उदयपुर 30 दिसंबर 2021 । ओटीटी के इस दौर ने देश की कला-संस्कृति और साहित्य को बड़ा नुकसान पहुंचाया है, ऐसे में राजस्थान की समृद्ध कला-संस्कृति के साथ परंपरागत गायन शैली को बचाने की सख्त जरूरत है। यह विचार उदयपुर के तीन दिवसीय प्रवास पर पहुंचे अजमेर निवासी ख्यात गजल गायक नवदीप सिंह झाला ने गुरुवार को मीडियाकर्मियों से रूबरू होते हुए व्यक्त किए।
देशभर में गजल, मांड, ठुमरी और भजन सहित कई विधाओं में गायन करने वाले झाला ने कहा है कि इन दिनों गजल गायकी बड़ी ही महत्वपूर्ण विधा है, यह समर्पण मांगती है। इसके लिए उभरते गायकों को पूरी शिद्दत से रियाज़ करने और इसमें अपना कौशल निखारने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि राजस्थान की परंपरागत गायन शैली का अपना वजूद है, इसमें गायन करने वाले चंद लोग ही मौजूद है जो कि इस समृद्ध संस्कृति को आने वाली पीढ़ी को बता पाएंगे। इस मौके पर उनकी धर्मपत्नी निधि सारस्वत भी मौजूद रही।
अपनी उदयपुर यात्रा दौरान मांड गायन की समृद्ध शैली और यहां की मांड गायिका मांगी बाई आर्य का स्मरण किया। इस दौरान उन्होंने उदयपुर की मांड गायकी का मुजाहिरा किया और बताया कि राजस्थान में भिन्न भिन्न प्रकार के मांड हैं जिनमें जैसलमेर, उदयपुर, शेखावाटी और जयपुर-बीकानेर के मांड श्रोताओं के बीच खासे प्रसिद्ध हैं।
उन्होंने बताया कि उन्होंने उस्ताद यासिन खां साहब, सीकर वालों से तालीम हासिल की और इसके बाद उस्ताद अखलाक हुसैन वारसी से अपने कौशल में निखार पाकर वर्तमान में वे देश के प्रसिद्ध भजन गायक पद्मश्री अनूप जलोटा के सानिध्य में गजल और भजन गायकी की तालीम ले रहे हैं।
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