1950 में निगला दो आने का सिक्का 2020 तक था पेट में

1950 में निगला दो आने का सिक्का 2020 तक था पेट में

गीतांजली के गैस्ट्रो विभाग ने 72 वर्षीय वृद्ध महिला की छोटी आंत में 70 वर्षों से आँतों में फंसा हुआ दो आने का सिक्का सफलतापूर्वक निकालकर दिया रोगी को जीवनदान
 
1950 में निगला दो आने का सिक्का 2020 तक था पेट में
रोगी जब 2 वर्ष की थी तब उसे उसने एक सिक्का निगल लिया था, जोकि पिछले 70 वर्षों से उसके पेट में था।

गीतांजली मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल उदयपुर में कोरोना महामारी के समय में सभी आवश्यक नियमों का पालन करते हुए निरंतर जटिल ऑपरेशन व आवश्यक इलाज किये जा रहे हैं। गीतांजली हॉस्पिटल के गैस्ट्रोलोजिस्ट डॉ. पंकज गुप्ता, व डॉ. धवल व्यास, गैस्ट्रो सर्जरी विभाग से सर्जन डॉ. कमल किशोर बिश्नोई, एनेस्थेसिस्ट डॉ. करुणा शर्मा, आई.सी.यू इंचार्ज डॉ. संजय पालीवाल व ओ.टी. इंचार्ज हेमंत गर्ग के अथक प्रयासों से उदयपुर निवासी 72 वर्षीय रोगी की आंत में से 70 वर्ष पूर्व निगला हुआ सिक्का निकालकर सफलतापूर्वक इलाज कर उसे नया जीवन प्रदान किया गया। 

रोगी की आपबीती:

रोगी ने बताया कि वह 72 वर्ष की हो चुकी हैं और मात्र 2 वर्ष की आयु में सिक्के को निगल जाने की परेशानी से वह आये दिन पेट के असहनीय दर्द से झूझ रही थी जिसके कारण खाना नही खा पाती थी और हर समय कमज़ोरी महसूस होती थी जिससे कि हर थोड़े अन्तराल में हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ता था। अन्य निजी अस्पताल में डॉक्टर को दिखाने पर भी किसी तरह का सम्पूर्ण इलाज नही हुआ, 30 वर्ष पूर्व जब अपेन्डिक्स का ऑपरेशन हुआ परन्तु तब भी सर्जन द्वारा सिक्का नही निकाला गया व सभी सुविधाओं से लेस हॉस्पिटल में जाने की सलाह दी गयी। 

गैस्ट्रो एक्सपर्ट डॉक्टर्स द्वारा कैसे हुआ सफल इलाज:

डॉ. पंकज ने बताया कि जब रोगी कांता बाई (परिवर्तित नाम) जब 2 वर्ष की थी तब उसे उसने एक सिक्का निगल लिया था, जोकि पिछले 70 वर्षों से उसके पेट में था। रोगी द्वारा ये जानकारी देने के पश्चात् सर्वप्रथम रोगी की पेट का एक्स-रे किया गया और सी.टी स्कैन भी किया गया। इन जांचो के पश्चात् रोगी की छोटी आंत के अंतिम हिस्से में सिक्के के होने का पता चला। चूँकि इतने लम्बे समय से सिक्का पेट में था इसी कारण उसने अन्दर रहते हुए आंत में जगह जगह घाव कर दिए और आंत में बहुत जगह रुकावट हो गयी थी, रोगी की सिक्के की वजह से 2 फीट की आंत प्रभावित हो चुकी थी। एंडोस्कोपी द्वारा भी सिक्के को निकालने की पूरी कोशिश की गयी परन्तु आँत के रुके होने की वजह से सिक्के तक नही पहुंचा जा सका, फिर सर्जरी करने का निर्णय लिया गया। गैस्ट्रो विभाग टीम ने मिलकर रोगी की सर्जरी की और आंत मे से सिक्के को बाहर निकाला और साथ ही जो आंत का 2 फीट का हिस्सा जोकि सड़ चुका था व सिकुड़ चुका था उसे भी सफलतापूर्वक बाहर निकाला गया। 

इस मसले पर और प्रकाश डालते हुए डॉ.कमल ने कहा कि यदि कभी भी किसी भी व्यक्ति द्वारा अखाद्य वास्तु पेट में गलती से चली जाये तो उसे हलके में नही लेना चाहिए, तुरंत हॉस्पिटल के गैस्ट्रो विभाग में जाकर एक्स-रे व सी-टी स्कैन करवाना चाहिए क्यूंकि आजकल ये जाँच आसानी से उपलब्ध है, और यदि व्यक्ति बिना देर किये होस्पिटल में आ जाये तो आसानी से बिना ऑपरेशन किये भी अखाद्य वस्तु को बाहर निकाला जा सकता है और यदि जरूरत पड़े तो सर्जरी भी की जा सकती है जैसा कि इस रोगी के केस में किया गया। उन्होंने ये भी बताया कि गीतांजली हॉस्पिटल के गैस्ट्रोलोजी विभाग में गैस्ट्रोलोजिस्ट व गैस्ट्रो सर्जन की टीम द्वारा एक ही छत के नीचे मिलकर रोगियों का इलाज किया जाता है। 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गीतांजली मेडिसिटी पिछले 13 वर्षों से सतत् रूप से मल्टी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के रूप में परिपक्व होकर चंहुमुखी चिकित्सा सेंटर बन चुका है। यहाँ एक ही छत के नीचे जटिल से जटिल ऑपरेशन एवं प्रक्रियाएं निरंतर रूप से कुशल डॉक्टर्स द्वारा की जा रही हैं। गीतांजली के गैस्ट्रो विभाग की कुशल टीम के निर्णयानुसार रोगीयों का सर्वोत्तम इलाज निरंतर रूप से किया जा रहा है जोकि उत्कृष्टा का परिचायक है। 

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