18 से ऊपर वैक्सीनेशन के लिए उमड़ी भीड़, उडी सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ

18 से ऊपर वैक्सीनेशन के लिए उमड़ी भीड़, उडी सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ

अभी दूसरी लहर ख़त्म भी नहीं हुई और हमने तीसरी लहर के स्वागत की तैयारी शुरू कर दी 

 
vaccination camp

 दूसरी तरफ राजनीती भी अनलॉक, कांग्रेस भाजपा ने किया अलग अलग धरना प्रदर्शन 

उदयपुर 9 जून 2021। उदयपुर शहर के उपमहापौर के नेतृत्व में 18 से 44 आयु वर्ग के लिए वैक्सीनेशन का शिविर लगाया गया।  जहाँ लोगो की भीड़ उमड़ पड़ी। वैक्सीनेशन शिविर में इतनी भीड़ थी की वहां सारी व्यवस्था धरी रह गई और सोशल डिस्टेंसिंग की जमकर धज्जियाँ उड़ती दिखाई दी।

कोरोना महामारी का प्रभाव अभी जिले में कम पड़ता दिखाई दे रहा है।  वही प्रदेश सरकार ने भी अनलॉक की प्रक्रिया शुरू करते हुए बाज़ारो को सुबह 6 बजे से शाम 4 बजे तक खोलने की इजाज़त दे दी है। बाजार खुलते ही ज़ाहिर है भीड़ तो होगी ही। लेकिन साथ ही 18 से 44 आयु वर्ग के वैक्सीनेशन के लिए शहर के कई जगह शिविर भी लगाए गए जहाँ बेतहाशा भीड़ उमड़ रही है। 

चूँकि इस शिविर का इतना प्रचार किया गया की वहां भीड़ होना लाज़मी था। ऐसे में शिविर के कर्ताधर्ताओ ने भीड़ को नियंत्रित करने का कोई प्लान पहले नही बनाया था? क्या आयोजकों को पता नहीं था की बिना साईट पर रजिस्ट्रेशन के स्लॉट लिए बगैर ही वैक्सीन लगाने के ऑफर देने से शिविर में बेतहाशा भीड़ उमड़ेगी ? प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने ऐसे शिविर को इजाज़त किसके प्रभाव में दी ? शिविर लगाने के पीछे समाज सेवा ही मंशा थी या राजनैतिक शक्ति प्रदर्शन ? यह तो कहना मुश्किल है लेकिन अंदाज़ा तो लगाया ही जा सकता है। क्योंकि हमारे नेतागण समाजसेवा और जनसेवा को कितने लालायित रहते है यह तो किसी छिपा हुआ नहीं है।  

वहीँ कल शहर में जहाँ इतने दिनों बाद बाज़ार खुले उससे सामान्य जन की बाजार में आवाजाही और चहल पहल दिखी। वहीँ लगता बाजार के अनलॉक होने के साथ साथ राजनीती भी अनलॉक हो गई।  प्रशासन की नाक के नीचे जिला कलेक्ट्री पर अपने अपने मुद्दों को लेकर भाजपा और कांग्रेस के नेताओ ने राजनितिक प्रदर्शन कर सोशल डिस्टेंसिंग और गाइडलाइन का मखौल उड़ाया। इस पर प्रशासन की कोई कार्यवाही न होना दुःखद है। जहाँ लॉकडाउन के दौरान आमजन को कहीं कहीं जायज़ कार्यो के लिए भी बाहर निकलने पर चालान काटे गए वहां राजनैतिक दलों के आगे प्रशासन की विवशता प्रश्न कई खड़े करती है।   

