नवाब शफात अली खान एक ऐसे मार्क्समैन, जिन्होंने सैंकड़ो आदमखोर जंगली जानवरों को पहुँचाया उनके अंजाम तक


नवाब शफात अली खान एक ऐसे मार्क्समैन, जिन्होंने सैंकड़ो  आदमखोर जंगली जानवरों को पहुँचाया उनके अंजाम तक 

 
Nawab Shafath Ali Khan Shooter Leopard

उदयपुर। देश के के जाने माने वाइल्ड लाईफ कन्जर्वेशनलिट और मार्क्समैन (शूटर) और हैदराबाद के एक कुलीन परिवार के वंशज 67 वर्षीय नवाब शफात अली खान वो शख्सियत है जो जंगली जानवरों को उस वक़्त मार गिराते है जब वो लगों की जान के लिए खतरा बन जाते है। उन्होंने देश के कई ऐसे विशेष ऑपरेशन में हिस्सा लेकर आदमखोर जानवरों का सामना करते हुए उन्हें उनके अंजाम तक पहुँचाया है। ऐसे ही एक ऑपरेशन का हिस्सा बनकर उनका उदयपुर आना हुआ जिस दौरान उन्होंने अपने जीवन की कुछ बातें उदयपुर टाइम्स की टीम के साथ सांझा की। 

उन्होंने बताया की उनके दादा नवाब सुल्तान अली खान बहादुर ब्रिटिश सरकार के एडवाइजर हुआ करते थे, उस ज़माने में जब ट्रंक्युलाइजर नहीं हुआ करते तब और जो जंगली जानवर मेन ईटर हो जाते थे ख़ासकर टाइगर्स, हाथी वगैरह तो उन्हे गेनरसल्ली मार दिया जाता था या फिर उन्हें हटा दिया जाता था, और ये सभी बातें घर के डाइनिंग टेबल पर हुआ करती थी की एक टाइगर आदमखोर हो गया, एक हाथी बिगड़ गया ये ही सुनते हुए बड़े हुए।  

उन्होंने कहा की पांच साल की उम्र में उन्होंने राइफल शूटिंग में पुरस्कार जीता। उनकी उम्र 20 साल की थी जब उन्होंने मैसूर में एक हाथी  ने 12 आदमियों की जान ले ली,  उन्हें वो पहला मौका मिला जब उन्होंने उस हाथी की पहचान कर पीछा कर करके उनको मारा, ये घटना एक बड़ी न्यूज बनी और उसके बाद तो देश के अलग अलग राज्यों से प्रांतों से फोन आने लगे और 20 साल का वो वक़्त था जब उन्हें बन्दुक का लाइसेंस मिला और ऐसे उनका ये सफर शुरू हुआ। और अब  लगभग चार दशकों तक नरभक्षी बाघों और तेंदुओं, उत्पाती हाथियों, जंगली सूअरों और नीलगाय (नीले बैल) का पता लगाने और उन्हें खत्म करने के अनुभव ने उन्हें वन्यजीव विशेषज्ञ बना दिया है, जिसके पास जानवरों के संकेतों से उनका आकार पहचानने की अद्भुत क्षमता है। साथ ही इतने ऑपेरशन करने के बाद अब वो काफी सख्त हो गए हैं।  

Nawab Shafath Ali Khan

उन्होंने बताया की उनके नाम 40 ऑपरेशन दर्ज हैं। और उनका दावा है की उन्होंने कभी किसी गलत जानवर पर गोली नहीं चलाई। साथ ही वे वन्यजीव प्रबंधन और मानव-पशु संघर्ष के प्रबंधन पर कई सरकारों के वन विभागों का सलाहकार हैं। उन्होंने बताया की उनके पसंदीदा हथियार .458 मैग्नम राइफल और .470 डबल बैरल राइफल हैं। उनका कहना है कि वे आवारा जानवरों को मारने के लिए कोई पैसा नहीं लेते हैं।

