MLSU-संगोष्ठी को लेकर बवाल


MLSU-संगोष्ठी को लेकर बवाल

जाति विशेष को तरजीह देने पर छात्रों ने दिया धरना 

 
MLSU Uproar

सुखाड़िया विश्वविद्यालय में 9 और 10 सितंबर को होने वाली (1857) अट्ठारह सौ सत्तावन के अज्ञात और भूले बिसरे नायक पर आधारित राष्ट्रीय संगोष्ठी को स्थगित कराने की मांग को लेकर कुछ छात्र विश्वविध्यालय के स्वर्ण जयंती गेस्ट हाउस के बाहर अनशन पर बैठे गए। छात्रों का कहना था कि विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग द्वारा 9 और 10 सितंबर को विश्वविद्यालय में 1857 की क्रांति के अज्ञात और भूले बिसरे नायक पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित करवाई जा रही थी,जिसमें सिर्फ एक विशेष समाज को ही महत्व दिया जा रहा था। 

इसको लेकर छात्र अनशन पर बैठे हुए थे, छात्रों का कहना था कि संगोष्ठी को स्थगित करवाने के लिए उन्होंने विश्वविधालय के कुलपति और विभागाध्यक्ष को भी कहा लेकिन उनका जो रवैया सामने आया वह सही नहीं था ऐसे में छात्रों ने कहा कि जो राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित करवाई जा रही है. इस संगोष्ठी में उदयपुर शहर के सिसोदिया वंश का जिक्र नहीं किया जा रहा, वही उदयपुर की पहचान रखने वाले चावंड को कोई महत्व नहीं दिया गया था सिर्फ विशेष समाज को ही महत्व दिया गया है ऐसे में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया गया, और घोषणा की के जब तक कार्यक्रम स्थगित नहीं होता है तब तक छात्र अनशन पर बैठेंगे और जल और भोजन का सेवन नहीं करेंगे। 

उन्होंने कहा की कार्यक्रम को स्थगित करवाने का पूरी तरह से प्रयास किया जाएगा फिर भी अगर स्थगित नहीं होता है तो छात्रों द्वारा जीवन भर किसी तरह का जल और भोजन का सेवन नहीं किया जाएगा। छात्रों ने अपने अनशन के दौरान दुसरे दिन शुक्रवार को भी प्रदर्शन जरी रखा, जिसमे उनका साथ देने के लिए पार्षद गौरव प्रताप सिंह और  उनके साथी भी पहुंचे। 

स्थिति सँभालने के लिए पुलिस टीम भी विश्वविद्यालय पहुँच गई, छात्रों ने चेतावनी दी थी कि प्रशासन को तुरंत कार्यवाही कर संगोष्ठी को निरस्त करना चाहिए और जिस तरह से कुछ लोगों द्वारा सिर्फ विशेष जाति को महत्व दिया जा रहा है और इस कार्यक्रम के माध्यम से वह देश को जातियों के आधार पर बांटने में लगे हैं और 1857 की क्रांति को भी विभाजन करने में लगे हैं कार्यक्रम को स्थगित करने की मांग की है।

इस मुद्दे को लेकर छात्रों ने विश्वविद्यालय प्रबंधन को ज्ञापन भी सोंपा था जिसमे उन्होंने कहा की सहायक आचार्य कैलाश चंद गुर्जर इस संगोष्ठी के संयोजक है। गुर्जर ने इसके विषय परिचय में इस और ध्यान दिलाया है कि 1857 में अग्रेजों की शोषणकारी नीतियों के विरुद्ध भारतीय नायकों का जो संघर्ष रहा उसका इतिहास आज तक एकतरफा लिखा गया है। इसके आगे वे जिन क्रान्तिकारियो को महत्व देते है इन में से 90% से अधिक नाम स्वयं की सजातिय से सम्बंध रखने वाले नायकों के है। 

छात्रों ने अपने ज्ञापन के माध्यम से प्रश्न करते हुए कहा की क्या वाकई में हमारे देश और राज्य के भूले बिसरे नायकों में 1857 की क्रांति के समय अन्य जातियों, समाज से कोई नायक नहीं रहे...? वीर एवं त्यागी नायकों की भूमि राजस्थान में जो क्रांतिकारी रहे है क्या उन्हें इतिहास में उचित स्थान मिल गया ? और यदि ऐसा नहीं है तो राजस्थान और भारत के अन्य जाति के नायकों की और ध्यान नहीं देकर केवल सजातिय नायकों का महिमामंडन करने की अनुमति एक पक्षपाती कैलाश चन्द्र गुर्जर अध्यापक को मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय में क्यों दी? पिछले वर्षों से अध्यापक के सजातिय समाज अपने पिछडेपन और इतिहास शुन्यता को भरने के लिये जिन सही गलत प्रचारों का उपयोग सोशल मिडीया एवं अन्य साधनों से करता आ रहा है, अब उसमें इस समाज के पदाधिकारी, अध्यापक आदि मनचाहे विषय उठा कर अथवा उन्हें मनचाही व्याख्या देकर केवल सजातिय के महिमामंडन हेतू सरकारी संस्थाओं को भी उपयोग करने लगें है ..?