ऐसे में सवाल उठता है की अप्रैल के आखिरी दिनों से मई के आखिरी दिनों में जहाँ जिले में कोरोना वायरस ने अपना रौद्र रूप दिखाया था, जहाँ मौतों ने शहर को हिला कर रख दिया था लोगो को लॉकडाउन में रहना पड़ा था। लॉक डाउन की वजह से लोगो की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई। काम धंधे ठप्प पड़ गए थे,  रोज़ी रोटी का गंभीर सकंट खड़ा हो गया था।  वहीँ स्वास्थ्य सेवाओं का भी हाल किसी से छिपा हुआ नहीं है। प्राणवायु ऑक्सीजन की मारामारी हो या रेमेडीसीवीर और अन्य दवाईंयों की कालाबाज़ारी और मारामारी ने महामारी को घातक बना डाला था। लगता है हम यह सब बड़ी जल्दी भूल गए। 

लॉकडाउन के दरमियान इस साल जनता ने काफी समझदारी दिखाई थी, बिना वजह बहुत ही कम संख्या में लोग घर से बाहर निकलते थे, लेकिन जैसे ही अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई सारे नियम कायदे, कोरोना की गाइडलाइन, सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क की पालना को ताक में रखना शुर कर दिया। अभी तो दूसरी लहर पूरी तरह ख़त्म भी नहीं हुई और तीसरी लहर के स्वागत की तैय्यारियाँ शुरू हो गई। 

बाजार का खुलना आवश्यक था, सो सरकार ने सोच समझ कर छूट देना शुरू किया। वैक्सीनेशन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना भी ज़रूरी है लेकिन वैक्सीनेशन के लिए जमा भीड़ अगर नियम कायदे तोड़ने लगे तो संभावित तीसरी लहर को रोकना मुश्किल ही लगता है। लोगो को समझना चाहिए की वैक्सीनेशन करवाने के कोई अमरत्व को प्राप्त नहीं होने वाला है। वहीँ वैक्सीनेशन शिविर लगाने के लिए भी शिविर के कर्ताधर्ता यह सुनिश्चित करे की लोगो की भीड़ बढ़ने पर कैसी व्यवस्था हो।       

जहाँ तक राजनैतिक दलों के प्रदर्शन की बात है। तो उसको रोकना प्रशासन के बस की बात नहीं। यहाँ पर यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं की प्रशासन राजनैतिक प्रदर्शन को रोकने में सर्वथा नाकाम साबित होती रही है और आगे भी होती रहेगी। अब जनसामान्य के पास अपने बचाव का एक ही रास्ता है की वह स्वयं तय करे की कम से कम जोखिम लेकर अपना काम धंधा भी करते रहे और सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क की अनिवार्यता (वैक्सीनेशन के बाद भी) की पालना करे। कारण अभी महामारी समाप्त नहीं हुई है।     

सरकार चाहे केंद्र की हो राज्य की या लोकल नगर की, एक सुदृढ़ निति बनाये जहाँ सुनिश्चित करे की महामारी को रोकने के लिए जो नियम कायदे बनाये गए है उसकी कड़ाई से पालना हो बिना किसी राजनैतिक मंशा के। एक तरफ जहाँ बोर्ड की परीक्षा तक रद्द कर दी गई है, लाखो छात्रों के कैरियर का महत्वपूर्ण पड़ाव को बच्चो के स्वास्थ्य के मद्देनज़र टाल दिया गया है। सभी धार्मिक, सामाजिक आयोजन पर रोक लगा दी है है। 

वहीँ राजनैतिक स्वार्थ और शक्ति प्रदर्शन को रोकने के लिए कहने को नियम कायदे बनाये ज़रूर गए है लेकिन लागू करने में कोई इच्छाशक्ति नहीं दिखाई गई। इसी वर्ष कुछ राज्यों के चुनाव उपचुनाव में लोगो ने इसकी बेतहाशा धज्जियाँ उड़ते देखा है। पुलिस प्रशासन को मूक दर्शक बने पूरे देश ने देखा है। ऐसे में फिर से कहना पड़ेगा की कोरोना की संभावित और घातक तीसरी लहर के लाने की पूरी तैयारी देश ने कर ली है।  

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