उदयपुर, 12 जून 2021। वर्ष 1916 में महाराणा प्रताप जयंती महोत्सव आयोजन के लिए उदयपुर में कोई ऐसा सार्वजनिक स्थान नहीं था जहाँ बड़े स्तर पर सार्वजनिक सभा, मनोरंजन के कार्यक्रम व विरोध प्रदर्शन किए जा सके, प्रताप सभा के माध्यम से आजादी के आंदोलन के संचालन के लिए कभी सज्जन यंत्रालय, कभी नई सराय, कभी शाहपुरा नरेश की हवेली, तो कभी महलों के फर्राशखाने में कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। तत्कालीन नगरसेठ श्री श्रीगोपाल मोहता अपने व्यवसाय के साथ ही प्रताप सभा तथा आजादी के आंदोलन मे भी सक्रिय रूप से जुड़े रहे। महाराणा भूपाल सिंह के बाद प्रताप सभा के मुख्य संरक्षक मोहता जी ही थे।
1944 के बाद जब आजादी का आंदोलन अपने चरम पर था तब प्रताप जयंती के अधिकांश कार्यक्रम वर्तमान में सूचना केन्द्र के पार्श्व में स्थित ‘रंगमंच’ से संचालित किए जाते थे। देश के बड़े-बड़े नेता इसी रंगमंच से ना सिर्फ प्रताप को नमन करते थे बल्कि उनके आजादी के आदर्शों का अनुसरण करने को प्रेरित करते थे। आजादी के बाद भी कई दशकों तक मोहता पार्क ना सिर्फ मनोरंजन व सभाओं का एक मात्र मंच था बल्कि कई हिन्दी फिल्मों के गानों का फिल्मांकन भी इसी रंगमंच से किया गया था।
प्रताप जयंती की पूर्व संध्या पर “मोहता पार्क रंगमंच, प्रताप जयंती और आजादी के आंदोलन का चश्मदीद गवाह” विषय पर सूचना केंद्र द्वारा आयोजित वर्चुअल संगोष्ठी में प्रोफेसर महेश शर्मा ने यह विचार व्यक्त किए।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए ख्यातनाम इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू ने बताया कि महाराणा फतहसिंह जी के समय से ही मेवाड़ में स्वतन्त्रता का आंदोलन तेज हो चुका था, प्रजामंडल का आंदोलन चुनौती पूर्ण परिस्थितियाँ पैदा कर रहा था। जहाँ एक ओर प्रजा मंडल के बैनर तले सीधा संघर्ष किया जा रहा था वहीं शहर के युवाओं द्वारा प्रताप के स्वतंत्रता के सिद्धांतों की आड़ में 1916 से ही प्रताप सभा के माध्यम से स्वतंत्रता की अलख जगाई जा रही थी।
मेवाड़ रियासत के साथ ही अंग्रेजी हुकूमत के दौर में महाराणा प्रताप को आजादी के सिद्धांतों को आदर्श के रूप में स्थापित करना आसान काम नहीं था। प्रताप सभा के संस्थापक पंडित शिवनारायण शर्मा ने इसके लिए लम्बी लड़ाई लड़ी, जहाँ एक ओर प्रताप के व्यक्तित्व के गुणगान करने पर महाराणा द्वारा उन्हें सहायता व सम्मान मिलता था, वहीं उनके आदर्शों की बात करने पर उसे आजादी के आंदोलन का हिस्सा मानते हुए उन्हें कई बार जेल भेज दिया जाता था।
आरम्भ में प्रताप सभा का संचालन पंडित जी कोलपोल स्थित अपने आवास से ही करते थे तथा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कई भगोड़े घोषित क्रान्तिकारियों को कई बार अपने आवास में छुपाकर रखा था। आजादी के आंदोलन को गति देने के लिए व ब्रिटिश राज के खिलाफ युद्ध छेड़ने की मंशा से हथियार खरीदने के लिए वर्ष 1925 में काकोरी रेल्वे स्टेशन पर चैन खींच कर व ट्रेन पर धावा बोल कर सरकारी खजाना लूटने वाले चंद्रशेखर आजाद के कुछ साथियों को अपने कोलपोल स्थित घर में छुपाकर रखने की हिम्मत पंडित शिव नारायण शर्मा ने की थी, जबकि इससे पूर्व चाँदनी चौक में बम विस्फोट के क्रांतिकारियों मास्टर अमीरचन्द, अवध बिहारी व अन्य को शरण देने के आरोप में पंडित जी को एक माह तक नजरबंद रखा गया था।
इसी प्रकार 1916 में होम रूल लीग के साहित्य का प्रचार करने पर भी प्रताडि़त कर जेल में डाले गए थे। वर्ष 1919 में बम्बई में श्रीमती सरोजनी नायडू द्वारा आजादी के उद्देश्य से संचालित स्वराज संघ के स्वयंसेवक बनने पर तीन माह के भीतर ही बम्बई पुलिस द्वारा उन्हें उदयपुर लाकर पुलिस को सौंपा गया जहाँ उन पर अमानुषिक अत्याचार किए गए थे।