छात्रों ने अपने ज्ञापन के माध्यम से प्रश्न करते हुए कहा की क्या एक सभ्य समाज में जहां 36 कौम ने देश निर्माण में योगदान दिया ! क्या ऐसे प्रचार की अनुमति सरकारी संस्थाओं में होनी चाहिये ? क्या अपने समाज के प्रचार की ग्रंथि से ग्रसित ऐसे पदाधिकारीयों की उनकी संस्थाओं द्वारा अधिक सावधानी से निगरानी नहीं करनी चाहिये.? क्या विश्वविद्यालय अब किसी समाज के महिमामंडन का साधन मात्र है?  जहां 1857 की क्रांति के समय 255 युवा महिलायें ब्रिटिश राज के विरुद्ध हुए विरोध में अपना जीवन बलिदान करती है ।

छात्रा धनश्री चौहान का कहना है की टोंक की क्रांति में महिलाओं का योगदान रहा ये सब इन्हें याद नहीं रहा। 11 युवतियां फार्सी के तख्ते पर ब्रिटिश राज द्वारा चढ़ाई गयी उन सब में से कैलाश जी महोदय को न तो मुजफ्फरनगर की जमीला का नाम याद आया न ही भगवती देवी त्यागी का...उन्हें याद रही तो केवल तो मुजफ्फर नगर की आशा देवी क्योंकि वे गुर्जर जाति से आने तांत्या टोपे का साथ दिया प्रतापगढ़ से 3-4 हजार भील सैनिकों न भी तांत्या टोपे का साथ दिया तो वहीँ टोंक की क्रांति में भी महिलाओं का योगदान रहा इन सब को किसी ने याद नहीं रखा। 

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आमरण अनशन पर 2 दिन से बेठी छात्रा धनश्री चौहान का कहना है की पिछले 5 दिनों से अपनी मांग को लेकर प्रशासन के पास जा रहे है, वीसी साहब ऑफिस में होते हुए भी बहाने करते है की वो ऑफिस में नहीं हैं, उन्होंने ने कमेटी बनाकर जाँच करने की बात कही, लेकीन इनकी कमेटी की अध्यक्ष महोदय बायस्ड थी। उन्होंने कहा की समस्या यह की संयोजक द्वारा सिर्फ उनकी जाती के 8 क्रांतिकारियों का ही नाम देते है जिनमे से 7 क्रन्तिकारी जाति विशेष के ले लेते हैं.क्या राष्ट्रिय संगोष्ठी का मतलब ये होता है की आप सिर्फ एक क्षेत्र के और एक जाति विशेष के लोगो को लाए, क्या क्रांतिकारियों की कोई जात होती है, क्या उनका कोई क्षेत्र होता है ? वो तो सिर्फ भारतीय होता है वो सभी का होता है.ये एक साजिश है जिसमे इन्होने क्रन्तिकारियों को जातियों में बाट दिया। इसके अलावा जो रिसर्च पेपर मंगाए गए वो भी सीधा अप्रूव कर दिए गए उसकी कोई जाँच नहीं हुई, जो की ओफीशल ईमेल आईडी पर मंगवाने होते है, वो भी जीमेल की पर्सनल ईमेल आईडी पर मंगवा लिए गए।  

गौरव प्रताप ने इस आमरण अनशन का समर्थन करते हुए कहाँ की छात्र अशोक सिंह जेतावत, धनश्री चौहान और अन्य छात्रों ने जो कदम उठाया है इसमें इनका यही कहना है की राष्ट्रिय संगोष्ठी आयोजित करके क्रांतिकारियों के सम्मान को विवि द्वारा करके आहत किया जा रहा है उसे आयोजित करने के लिए विवि हकदार नहीं है। वीसी साहब ने एक ऐसे टीचर को इस कार्यक्रम का हेड बनाया है जिसके छात्र खिलाफ है.और फ़िलहाल वीसी साहब ने हमें इस संगोष्ठी को निरस्त करने के आदेश देने के लिए आश्वस्त किया है और कहा है अगर भविष में जब भी इसका आयोजन किया जायेगा तो सभी समाज के क्रांतिकारियों चाहे वो किसी भी समाज का क्यों न हो उसे शामिल किया जायेगा।    

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छात्रों की इन सब मांगो को ध्यान में रखते हुए यूनिवर्सिटी के कुलपति आईवी त्रिवेदी ने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी को स्थागित करने के आदेश शुक्रवार को जारी कर दिए। इस को लेकर छात्रों ने कुलपति का आभार व्यक्त किया। 

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