शहर की आरएनटी मेडिकल कॉलेज के जन स्वास्थ्य प्रयोगशाला में तीन नई अत्याधुनिक मशीने आई है। इन मशीनों से खाद्य पदार्थों में विभिन्न प्रकार के धातु, पेस्टीसाइड, एंटीबायोटिक आदि की मात्रा जांची जाएगी। सबसे खास बात यह है कि इन मशीनों के आने के बाद अब अनाज और सब्जियों की जांच भी हो सकेगी। प्रदेश में अब तक ऐसी मशीने नहीं थी। ऐसे में इन वस्तुओं के सैंपल भी नहीं लिए जा रहे थे। अब जयपुर, जोधपुर और उदयपुर में ये मशीने लगाई गई है। तीनों मशीनों की लागत करीब 7 करोड़ रुपए है।
इस मशीन से खाद्य पदार्थों में मेटल्स (धातुओं) की जांच की जाती है। जैसे क्राेमियम, लेड, आर्सेनिक, मर्करी, कॉपर आदि ट्रेक मेटल्स की जांच पीपीएम व पीपीबी में की जाती है। सब्जी, फल, अनाज, तेल, आटा, दूध, मावा, पनीर आदि खाद्य पदार्थों में घातक धातुओं की जांच माइक्रोग्राम स्तर तक की जाती है।
मिलावट का शरीर पर प्रभाव
एफएसएलएआई द्वारा तय मानक से ज्यादा मात्रा में पाए जाने पर ये शरीर के लिए घातक होते हैं। इन घातक मेटल्स की मात्रा खून में ज्यादा जाने पर कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की आशंका बढ़ती है। क्रोमियम धातु से त्वचा के गंभीर रोग होते हैं। लेड की अधिक मात्रा से मस्तिष्क की बीमारियां होती है। आर्सेनिक से गुर्दे की गंभीर बीमारियां बढ़ जाती है। पारे की मात्रा खून में जाने से पर्किनस रोग हो जाता है।
इस उपकरण द्वारा साबूत अनाज, फलों, सब्जियों, तेलों, दूध, दूध से बने पदार्थों में पेस्टिसाइड्स की मात्रा पीपीएम-पीपीबी लेवल पर जांच की जाती है। इससे दैनिक जीवन में खाने में उपयोग आने वाली खाद्य वस्तुओं में पेस्टीसाइड की मात्रा कितनी है इसका पता लगाया जा सकता है। इस उपकरण द्वारा 250 से अधिक प्रकार की जांच की जाती है।
मिलावट का शरीर पर प्रभाव
ज्यादा मात्रा में पेस्टीसाइड की मात्रा लीवर, वृक्क, मस्तिष्क के लिए घातक होती है। इससे किडनी स्टोन, लीवर स्टोन, मधुमेह, कैंसर व हड्डियों की बीमारियों होती है।
इस उपकरण द्वारा सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों जैसे दूध व दूध से बनी वस्तुएं, अनाज, तेल, घी, मावा, पनीर, सब्जी, फल, तिलहन आदि में माइक्रोटॉक्सिन्स (एफलाटोक्सीन्स), पेस्टीसाइड्स, एंटीबायोटिक्स, हार्मोन्स आदि की जांच की जाती है। मूंगफली जैसे बीज जिनसे तेल निकलता है। अनाज, दूध आदि में माइक्रोटोक्सिन्स की जांच की जाती है। जो शरीर के लिए हानिकारक होते हैं।
मिलावट का शरीर पर प्रभाव
इससे उल्टी, दस्त, जी मचलाना, जैसे लक्षण नजर आते हैं। ज्यादा मात्रा से कैंसर, लकवा जैसी गंभीर बीमारियां भी हो सकती है। दूध व अन्य पदार्थों में विभिन्न प्रकार की एंटीबायोटिक्स जैसे स्ट्रेप्टोमाइसिन, टेट्रासायक्लिन, एमोक्सिसिलिन, एजिसोमाइसिन आदि की जांच पीपीबी लेवल पर की जाती है। जिनका अधिक मात्रा में सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है।
इस उपकरण में ऑक्सीटॉसिन जैसे हार्मोन इंजेक्शन की जांच की जाती है। जो पशुओं को ज्यादा दूध निकालने में उपयोग किया जाता है। पशुओं व खेतों के माध्यम से आने वाले सभी तरह के पेस्टीसाइड, वेटेनरी ड्रग्स, हार्मोन आदि की मात्रा की 24 घंटे में जांच हो जाती है।
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