उसी वर्ष भील नेता मोतीलाल तेजावत के साथ भील आंदोलन का नेतृत्व करने के फलस्वरूप भी एक माह तक “पचासों के पहरे में” रखा गया था, तथा इसी प्रकार श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के मेवाड़ आगमन पर अगुवाई करने की सजा के तौर पर चार घंटे धूप में नंगे पैर खड़ा रहने की सजा भी मिली थी तथा आइंदा आजादी के आंदोलन में भाग लेने पर जमीन जायदाद की कुर्की की धमकी व प्रताडि़त किए गए, किंतु पंडित जी के जज्बे को कोई भी सजा तोड़ नहीं पाई। पुनः अर्जुनलाल सेठी के आगमन पर क्रांतिकारी दल गठित करने के प्रयास के कारण अत्याचार के शिकार हुए व जेल भेज दिए गए।
इस प्रकार 20वीं सदी के पूर्वार्ध में महाराणा प्रताप जयंती समारोह के आयोजन पर पूरी राज सहायता उपलब्ध थी किंतु उनके आजादी के सिद्धांतों व स्वातंत्रर्य प्रेम की बात करना अपराध की श्रेणी में आकर जेल में “पचासों के पहरे में” सजा काटनी होती थी।
संगोष्ठी में इतिहाकार डॉ.देव कोठारी ने बताया कि उद्योगों के अभाव में जब मेवाड़ में राजस्व के साधन लगातार घटते जा रहे थे तब सेठ श्री गोपाल मोहता का 1941 में उदयपुर आना चमत्कारिक था, जावर माइन्स जो लगभग एक सदी तक गुमनामी के अंधेरे में खो गई थी उसे पुनः खोजने व वैज्ञानिक तरीके से खनन प्रारम्भ करने का श्रेय मोहता जी को जाता है। हालांकि जावर के मंदिरों के शिलालेखों से ज्ञात हुआ कि यहां के खनिज भंडारों की जानकारी व खनन 14 वीं सदी से बहुत पहले से थी। इस प्रकार यहाँ के पुरातन लोगों ने लगातार खनन किया जो 1812-13 के भयंकर अकाल तक निरंतर चलता रहा किंतु इस अकाल के कारण यह खनन बंद हो गया।
इस प्रकार राणा लाखा के समय से 400 वर्षों तक लगातार खनन के बाद यहाँ 1812 के बाद 1940 तक खनन के कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। अतः जावर में खनन का सम्पूर्ण श्रेय श्री श्रीगोपाल मोहता को जाता है। उन्होंने महसूस किया कि आजादी के आंदोलन को “गुप्तरूप से” सार्वजनिक तौर पर आयोजित करने के लिए एक सभागार व मंच की जरूरत है तो उन्होंने मोहता पार्क का निर्माणकर वहाँ पर खुले रंगमंच का निर्माण करवाया ।
संगोष्ठी में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के उपनिदेशक डॉ. कमलेश शमा ने कहा कि नगर सेठ श्री श्रीगोपाल मोहता के द्वारा बनवाया गया मोहता पार्क ऐतिहासिक गतिविधियों का गवाह है और अब तक अपने निर्माण की हीरक जयंती मना चुका है। संरक्षण के प्रयासों के कारण अपने निर्माण के 77 वर्ष बाद भी उसी आकार-प्रकार में स्थित यह मंच व पार्क सदियों पुराने इतिहास को अपने में समाहित किए हुए हैं। यह आजादी के आंदोलन का सबसे बड़ा छद्म मंच था जहां प्रताप जयंती के आयोजन के माध्यम से लोगों में आजादी की भावना को जागृत किया जाता था।
डॉ. शर्मा ने संगोष्ठी में शामिल विद्वानों द्वारा दी गई जानकारी के लिए आभार जताया और कहा कि इस जानकारी के माध्यम से मोहता पार्क व रंगमंच पर एक विशेष पुस्तक व डॉक्यूमेंट्री तैयार करवाई जाएगी ताकि आने वाली पीढ़ी को अपने समृद्ध इतिहास से साक्षात कराया जा सके।
संगोष्ठी का संचालन सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी विपुल शर्मा ने किया जबकि आभार की रस्म सूचना केन्द्र के सहायक लेखाधिकारी दिनकर खमेसरा ने अदा की। इस संगोष्ठी में शहर के कई विद्वान और इतिहास शोधार्थी भी जुड़े रहे।
To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on GoogleNews | Telegram | Signal