पीपुल्स यूनियन फिर सिविल लिबर्टीज (PUCL), राजस्थान ने उदयपुर में 16 अगस्त को हुई घटना के आरोपी छात्र के किराए के मकान को, नगर निगम उदयपुर द्वारा ध्वस्त किए जाने के गैर कानूनी कृत्य की घोर निंदा की है। यह राजस्थान में संविधान और न्याय व्यवस्था के विपरीत बुलडोज़र राज का आगमन है, जो कि भविष्य के लिए बहुत खतरनाक संकेत है।
PUCL ने राजस्थान के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर घटना का प्रसंज्ञान लेने का आग्रह किया है और कहा है कि घर तोड़े जाने से पीड़ित परिवार सड़क पर आ गया है और वर्तमान वातावरण में उन्हें कोई शरण देने का तैयार नहीं है। यह आश्चर्यजनक है कि वन विभाग ने परिवार को 16 तारीख को ही नोटिस देते हुए, 20 तारीख तक का समय दिया था, किंतु उन्हें जवाब या कार्रवाई का मौका दिए बिना ही 24 घंटे के भीतर 17 अगस्त को नगर निगम ने मकान ध्वस्त कर दिया।
PUCL ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि जिस क्षेत्र में आरोपी छात्र का घर था, वहां पूरी बस्ती है और लगभग 200 घर हैं। लेकिन इसी व्यक्ति के घर को तोड़ने के लिए चुना गया। यह भी गौरतलब है आरोपी छात्र का परिवार खुद उस घर में किरायेदार के रूप में रहता है। यह जानते हुए भी कि घटना दो छात्रों के बीच हुई पुलिस ने आरोपी छात्र के पिता को भी गिरफ्तार कर थाने में रखा है जबकि पिता का घटना से कोई संबंध नहीं है।
PUCL का कहना है कि आज उदयपुर में एक घर ही नहीं, न्याय और कानून की मज़बूत इमारत को गिराया गया है। 16 अगस्त की घटना का आरोपी छात्र ने यदि कोई गलत कृत्य किया है तो उसके लिए न्याय प्रणाली है और हमें अपनी व्यवस्था पर विश्वास करना चाहिए कि वह दोषी को दंडित करेगी। किसी मामले के आरोपी को प्रताड़ित करने का हक पुलिस और प्रशासन के पास नहीं है। यह कृत्य कानून के राज को जंगल राज में बदल देने जैसा है।
PUCL 16 अगस्त को उदयपुर में हुई घटना की निंदा करता है
दो बच्चों के बीच हुई घटना दुखद है किंतु बड़ों का दायित्व बनता है कि संयम से काम लें। उक्त घटना के आधार पर सांप्रदायिक विभाजन बहुत खतरनाक है। सभी धर्मों के प्रतिनिधियों, नेताओं तथा मीडिया को सांप्रदायिकता की आग को ठंडा करने का प्रयास करना चाहिए। यह दुर्भाग्यजनक है कि कुछ संस्थाएं और लोग इस वातावरण में आग में घी डाल रहे हैं और पुलिस व प्रशासन उनके इशारों पर काम कर रहे है। यह राज्य की भजनलाल सरकार के लिए शर्म की बात है कि खुलेआम कानून और व्यवस्था बिगाड़ने वालों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है।
PUCL ने मुख्य न्यायाधीश से मांग की है कि गैरकानूनी रूप से बुलडोज़र चलाने वाले अधिकारियों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही की जाए तथा घर तोड़े जाने का मुआवजा दिया जाए। PUCL ने मुख्य न्यायाधीश से अपने स्तर पर जांच करवाने का आग्रह भी किया है।
नोट: यह पोस्ट पीयूसीएल, राजस्थान द्वारा निम्नलिखित हस्ताक्षरों के तहत उपलब्ध कराई गई जानकारी के आधार पर प्रकाशित की गई है
भंवर मेघवंशी (राज्य अध्यक्ष); अनंत भटनागर (राज्य महासचिव); अरुण व्यास (अध्यक्ष ,उदयपुर इकाई); मो याकूब (महासचिव,उदयपुर इकाई)
राजस्थान के मुख्य न्यायाधीश को पत्र याचिका का पाठ्य अंश:
सेवा में,
माननीय मुख्य न्यायाधीश
राजस्थान उच्च न्यायालय,
जोधपुर राजस्थान
विषय: - उदयपुर शहर में राज्य की अवैध, भेदभावपूर्ण कार्रवाई के खिलाफ तत्काल हस्तक्षेप की मांग - इससे पहले कि तथाकथित "बुलडोजर न्याय" द्वारा भारत के संविधान पर कब्ज़ा कर ले,कार्रवाई करिए
आदरणीय महोदय,
उपर्युक्त विषय वस्तु के संदर्भ में, हम राजस्थान के उदयपुर शहर में राज्य अधिकारियों के अवैध, भेदभावपूर्ण और सांप्रदायिक आचरण पर आपका ध्यान देने का अनुरोध करते हैं।
16/08/2024 को यह आरोप लगाया गया था कि एक समुदाय से ताल्लुक रखने वाले एक स्कूली छात्र ने अपने सहपाठी को चाकू मार दिया था जो कि दूसरे समुदाय से था। बाद में घायल लड़के को अस्पताल ले जाया गया और फिलहाल उसका इलाज चल रहा है. कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे को हिरासत में ले लिया गया है। यह भी अजीब है कि पिता को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है,जिसका कारण अज्ञात हैं।