जब इस तरह के ख़तरनाक जंगली जनवरों का सामना करने और उनको मारने को लेकर उनके परिवार के रिएक्शन के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा की , परिवार के लोगों को तो हमेशा उनकी चिंता रहती है, वो बोले " बेगम साहिबा हमेशा कहती है, की अब आप इतना रिस्क लेना बंद कर दीजिये"। लेकिन वो हमेशा इस सोच से जाते हैं की जिस जगह प्रॉब्लम हो रही है उस से वहां के लोकल लोगों को निजात दिला सकें, उनके चेहरे पर एक बार फिर मुस्कान ला सकें। 

नवाब साहब ने उदयपुर टाइम्स को बताया की "मैं दशकों से यहाँ रह रहा हूँ। जब मैं सुबह की सैर पर निकलता हूँ, तो अक्सर मुझे बाघ या हाथी दिखाई देता है। अगर मुझे कोई नहीं भी मिलता, तो मैं पैरों के निशानों से बता सकता हूँ कि यह बाघ है या बाघिन और हाथी के पैरों के निशानों से मैं हाथी की ऊँचाई बता सकता हूँ।"

उन्होंने कहा की हर ऑपरेशन अपने आप में इम्पोर्टेन्ट है, उन्होंने उदयपुर की घटना का उदहारण देते हुए उन्होंने कहा की इतने दिनों से सारा प्रशासन, वन विभाग के अधिकारी सभी लगे हुए है लेकिन उस आदमखोर लेपर्ड को पकड़ नहीं पा रहे है, ऐसे में वो जब ऐसी घटनाओं पर जातें है तो उनके पास उपलब्ध संसाधनों के जरिये और अपने अनुभव से उस आदमखोर जानवर की पहचान कर उस से निपटते है और उस ऑपरेशन को अंजाम देते हैं। इसी लिए एक ऑपेरशन अपने आप में एक नया चेलेंज होता है। 

उन्होंने बताया की उन्होंने जिंदगी में बहुत रिस्क लिया है। एक घटना में टाइगर ने हाथ पर हमला किया, एक जंगली भैंस (बफ़ेलो) के रेस्क्यू के दौरान उसने सींग से पैर पर हमला किया जिसके बाद 1.5 महिने तक हॉस्पिटल में इलाज के लिए रहना पड़ा।  

उन्होंने कहा की जिस लेपर्ड ने उदयपुर ले गोगुन्दा में महिला को मारा था, उसका हमें लगातार अलार्म लंगूर और दूसरे जानवरों की मूवमेंट के जरिये मिल रहा था लेकिन एक किसी जवान ने उस पर फायर कर दिया जिस से वो वहां से भाग गया और, अब वो और अलर्ट हो जाएगा, उन्होंने कहा की जब भी किसी ऑपरेशन में इंसान गलती करता है तो वो हमारा नुक्सान है। और ऑपेरशन और मुश्किल होता जाता हैं। 

उन्होंने बताया की वो नशा तो नहीं करते लेकिन उन्हें रिस्क लेना पसंद है, जिस ऑपरेशन में जितना रिस्क होता है तो उनका एड्रेनिल हारमोन उतना ही बढ़ जाता है।  

उत्तर प्रदेश के गांव में हाल ही में हुए आदमखोर भेड़ियों के आतंक में भी नवाब साहब ने एक अहम् योगदान दिया, उन्होंने वहां की टीम को अपने अनुभव से बताया कि कहाँ केज लगाए जाने चाहिए, कैसे उनकी पहचान करनी चाहिए कैसे ऑपरेशन को आगे बढ़ाना चाहिए इसके बारे में बताया जिस से उन्हें सफलता हासिल हुई।  

अपनी नयी जनरेशन के बारे में बात करते हुए नवाब साहब ने बताया की उनके बेटे असग़र अली खान को भी इस काम में दिलचस्बी है और वो कई ऑपरेशन में उनके साथ रहें हैं, वैसे आम दिनों में वे बिजनेस संभालते है।  

