खूबसूरत झीलों की डर्टी पिक्चर

खूबसूरत झीलों की डर्टी पिक्चर

शहर की झीलों को साफ करने के लिए सिर्फ एक ही मशीन का सहारा

 
fatehsagar pichola

झीले सिर्फ पर्यटन ही नहीं बल्कि पेयजल का भी मुख्य स्त्रोत है

उदयपुर 14 जुलाई 2021। झीलों की नगरी के नाम से जाने वाली सिटी उदयपुर नेशनल जियोग्राफो एक्सपेडिशन और द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने दुनिया में 75 खास पर्यटकों को घूमने के लिए आठ देशों में सुन्दर शहर की सूची में अपना नाम दर्ज करवाया। वहीं हाल ही में प्लेनेट डी की ट्रेवल लिस्ट में द 16 मोस्ट रोमांटिक दर्ज करवाने वाला उदयपुर झीलों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध है। 

झीलों की नगरी की खासियत है कि यहां झीले निहारने के लिए विदेशी पर्यटक और हमारे अपने देशवासी भी बार बार उदयपुर की झीलों का रुख करने आते है।चाहे वह फतहसागर का नज़ारा हो या पिछोला का गणगौर घाट पर्यटकों के दिल में एक छवि कैद हो जाती है। लेकिन जब यही झीले साफ नहीं दिखाई देगी तो इस शहर की सुंदरता का क्या फायदा। लेकसिटी की झीले सिर्फ पर्यटन की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं बल्कि शहर की प्यास भी यही झीले बुझाती है। शहर के पेयजल का मुख्य स्त्रोत यहीं झीले है। 

आज हम उदयपुर की झीलों को गौर से देखे तो ख़ूबसूरत झील फतहसागर / पिछोला जाने पर शुरुआत में ही हमें बेहतरीन नज़ारा देखने को मिलेगा, जो कि दिल को बहुत ही सकुन देगा लेकिन आप जैसे ही गलती से नीचे झील में झांकने की जररुत भी की तो जो नज़ारा होगा वो आप को हैरान कर देगा। पानी में आपको कचरा, कांई और जलीय घास के साथ इतनी गंदगी झील किनारे पानी में देखने को मिलेगी। महामारी के इस दौर में यदि झीलों का पानी साफ स्वच्छ नहीं रहेगा तो क्या होगा ? हालाँकि लॉकडाउन में झीलों के पानी फिर भी साफ़ हुआ है लेकिन वर्तमान में पानी में तैरती गंदगी अभी इतनी नहीं फैली हुई है, इसलिए ज़िम्मेदार इन्हे वक्त रहते साफ़ किया जा सकता है। 

हालाँकि झील में सफाई हेतु डिवीडिंग मशीन भी उतारी गई है जो कांई और जलीय घास के साथ कचरा बाहर निकालकर झील के किनारे रख रही है। लेकिन  हैरानी की बात तो यह है कि उदयपुर को झीलों की नगरी कहा जाता है और यहां पिछोला, फतहसागर, स्वरूप सागर, गोवर्धन सागर जैसी झीलों के पानी में लगी कांई को साफ करने के लिए केवल एक मशीन है। इसी मशीन को कभी पिछोला तो कभी फतेहसागर तो कभी कहीं और झील में काम में लिया जाता है। 

अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि झीलों की नगरी कहे जाने वाले शहर में और इतनी बड़ी झीलो को साफ करने में सिर्फ एक मशीन ही हमारे पास मौजूद है। क्या एक मशीन से हम सभी झील को साफ कर सकेगें? और साफ भी करेंगे तो हमें कितना वक्त चाहिए होगा? और सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब झीलों की सफाई की जाती है तो पानी में से निकली गंदगी को सड़क पर रख दिया जाता है। कई बार वही निकाला गया कचरा पुनः झील में समाहित हो जाता है।   

क्या यह कचरा पर्यटकों को दिखाने के लिए रखा जाता है कि यह फतहसागर की सुंदरता है। और वहीं गंदगी 3 या 4 दिनों तक सड़क पर ही पड़ी रहती है। जिसकी बदबू से पास से गुज़रना मुश्किल होता है। झीलों की मेंटेनेंस और रखरखाव की ज़िम्मेदारी लेने वाली यूआईटी और नगर निगम की आँख कब खुलेगी?  क्या जब यहां उदयपुर नेशनल जियोग्राफी एक्सपेडिशन और द वॉल स्ट्रीट जर्नल के 75 खास पर्यटकों को घूमने के लिए यहां भेजा जाएगा तो हम यह सब उनको दिखाएंगे? उन्हें यह बताएगें की यहां की झीलों को साफ करने के लिए हमारे पास सिर्फ एक ही मशीन है? 

झीलों को साफ करने के लिए सिर्फ एक ही मशीन का सहारा  

जब फतहसागर के रखरखाव की ज़िम्मेदारी लेने वाली UIT से इस सन्दर्भ में यूआईटी के अधिकारी विमल मेहता से बात की तो उनका कहना था कि झीलों की सफाई के लिए हमारे पास सिर्फ एक ही मशीन है। उसी मशीन से कभी पिछोला तो कभी फतेहसागर की सफाई की जाती है। झीलों की सफाई करने वाली मशीन एक दिन में कितना कचरा साफ करती है, इसका भी कोई रिकॉर्ड यूआईटी के पास नहीं है। 

यहाँ यह भी कहना ज़रूरी है की झीलो की सुंदरता का ज़िम्मा केवल यूआईटी और नगर निगम का नहीं है। यूआईटी और नगर निगम के साथ साथ झील किनारे बसे होटल्स, रेस्टोरेंट्स और उदयपुर के प्रत्येक नागरिक की ज़िम्मेदारी है। यदि प्रत्येक वर्ग अपनी ज़िम्मेदारी निभाए तो यह झीले और भी संवर जाएगी।  

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