प्रदेश की राजनीति में उठा बवंडर थमने का नाम नहीं ले रहा। गाँधी परिवार कल तक जिन्हे कांग्रेस की बागडोर सम्भालने की ज़िम्मेदारी सौंप रही थी आज वहीँ कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभर रही है। गहलोत के दिल्ली जाने की सम्भावनाओ के बीच गाँधी परिवार राजस्थान के सीएम पद की कुर्सी युवा सचिन पायलट को थमाने का मन बना चुकी थी लेकिन पिछले दो दिनों में गहलोत समर्थको की धमाचौकड़ी ने पहले से लहूलुहान कांग्रेस के ज़ख्मो पर नमक छिड़कने का ही काम किया है।
गहलोत समर्थको के इस्तीफे की प्रेशर पॉलिटिक्स से न सिर्फ राजस्थान के सीएम का पद बल्कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव की स्थितियां भी पेचीदा हो गई है। गहलोत समर्थको के इस क़दम से आलाकमान भी नाराज़ है। एक तरफ जहाँ राहुल गाँधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' को भाव मिलना शुरू ही हुआ था कि कॉंग्रेसियों की आपसी खींचतान ने उस भाव को आसमान से ज़मीन पर ला पटका और यहीं खींचतान कांग्रेस तोड़ो अभियान पर स्वतः ही निकल पड़ी है।
राजस्थान में जो स्थिति उत्पन्न हुई है उसका सीधा सीधा फायदा भाजपा को न सिर्फ प्रादेशिक स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी मिलेगा। कांग्रेस के पास अभी सिर्फ दो राज्य बचे है राजस्थान और छत्तीसगढ़ उनमे से भी राजस्थान से उठा बवंडर कहीं पूरी कांग्रेस को न ले उड़े।
इसी वर्ष गुजरात हिमाचल जैसे राज्यों में चुनाव होने है भाजपा का मुकाबला किसी क्षेत्रीय पार्टी से नहीं कांग्रेस से ही है। गुजरात में धीरे धीरे ही सही केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी घुसपैठ कर रही है ज़ाहिर है आम आदमी पार्टी जो भी वोट हासिल करेगी वह कांग्रेस की कीमत पर ही हासिल करेगी। गुजरात में भाजपा के कोर वोटर बहुत मज़बूत है उन वोटरों को तोडना फिलहाल नामुमकिन है।
खैर, फिर से राजस्थान की बात करते है राजस्थान में अगर आलाकमान सचिन पायलट के नाम पर ज़िद पर अड़ती है तो सचिन के पक्ष में विधायकों की संख्या बेहद कम है। दूसरी तरफ गहलोत के पक्ष में भी विधायकों की संख्या 100 से कम है। फिलहाल वेट एन्ड वाच की भूमिका में बैठी भाजपा सचिन के विधायकों को अपनी ओर खीचं कर नया समीकरण तैयार कर सकती है। यदि एक बार मान भी लिया जाये कि कांग्रेस आलाकमान किसी तरह सचिन के पक्ष में सभी विधायकों को मना भी ले तो भविष्य में वह एकजुट रह पाएंगे खासकर तब जब अगले ही साल चुनाव में उतरना हो।
पिछले दो दिनों के घटनाक्रम के बाद ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है की कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर अशोक गहलोत अब गाँधी परिवार की पहली पसंद नहीं रहे। दिल्ली से आये पर्यवेक्षकों अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे के बैरंग लौटने, रविवार शाम को जयपुर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक के बहिष्कार और उसके बाद हुए घटनाक्रम को अनुशासनहीनता माना गया है। कांग्रेस की कार्यकारी चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने पूरे घटनाक्रम पर नाराजगी जताई है।
कांग्रेस आलाकमान नाराज़ तो है लेकिन आलाकमान के पास फिलहाल न तो दवा है न इलाज। कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र में सरकार खोने के बाद हाल ही में गोवा का ज़ख्म पहले ही पार्टी के लिए नासूर बन चूका है। बड़ी मुश्किल से चुनाव जीतने के बाद कांग्रेसी विधायकों का पाला बदलना केंद्रीय नेतृत्व पर सवालिया निशान उठा रहा है। पंजाब में एन चुनाव के पहले मुख्यमंत्री बदलने और कैप्टन को साइड लाइन करना, असम में हिमंत बिस्वा सरमा, आंध्र प्रदेश जगन मोहन रेड्डी की नाराज़गी इन तीनो राज्यों में कांग्रेस पर भारी पड़ चुकी है।
ऐसे में आने वाले दिन कांग्रेस पर कितने भारी पड़ते है ? यह तो राजस्थान से उठे बवंडर के थमने के बाद ही पता चलेगा। इस बवंडर में जाने कौन उड़ जाए कुछ पता नहीं। गहलोत और पायलट को साथ लाना फिलहाल तराज़ू में मेंढक तौलने के समान लग रहा है।
To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on GoogleNews | Telegram | Signal