राजस्थान में अजमेर जिले के घूघरा गांव की मंजू बोरा ने अपने परिवार के सहयोग और बेटी की शिक्षा के लिये स्वयं किसी रोजगार से जुडने की ठानी थी लेकिन अपने निश्चय की सफलता के प्रति आश्वस्त नही होने से वह ये कदम नही उठा पायी।
परिवार और समूह सखियों के कहने पर मंजू सखी स्वयं सहायता समूह से जुड गयी जिसके बाद आत्मविश्वास से उसे न सिर्फ स्वयं के परांठे की दुकान खोलने के लिये वित्तिय सहायता मिली बल्कि स्वयं सहायता समूह में उसे विभिन्न प्रकार के अचार पापड़ और मंगोडी बनाने के लिये प्रशिक्षण दे कर उसका हौंसला भी बढ़ा।
वर्तमान में मंजू, हिन्दुस्तान जिंक के सहयोग से 20 हजार रूपये मासिक अर्जित कर न सिर्फ स्वयं गौरव महसूस करती है बल्कि धैर्य, दृढ़ संकल्प और दृढ़ता से अपनी सफलता की मिसाल भी प्रस्तुत करती नजर आती है।
सखी परियोजना को ग्रामीण महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोडने और एक ऐसा मंच विकसित करने की दृष्टि से शामिल किया गया था जो ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण और सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण प्रदान करता है। एसएचजी के माध्यम से महिलाओं का सशक्तिकरण न केवल व्यक्तिगत महिलाओं को बल्कि विकास के लिए सामूहिक प्रयास के माध्यम से पूरे परिवार और समुदाय के लिए भी लाभदायक साबित हो रहा है। यह परियोजना महिलाओं की पूर्ण और प्रभावी भागीदारी के साथ-साथ निर्णय लेने के नेतृत्व और सामाजिक आर्थिक विकास में भागीदारी के समान अवसर सुनिश्चित करती है।
परियोजना ने 209 गांवों में 2,128 एसएचजी के माध्यम से 27,323 महिलाओं को सशक्त बनाने की प्रक्रिया को सकारात्मक रूप से बढ़ावा दिया है। यह परियोजना जमीनी स्तर पर कार्य कर रही है और ग्रामीण और जनजातीय समुदायों की महिलाओं की व्यावसायिक कुशाग्रता को निखारते हुए उनके समक्ष आने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों को लक्षित कर रही है।
हेमा की कहानी मंजू से अलग नहीं है, जावर के आदिवासी क्षेत्र में रहने वाली हेमा ने सखी शक्ति फेडरेशन के तहत सहेली स्वयं सहायता समूह की सदस्य बनकर अपनी आर्थिक सशक्तिकरण की शुरुआत की। हेमा, को कोविड लॉकडाउन के दौरान गंभीर वित्तीय संकट से गुजरना पडा, इन्होंने सखी फेडरेशन के सहयोग से 25,000 रुपये का ऋण प्राप्त किया, और अपनी बचत से 20,000 रुपये अतिरिक्त जोड़े। इससे खदान इलाके के पास अपना खुद का होटल सोनू रजवाड़ी शुरू किया जहां श्रमिकों को जलपान के आसानी से उपलब्ध हो पाया। एसएचजी समूह के माध्यम से थोड़े से मार्गदर्शन और वित्तीय सहायता के साथ, हेमा ने प्रति दिन हजार से पंद्रह सौ रूपये अर्जित कर अपने रोजमर्रा के बुनियादी खर्चों को पूरा करने का लक्ष्य हांसिल किया।
इसके अलावा, सखी ने 1,211 छोटे और लघु उद्यमों के साथ-साथ 7 सामूहिक उद्यमों को बढ़ावा दिया है जहां महिलाएं उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन विभागों में कार्यरत हैं। सखी कार्यक्रम का एक अन्य उल्लेखनीय पहलू सखी उत्पादन समिति है, जो आय के विश्वसनीय स्रोतों के प्रावधान के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने का लक्ष्य रखती है। 11 अति लघु व्यवसायों के माध्यम से 250़ महिलाएं इस पहल का हिस्सा हैं। संघ ने सामूहिक रूप से अपने सदस्यों को 62.16 करोड़ के ऋण वितरित करने में सहायता की है जो न केवल महिलाओं को सशक्त बना रहे हैं बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से कृषि, पशुधन, सूक्ष्म उद्यमों के विकास के साथ-साथ सदस्यों की घरेलू और सामाजिक जरूरतों की पूर्ति कर रहे है।
चित्तौडगढ़ जिलें के पुठोली की लाभार्थी नीरू ने गांव में किराने की एक छोटी सी दुकान शुरू की। अपनी किराने की दुकान की सफलता से उत्साहित होकर, नीरू अपने परिवार की आय को और बढ़ाना चाहती थी। आय का एक अन्य स्रोत जोड़कर स्थानीय सखी सहायता समूह से 25,000 रु का ऋण लेकर एक सिलाई मशीन खरीदी। आज, उनकी मासिक औसत आय बढ़कर 30,000 रू हो गई है और वह अपने सखी समुदाय के साथ इसका श्रेय साझा करती हैं जिन्होंने उनका सहयोग कर उसे पूरा करने का मार्ग प्रशस्त किया।
विशिष्ट सखी महिला सशक्तिकरण पहल के कारण हिंदुस्तान जिंक को सोशल स्टोरी फाउंडेशन द्वारा लीडर्स फॉर सोशल चेंज अवार्ड से सम्मानित किया गया। एस एण्ड पी ग्लोबल प्लैट्स मेटल अवार्ड 2022 में प्रतिष्ठित कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व पुरस्कार प्राप्त किया जो कि भारत में एकमात्र है। ये सम्मान और मान्यता जीवन के सभी क्षेत्रों की महिलाओं में सकारात्मक बदलाव और सशक्त बनाने में हिन्दुस्तान जिं़क के महत्वपूर्ण योगदान को प्रदर्शित करती है। सखी परियोजना गांवों की हजारों सखियों के लिए आशा की किरण है और न केवल उनके जीवन को बदल रही है बल्कि पूरे समुदाय को लाभान्वित कर रही है।
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