से ग्रस्त व्यक्ति की सहमति के बिना मीडिया को नहीं दी जायेगी" ।
मीडिया मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति जिसका मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में उपचार चल रहा हो, की सहमति के बिना उसके संबंध में तस्वीर या कोई अन्य जानकारी प्रकाशित नहीं करेगा।
आत्महत्याओ को रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट प्रेवेटिंग सुसाईड-ऐ रिसोर्स फॉर मीडिया प्रोफेशनल-2017 के अनुसरण मे भारतीय प्रेस परिषद ने दिशा-निर्देशों को अपनाया है। समाचार पत्र और समाचार एजेंसिया आत्महत्या के मामलो पर रिर्पोटिंग करते समय निम्नलिखित दिशा निर्देश की पालना करें।
आत्महत्या की खबर को अखबार के मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित नही किया जाये और न ही खबर को बार-बार दोहराया जाये। दिशा निर्देशों के अनुसार आत्महत्या की खबर को अखवार के मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित नही करते हुए उसे अखबार के अन्दर पन्नों मे नीचे की तरफ प्रकाशित करना चाहिए इसी प्रकार रेडियों या टी.वी पर आत्महत्या की खबर को ब्रेकिंग न्यूज मे प्रमुखता ना देते हुए उसे दुसरे या तीसरे स्थान पर प्रसारित/प्रकाशित करें और यदि किसी खबर में कोई अपडेट होता है तो उस अपडेट की प्रमाणिकता जांच के बाद ही प्रकाशित/प्रसारित करें।
ऐसी भाषा या हेडलाईस का उपयेग न करे जो आत्महत्या को सामान्यकृत करें या इसे समस्याओं से बचने के समाधान के रूप में सनसनीखेज बनाए या करे। प्रस्तुत दिशा निर्देशों के अनुसार "कमिटेड सुसाईड/ आत्महत्या की/ आत्महत्या कर ली / मौत को गले लगाया/ आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठाया" आदि शब्द या वाक्यांश की जगह व्यक्ति की आत्महत्या से मौत हुई या व्यक्ति ने अपना जीवन स्वयं नष्ट कर लिया" शब्द/वाक्यांश प्रकाशित करना या बोलना ज्यादा उचित तरीका है। इससे भाषा में सुधार के माध्यम से आत्महत्या के प्रति समाज में व्याप्त लांछन या कलंक तथा भेदभाव को कम किया जा सकता है।
खबर में आत्महत्या की प्रकिया, विधि और घटनास्थल का विस्तृत वर्णन / स्पष्ट रूप से वर्णन न करे जैसे कि आत्महत्या करने का तरीका क्या था। आत्महत्या के लिये व्यक्ति ने किन वस्तुओं का किस प्रकार से उपयोग किया तथा आत्महत्या के लिए किस स्थान / स्थल का चयन किया इत्यादि। पाठको / दर्शको को सूचना देने के लिए किसी प्रकार के ग्राफिक्स अथवा एनीमेशन का उपयोग न करें ।
आत्महत्या से मरने वाले व्यक्ति का फोटो, सुसाइड नोट, टैक्स्ट मैसेज, सोशल मीडिया पोस्ट, ईमेल, वीडियों फुटेज आदि को प्रकाशित न करें क्योंकि ऐसा देखने में आया है कि इसका नकारत्मक असर खबर पढने एवं सुनने वालो, परिवार, समाज और अवसादग्रस्त व्यक्ति पर पड़ता है तथा प्रभावित व्यक्ति द्वारा आत्महत्या करने के तरीको की नकल, आत्महत्या के प्रयास व पुनरावृति करने की संभावना बनी रहती है ।
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