उदयपुर। भौगोलिक दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य राजस्थान अपने बहुरंगी भौतिक एवं सांस्कृतिक स्वरूप से विश्वविख्यात है। इसी राज्य के दक्षिण में अरावली पर्वतमालाओं के मध्य अवस्थित उदयपुर शहर अपनी ऐतिहासिक विरासत, नैसर्गिक सुन्दरता व सांस्कृतिक वैभव से विश्व के श्रेष्ठतम शहरों में शुमार है।
इन सभी को संकलित करते हुए शहर के जाने माने समाजसेवी डॉ. एल.एल.धाकड़ द्वारा लिखित पुस्तक का आज सोलिटेयर गार्डन में आयोजित एक समारोह में समारोह के मुख्य अतिथि सांसद अर्जुनलाल मीणा एवं समारोह अध्यक्ष उमाशंकर शर्मा, मुख्य वक्ता डॉ. एस.एल.मेहता, विशिष्ठ अतिथि महापौर जी.एस.टांक एवं गीतांजली के केम्पस डायरेक्टर डॉ. एन.एस.राठौड़ ने विमोचन किया।
5 वर्ष के अथक प्रयास के बाद प्रकाशित हुई पुस्तक के बारे में बताते हुए डॉ. एल.एल. धाकड़ ने कहा कि पुस्तक में उदयपुर जिले की समस्त झीलों, उनकी भौगोलिक स्थिति, यहाँ की संस्कृति का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। उन्होंने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए कहा कि 70 वर्ष पूर्व एवं वर्तमान की झीलों की स्थिति में बहुत अन्तर आ गया है। आयड़ नदी के वर्तमान स्वरूप पर कहा कि यह नदी है इसे नाला नहीं बनाया जाना चाहिये। यदि हम सिंगापुर जैसे छोटे से देश से झील संरक्षण के प्रयासों की जानकारी ले कर चलें तो हम अपने शहर में पर्यटकों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि कर सकते है जबकि अभी इसकी सालाना ग्रोथ दर मात्र डेढ़़ प्रतिशत है।
उदयपुर शहर का भौगोलिक, प्राकृतिक एवं आर्थिक आधार यहां का झील तंत्र है, इसीलिए इस शहर को लेकसिटी या झीलों की नगरी से भी संबोधित किया जाता है । इस पुस्तक उदयपुर का वैभवः झीलें एवं संस्कृति का प्रकाशन एक लघु प्रयास है जिसमें उदयपुर शहर एवं समीपवर्ती झीलों का सांगोपांग सचित्र वर्णन समाहित है।
यह कृति उदयपुर के इतिहास, भूगोल, नागरिकों, पर्यटन स्थलों, त्योहारों के साथ शहर की वर्तमान समस्याओं का सटीक एवं निष्पक्ष विवेचन करते हुए उनके समाधान का मार्ग भी सुझाती है।
उदयपुर की झीलें और संस्कृति ऐसी अद्भुत धरोहर है जिस पर हम सब गर्व कर सकते हैं, लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इन झीलों और संस्कृति की दुर्दशा से हम सब अवगत हैं। जल प्रदूषण, झीलों में अतिक्रमण व गंदगी, अव्यवस्थित नौकायन जैसी अनेक गंभीर समस्याएं हैं, जो समुचित समाधान का इंतजार कर रही हैं।
उन्हेांने कहा कि इस पुस्तक की किसी भी प्रकार की बिक्री नहीं की जायेगी। इसे राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय वाचनालयों,शहर के संभ्रान्त नागरिकों, राज्य सरकार एवं अधिकारियों के पास पंहुचायी जायेगी ताकि पुस्तक में झीलों एवं संस्कृति को बचानें के सन्दर्भ में कहीं गई बातों का हल निकाला जा सकें।
समारोह को संबोधित करते हुए डॉ.एन.एस.राठौड़़ ने कहा कि यह पुस्तक एक बहुत बड़ा ग्रन्थ है। एक शहर की एक एनसाईक्लोपिडिया है। जिसे जनता सदियों तक याद रखेगी। यह पुस्तक हम सभी को झीलों व संस्कृति को लेकर जागरूक करेगी।
महापौर जी.एस.टांक ने कहा कि यह पुस्तक उदयपुरवासियों के लिये बहुत सार्थक रहेगी। झीलों के लिये आगे की जाने वाली योजनाओं के लिये यह पुस्तक काफी लाभदायक साबित होगी। पूर्व कुलपति उमाशंकर शर्मा ने भी संबोधित किया।
मुख्य वक्ता डॉ. एस.एल.मेहता ने कहा कि डॉ.धाकड़ ने जिस प्रकार का कार्य किया है उसे आने वाली पीढ़ी हमेशा याद रखेगी। डॉ. धाकड़ के अतुलनीय प्रयासों की प्रंशसा करते हुए इसे शहर की एक धरोहर बताया। इस पुस्तक को पढ़ कर भावी पीढ़ी काफी लाभान्वित होगी।
मुख्य अतिथि सासंद अर्जुनलाल मीणा ने कहा कि हम सभी अपनी दैनिक गतिविधियों के साथ शहर, झीलों एवं सांस्कृतिक विरासत को स्वच्छ एवं अतिक्रमण मुक्त रखने में सहभागी बनें। महत्वपूर्ण विरासतों को सहेजते हुए इनके सुनियोजित विकास में स्थानीय प्रशासन के साथ आमजन, बुद्धिजीवी, भामाशाह आदि भी अपनी अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं। इस पुस्तक का मूल उद्देश्य उदयपुर शहर व आसपास की झीलों तथा धार्मिक व सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति स्थानीय जन-मानस में जागरूकता लाना है। कार्यक्रम का संचालन आलोक पगारिया ने किया।
To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on GoogleNews | Telegram | Signal