उन्होंने कहा की इस तरह के वाइल्ड एनिमल और ह्यूमन कॉन्फ्लिक्ट की समस्या और बढ़ने वाली है, जैसे की मानव आबादी भी बढ़ रही है और जानवरों की भी। जंगल कट रहे है, जानवरों को खाने के लिए खाना नहीं मिल पा रहा, फ़ूड चैन पूरी तरह से प्रभावित हो गई है। इस बारे में टाईगर का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा की औसतन, एक टाईगर सप्ताह में एक बार शिकार करता है और एक टाईगर को जीवित रहने के लिए साल में कम से कम 52 बड़े शिकार की आवश्यकता होती है। जब शिकार का आधार कम हो जाता है तो टाईगर अपने क्षेत्र से बाहर निकल जाता है, मवेशियों को उठाना शुरू कर देता है, मनुष्यों के साथ संघर्ष करता है और नरभक्षी बन जाता है। उन्होंने कहा साल 2005 में महाराष्ट्र में 100 टाईगर थे आज उनकी संख्या घटकर 40 हो गई। 2023 में लगभग 100 टाइगर्स को लोगों ने जहर दे कर या करंट लगा कर मार दिया, ये सभी बात चिंता जनक है। उन्होंने कहा की अगर वाइल्ड लाफ वार्डन को क़ानूनी पावर है अगर वो उसका सही वक़्त पर इस्तेमाल करके सही निर्णेय नहीं ले तो फिर लोग सभी लेपर्ड को परेशान होकर ज़हर देकर मार देंगे। जिसका बाप मर रहा है, जिसका बेटा मर रहा है, उस आदमी से फिर आप किसी कारण की बात नहीं कर सकते।  

उदयपुर की वर्तमान स्थिति के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा की एक महिला अपने घर के आँगन में काम कर रही है, उसकी क्या गलती थी, लेपर्ड आता है और उसे मोत के घात उतार देता है, वो बोले बेचारे उस पुजारी की क्या गलती थी वो तो अपने मंदिर के बाहर सो रहा था, ऐसी घटनाए होती है और सारा प्रशासन सो रहा है, क्या ये अमेरिका में मुमकिन है ? क्या ये  किसी भी एडवांस देश में मुमकिन है की कोई जंगली जानवर 8 लोगों को मार दे और सारा प्रशासन खामोश रहे ? हम अपनी जनता को, अपने आदिवासी भाई बहनो को हमारे वन प्रेमी भाइयों को जानवरों का दुश्मन बना दिए, जबकी ये ही वो लोग है जिन्होंने ने कई पीढ़ियों से जंगलों को बचाया है, ये लोग ही सही मायने में जंगल को बचने वाले लोग हैं।  इन्होने ही पेड़ लगाए है, जंगलों की रक्षा की है। उन्होंने कहा की 2023 में 70-80 हाथी मर गए हैं, कई लोग हाथियों द्वारा मार दिए गए हैं, 100 से ज्यादा टाईगर-लेपर्ड जहर देने या करंट से मारे गए है। तो ये ह्यूमन- एनिमल कॉन्फ्लिक्ट कहां रुके ?

वनपालक .303 राइफल या सेल्फ-लोडिंग राइफल जैसे हथियार इस्तेमाल करते हैं, जिन्हें औसतन 60 किलो वजन वाले इंसान के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। एक उग्र बाघ या एक दुष्ट हाथी को मारने के लिए जो अचानक आप पर हमला कर सकता है, आपको विशेष शिकार राइफलों की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, मुझे जानवरों पर नज़र रखने का दशकों का अनुभव है और मैं जानवरों के व्यवहार और जंगल के तौर-तरीकों से परिचित हूँ और ये ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें सिखाया नहीं जा सकता, यही वजह है कि सरकारें मेरी सेवा चाहती हैं।"


 

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