हालाँकि, यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि वन विभाग ने कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे के पिता को दिनांक 16/08/2024 को एक नोटिस जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि जिस घर में वे रह रहे थे वह वन्यजीवन के तहत संरक्षित क्षेत्र में आता हैऔर संरक्षण अधिनियम के तहत उन्हें 20/08/2024 से पहले उक्त परिसर खाली करने का निर्देश दिया। यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि उक्त इलाके में 200 से अधिक घर बने हैं, कुछ बदमाशों/बदमाशों के वर्ग जिन्हें सांप्रदायिक तनाव से सत्ता की लालसा को पूरा करने के लिए राज्य के अधिकारियों द्वारा कानून का उल्लंघन करने के नाम पर केवल उक्त किशोर के परिवार को ही निशाना बनाया जा रहा है।
राज्य प्राधिकारियों का यह पिक एंड चूज़-लक्षित दृष्टिकोण उक्त घर में रहने वाले लोगों के मौलिक अधिकारों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है, विशेष कानूनों में उनके लिए उपलब्ध कानूनी अधिकारों का तो बिल्कुल भी नहीं।
इससे पहले कि कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे के परिवार के सदस्य 16/08/2024 के उक्त मनमाने और अवैध नोटिस के खिलाफ इस माननीय अदालत का दरवाजा खटखटाते, राज्य के अधिकारियों ने जेसीबी / बुलडोजर के साथ उनके घर को ध्वस्त कर दिया और कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे और परिवार को मनमाने और अवैध तरीके से घर से बेदखल कर दिया गया है। बेदखल किए गए निर्दोष व्यक्तियों के पास रहने के लिए कोई अन्य जगह नहीं है और बेदखल किए गए परिवार के सदस्यों के सभी दोस्त और रिश्तेदार उन्हें आश्रय देने पर खुद पर अवैध और भेदभावपूर्ण कार्रवाई की गंभीर आशंका के कारण उन्हें आश्रय देने से इनकार कर रहे हैं। राज्य की यह कार्रवाई गुंडा राज से कम नहीं है जो कानून की अदालतों के अस्तित्व को अप्रासंगिक बना देगी।
राज्य की इस कार्रवाई से, चाकू मारने के इस पृथक कथित अपराध को केवल इसलिए सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है क्योंकि कानून का उल्लंघन करने वाला बच्चा अल्पसंख्यक समुदाय से है और पीड़ित बहुसंख्यक समुदाय से है। किशोर न्याय अधिनियम के पूरे बीएनएस, बीएनएसएस में कहीं भी यह प्रावधान नहीं किया गया है कि राज्य अधिकारियों को इस तरह के क्रूर और भेदभावपूर्ण तरीके से कार्य करने की अनुमति दी जा सकती है। कानून का उल्लंघन करने वाले किशोर का पूरा परिवार स्वयं की बिना किसी गलती के सड़कों पर है।
यहां तक कि भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी जब उत्तर प्रदेश तथा गुवाहाटी, इलाहाबाद, जबलपुर और दिल्ली में राज्य उच्च न्यायालयों के अलावा ऐसी कई घटनाएं सामने आ रही थीं, तब बुलडोजर न्याय की इस प्रथा की कड़ी आलोचना की है।
महोदय, न्यायिक पक्ष में आपका तत्काल हस्तक्षेप अत्यंत आवश्यक है, यदि ऐसा नहीं किया गया तो जल्द ही अराजकता हावी हो जाएगी और न्याय देने वाली अदालतों की जगह बुलडोजर न्याय ले लेगा।
यदि इसे जारी रखने की अनुमति दी गई, तो हमारा दृढ़ विश्वास है कि वह दिन दूर नहीं जब कार्यपालिका उन अदालतों पर भी बुलडोजर चला देगी जो उनकी सरकार के खिलाफ आदेश पारित कर रहे हैं।
इसलिए, इस मामले में आपके हस्तक्षेप के अलावा, विस्थापित परिवार के लिए एक जरूरी अपील के रूप में हम विस्थापित सदस्यों के पुनर्वास के लिए आपके उचित निर्देशों का अनुरोध करते हैं और इस बीच, हम उचित आश्रय की व्यवस्था होने तक एक संक्रमणकालीन आश्रय का अनुरोध करते हैं। हम राज्य द्वारा की गई विध्वंस की अवैध कार्रवाई के लिए मुआवजे की मांग करते हैं और · उक्त अवैध विध्वंस का आदेश देने वाले दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग करते हैं।
हमारा आग्रह है कि आपराधिक मामले की जांच की निगरानी माननीय न्यायालय द्वारा की जानी चाहिए क्योंकि उदयपुर पुलिस और प्रशासन से निष्पक्ष जांच दूर की कौड़ी लगती है क्योंकि वह आरोपियों के खिलाफ अत्यधिक पूर्वाग्रह दिखला चुके है।
कृपया इसे एक पत्र याचिका के रूप में मानें और माननीय उच्च न्यायालय द्वारा स्वत: संज्ञान लेने के लिए उचित आदेश पारित करें।
सादर, कविता श्रीवास्तव (अध्यक्ष, पीयूसीएल राष्ट्रीय); भंवर मेघवंशी (अध्यक्ष, पीयूसीएल, राजस्थान); अनंत भटनागर (महासचिव, पीयूसीएल, राजस्थान), अरुण व्यास (अध्यक्ष, उदयपुर इकाई), मो. याकूब (महासचिव,उदयपुर इकाई)।