नाट्य संध्या में नाटक ‘‘शब-ए-हिज्राँ’’ का हुआ मंचन


नाट्य संध्या में नाटक ‘‘शब-ए-हिज्राँ’’ का हुआ मंचन 

देश को आज़ादी के तोहफे में मिला बंटवारें का दर्द

 
shab se hijran

उदयपुर के नाट्य संस्थान नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफोर्मिंग आर्ट्स के कलाकारों ने शनिवार शाम को नाटक ‘‘शब-ए-हिज्राँ’’ का मंचन किया। ‘‘शब-ए-हिज्राँ’’ मतलब जुदाई या विरह की रात।

15 अगस्त 1947 का ऐतिहासिक दिन, जहाँ भारत वर्षों की गुलामी से स्वतंत्र हुआ था, वहीं यह दिन भारत के लिए एक और दुर्भाग्यपूर्ण दिन था। भारत को आजादी के साथ-साथ बंटवारा और विभाजन तोहफे में मिला और बंटवारे और विभाजन के साथ मिली, विरह की अनगिनत रातें जो आमजन की जिंदगी का हिस्सा बन गई।

भारत के विभाजन के बाद अपने मूल स्थानों को छोड़ने वाले प्रवासियों के संघर्ष और दर्द की दास्तां से हिन्दी और उर्दु साहित्य भरा पडा है। प्रसिद्ध लेखक और गीतकार सम्पुर्ण सिंह कालरा ‘गुलज़ार’ द्वारा लिखी गई ऐसी ही एक कहानी है - रावी पार। नाटक ‘शब-ए-हिज्राँ’ इसी कहानी के धरातल पर तैयार किया गया है।

नाटक 1947 के उस दौर का है, जब लोगों ने आजादी के सूरज को करीब आते देखना शुरू किया था, लेकिन वे सभी इस आजादी की कीमत और परिणाम अभी भी अज्ञात थे। भारत को धर्म के आधार पर विभाजित करने के ब्रिटिश राज के फैसले ने कई लोगों के जीवन को तहस-नहस कर दिया, नतीजतन भारत-पाक बंटवारे पर मानव इतिहास का सबसे बड़ा पलायन हुआ है।

कथासार

कहानी का मुख्य किरदार दर्शन सिंह, रोज के दंगे फसादाद से परेशान होकर जब अपने परिवार की सुरक्षा के लिए, सभी लोगों के साथ गुरुद्वारे में जाकर रहने का मन बना लेता है लेकिन उसके भापा जी (पिताजी) के ना मानने पर अपने घर में ही रहने को मजबूर होता है। कुछ समय बाद भापाजी की आकस्मिक मृत्यु हो जाती है। मृत्यु के कुछ समय बाद, दर्शन सिंह अपनी बिजी (माँ) और गर्भवती पत्नी के साथ गुरुद्वारे में रहने आ जाता है। 

दंगों की खबरों से परेशान हो कर वो हिंदुस्तान जाने का फैसला करता है। जिस दिन उसकी पत्नी शाहनी उसके जुड़वा बच्चों को जन्म देती है, उसी दिन शरणार्थियों को लेने एक स्पेशल ट्रेन आती है। दर्शन सिंह भी अपने बीवी और बच्चों को लेकर निकल जाता है। रास्ते में ठंड की वजह से, एक बच्चा दम तोड़ देता है। राह में रावी आने पर दर्शन सिंह अनजाने में मुर्दा बच्चे की जगह जीवित बच्चे को नदी में फेंक देता है। इस तरह यह नाटक दंगों में हुई लोगों की मनःस्थिति पर रोशनी डालता है। यह कहानी बताती है कि कैसे आज़ादी पाकर भी हमारे देश ने कितना कुछ खो दिया। एक तरफ आज़ादी का जश्न था तो दुसरी तरफ बँटवारे का दुःख। 

नाटक में सभी अभिनेताओं ने अपने बेहतरीन प्रदर्शन और अभिनय के माध्यम से पाकिस्तान से हिन्दूस्तान और हिन्दूस्तान से पाकिस्तान की ओर पलायन करने वाले आमजन के कष्टों, संघर्षों और पीडा को प्रस्तुत किया। नाटक में हिंदू-मुसलमानों के बीच भाईचारा, एक-दूसरे की परंपराओं, जीवन शैली और धार्मिक विश्वासों के प्रति प्रेम को प्रदर्शित करते हुए अविभाजित भारत की एक झलक पेश की।

किरदारों का पंजाबी पहनावा, संवादों की शुद्धता, भावों के उतार-चढाव और अभिव्यक्ति की गुणवत्ता ने नाटक को एक अलग ही मुकाम पर ला खडा किया। नाटक के समापन पर फैज़ अहमद ‘फैज़’ का एक - ‘‘जो हम पर गुज़री सो गुज़री, मगर शब-ए-हिज्राँ, हमारे अश्क़ तेरी आक़िबत (भविष्य) संवार चले।’’ का सभी कलाकारों द्वारा सामवेत स्वर दर्शकों को छू गया।

कार्यक्रम संयोजक मोहम्मद रिजवान मंसुरी ने बताया कि नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफोर्मिंग आर्ट्स की प्रस्तुति ‘‘शब-ए-हिज्राँ’ में मंच पर उर्वशी कंवरानी, यश शाकद्वीपीय, महावीर शर्मा, भुवन जैन, हर्ष दुबे, मुकुल खांडिया, अरशद कुरैशी, हर्षिता शर्मा, डिम्पल खत्री और अगस्त्य हार्दिक नागदा ने अपने अभिनय कौशल के दम पर दर्शको का मन मोह लिया।

नाटक का अनुकुलन, परिकल्पना और निर्देशन अमित श्रीमाली द्वारा किया गया। मंच पार्श्व में वस्त्र विन्यास - उर्वशी कंवरानी, संगीत संयोजक - भुवन जैन, संगीत संचालन रूप सज्जा व मंच संचालन - रेखा सिसोदिया, प्रकाश निर्देशन - अशफाक नुर खान पठान, प्रकाश संचालन - मोहम्मद रिजवान मंसुरी ने किया। मंच सहायक - विनित कंवरानी और योगीता सिसोदिया का सहयोग प्राप्त हुआ। 


 

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