उस्मानी रंग के समापन में " सुन लड़की.. " ने किया दर्शकों को भावविभोर...


उस्मानी रंग के समापन में " सुन लड़की..  " ने किया दर्शकों को भावविभोर...

मौलिक ऑर्गनाइजेशन ऑफ क्रियेटिव एन्ड परफॉर्मिंग आर्ट सोसायटी एवं पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के साझे में दो दिवसीय नाट्य उत्सव "उस्मानी रंग" 

 
usmani rang

उदयपुर। मौलिक ऑर्गनाइजेशन ऑफ क्रियेटिव एन्ड परफॉर्मिंग आर्ट सोसायटी एवं पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के साझे में दो दिवसीय नाट्य उत्सव "उस्मानी रंग" का शिल्पग्राम  में नाटक "सुन लड़की दबे पांव आते है सभी मौसम" के प्रभावी मंचन के साथ  समापन हुआ। 

स्वर्गीय रिज़वान जहीर उस्मान के लिखे नाटक 'सुन लड़की दबे पाँव आते है सभी मौसम' की मंच कल्पना कुछ अलग तरह की थी। शहरी जंगल और राजनैतिक हिंसा की इस कहानी में रंगमंच की सीमाओं के भीतर घटाए जा सकने वाले उत्तेजना के क्षणों को ज्यादा स्थान दिया गया।

स्व. रिजवान जहीर उस्मान की ओर से सन् 1980 में लिखित यह नाटक आज भी प्रासंगिक लगा। दो दिवसीय नाट्य समारोह उस्मानी रंग के तहत रविवार को दर्पण सभागार में शिवराज सोनवाल के  सशक्त निर्देशन में मौलिक नाट्य समूह की प्रस्तुति 'सुन लड़की दबे पांव आते है सभी मौसम नाटक का मंचन किया गया। 

शोषक कितना शानदार शोषक और अत्याचारी कितने दयावान है यह लेखक ने इस नाटक में व्यंगात्मक संवादों से समझाने की कोशिश की। जिन जीवन मूल्यों को व्यक्ति दूसरों के परिप्रेक्ष्य में सही मानता है, उन्हे ही अपने हितों की पूर्ति में गलत साबित कर देता है। स्थाई जीवन मूल्यों को बनाए रखना किसी संघर्ष से कम नहीं है और हर किसी के बस की बात भी नहीं। लेखक ने इसे भी निरपेक्ष भाव से अभिव्यक्त करने का प्रयास अपने किरदारों के माध्यम से किया है।

पथ भ्रष्ट युवाओं का सीमा पर आतंकवाद एक निर्विवाद समस्या है और यह निंदनीय है। हर सरकार अपने स्तर पर इससे जूझती रही है। पर यह नाटक हमारे आस-पास, हर शहर और कस्बों के मुख्यधारा से भटके उन युवाओं की ओर इंगित करता है जिन्हें राजनैतिक संरक्षण प्राप्त हैं। जिसको युवा सही या गलत समझ ही नहीं पाते हैं और जब तक समझते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। 

निर्देशकीय सूझ-बूझ औऱ युवा कलाकारो के कमाल के अभिनय से दृश्यो का ऐसा प्रभाव दर्शकों पर नज़र आया कि हर बदलते दृश्य के साथ दर्शक नाटक से गहराई से जुड़ता चला गया। शिवराज सोनवाल की ओर से नाटक के शीर्षक पर लिखे गीत सुन लडक़ी की धुन को दर्शक कलाकारों के साथ गुनगुनाते नज़र आये। मौलिक समूह की बाल कलाकार काव्या हरकावत का अंत मे अपने पिता के शव के पास आकर पूछना .... पापा तितलियां कैसे उड़ती है...बताओ ना पापा.. तितलियां कैसे उड़ती है ...दर्शकों की आँखे नम कर गया...।

रंगकर्मी की भूमिका मे अपने अभिनय से शुभम आमेटा ने गहरी छाप छोड़ी वहीं शिबली खान, सचिन भण्डारी, रवि सेन ने तीन भटके हुए युवकों के अपने किरदारों में अभिनय के नए प्रतिमानों को छुआ। पलक कायथ, काव्या हरकावत, अपूर्व गौतम, कृतिका शाह, चिन्मयी चतुर्वेदी, रिमझिम जैन, जतिन भारवानी, राहुल जोशी, अनिल दाधीच ने नाटक के अन्य पात्रों को अपने जीवन्त अभिनय से बखूबी साकार किया।

मुख्य निर्माण प्रबंधक रेखा शर्मा, संगीत संचालन भूपेन्द्र चौहान व कुलदीप धाबाई, मंच परिकल्पना संदीप सेन, विजय लाल गुर्जर, रुप सज्जा रेखा सोनवाल, प्रकाश परिकल्पना हेमन्त मेनारिया व महेश आमेटा तथा शीर्षक गीत शिवराज सोनवाल का था। नाट्य समारोह के समापन के गणमान्य अतिथि राज्य प्रशासनिक सेवा की अधिकारी मोनिका जाखड़, हेमंत द्विवेदी व वरिष्ठ कवि गोविंद माथुर उपस्थित थे।

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