उदयपुर। गेहूँ की मानिंद जौ भी फसलोत्पादन में अपनी अलहदा गुण व पहचान रखता है। एल्कोहल इंडस्ट्री व अन्य खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल के कारण जौ की काफी मांग रहती है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एसएसपी) बढ़ाने से किसान इसे उगाने में ज्यादा रूचि लेगें। खासकर राजस्थान में जौ की खेती की असीम संभावनाएं है। उदयपुर आयोजित 62 वीं अखिल भारतीय गेहूँ व जौ अनुसंधान कार्यशाला के दूसरे दिन मंगलवार को तकनीकी सत्र में यह बातें मुखर होकर आई। डाॅ. जे.एस. सन्धु भूतपूर्व उपमहानिदेशक (फसल विज्ञानद्ध ने जौ के क्षेत्रफल को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिको को प्रोत्साहित किया।
राजस्थान कृषि महाविद्यालय सभागार में डाॅ. ओमवीर सिंह, डाॅ.आर.पी.एस. वर्मा, डाॅ. लक्ष्मीकांत, ने जौ की उपादेयता, पहाड़ी क्षेत्रों में जौ की स्थिति व संभावनाएं, नई किस्मों पर काम करने पर जोर दिया। इस मौके पर विभिन्न शहरों से प्रगतिशील किसानों ने जौ की खेती पर अपने अनुभव साझा किए।
कृषि वैज्ञानिक डाॅ. आलोक के. श्रीवास्तव ने ’अनाज फसलों में तनाव को कम करने के लिए माइक्रोबियल फाॅर्मूलेशन’ विषय पर शोध पत्र पढ़ा। डाॅ. ओ.पी. अहलावत ने फसल सुधार, डाॅ. एस.सी. त्रिपाठी ने संसाधन प्रबंधन, डाॅ. पूनम जसतोरिया ने फसल सुरक्षा जैसे विषयों पर विस्तृत व्याख्यान दिया।
इससे पूर्व डाॅ. अनिल खिप्ंपल प्रधान वैज्ञानिक भारतीय गेहूँ व जौ अनुसंधान संस्थान करनाल ने प्राकृतिक खेती पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि बढ़ते वायु, मृदा व जल प्रदूषण, मानव स्वास्थ्य आदि समस्याओं के समाधान में प्राकृतिक खेती का अपना अहम योगदान है। उन्होंने प्राकृतिक खेती के सिद्वान्तों व घटको के बारे मेें विस्तार से बताया। प्राकृतिक खेती के लिए भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल मेें किए जा रहे विभिन्न शोध कार्यो जैसे पोषण प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, मृदा की भौतिक व रासायनिक संरचना में बदलाव तथा विभिन्न सूक्ष्म जीवों के योगदान व बदलाव के बारे में बताया।
प्रो. अरूण के. जोशी ने दक्षिण एशिया में उन्नत गेहूँ अनुसंधान, डाॅ. मारिया ने स्वस्थ प्रसंस्कृत, अनाज आधारित खाद्य प्रदार्थ विषय पर शोध पत्र पढ़ा। जाॅर्डन के कृषि वैज्ञानिक डाॅ. माइकल बूम ने गेहूँ व जौ में आईसीएआर व आईसीएआरडीए के सहयोग को रेखांकित किया। डाॅ. गोलम फारूख ने बांग्लादेश की रिपोर्ट पढ़ी वहीं डाॅ. आकाश चावड़े ने गेहूँ के प्रजनन के लिए नई किफायती विधियों के बारे में बताया।
इस अवसर पर डाॅ. रूनी काॅफमैन, डाॅ. पवन सिंह, मौक्सिको के डाॅ. वेलू जी ने गेहूँ व जौ की विभिन्न खूबियों, गेहूँ में आनुवांशिक लाभ बढ़ाने के लिए त्वरित प्रजनन पर शोध पत्र प्रस्तुत किया। डाॅ. परमिन्द, डाॅ. सुनील कुमार, डाॅ. मनोज सिंह आदि ने भी विचार रखें।
डाॅ. टी. आर. शर्मा, उपमहानिदेशक (फसल विज्ञान) ने डाॅ. ज्ञानेन्द्र सिंह की अगवाइ्र्र में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए उल्लेखनिय शोधकायों की सरहाना की तथा भविष्य में भी इसी तन्यमता से काम करने के लिए प्रेरित किया।
डाॅ. अरविन्द वर्मा, निदेशक अनुसंधान ने बताया कि 62 वीं अखिल भारतीय गेहूँ व जौ अनुसंधान कार्यशाला का समापन दिनांक 30.08.2023 प्रातः 11.30 से होगा। मुख्य अतिथि डाॅ. आर.एस. परोदा, पूर्व सचिव (डेयर) एवं महानिदेशक, आई.सी.ए.आर., नई दिल्ली होगें।
करनाल की प्रेमा, मंजरी व वैदेही करेगी नर्तन, बिलासपुर की विद्या भी खेतों में इठलाएगाी
उदयपुर। करनाल में जन्मी ’प्रेमा’, ’मंजरी’, ’वैदेही’, ’वृंदा’ एवं ’वरूणा’ इस वर्ष से खेतों में नर्तन करेगी तो बिलासपुर की ’विद्या’ भी किसानों के खेतों में इठलाएगी। चौंकिए मत ये नृत्यांगनाएं नहीं बल्कि गेहूँ की वे किस्में है जौ कृषि वैज्ञानिकों के आठ-दस वर्षों की मेहनत के बाद किसानों के खेतों तक पहुंचेगी। उन्नत किस्म के ये गेहूँ के बीज मौजूदा बदलते जलवायु चक्र को ध्यान में रखकर तैयार किए गए है।
आप को जानकर आश्चर्य होगा कि किस्मों को तैयार करने में कृषि वैज्ञानिकों को आठ से दस साल शोध करने पर सफलता हासिल होती है। कई मानकों पर खरा उतरने पर ही किस्म को सार्वजनिक किया जाता है। उदयपुर में चल रही अखिल भारतीय गेहूँ व जौ अनुसंधान कार्यशाला में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के महानिदेशक व सचिव कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग नई दिल्ली डाॅ. हिमांशु पाठक एवं महाराणा प्रताप कृषि व प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति डाॅ. अजीत कुमार कर्नाटक ने पिछले वर्ष तक की चिन्हित व अनुमोदित की जा चुकी गेहूँ की इन किस्मों को जारी किया तथा इन्हें ईजाद करने वाले कृषि वैज्ञानिक को प्रतीक चिन्ह प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय बिलासपुर रायपुर छत्तीसगढ़ में डाॅ. अजय प्रकाश अग्रवाल ने सीजी 1036 (विद्या) गेहूँ की किस्म तैयार की। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के भारतीय गेहूँ व जौ अनुसंधान संस्थान करनाल ने डी.बी. डबल्यू 316 (करन प्रेमा), डी.बी. डबल्यू 55 (करन मंजरी), डी.बी. डबल्यू 370 (करन वैदेही), डी.बी. डबल्यू 371 (करन वृंदा), डी.बी. डबल्यू 372 (करन वरूणा) जेसी गेहूँ की किस्में तैयार की। इनके ब्रीडर कृषि वैज्ञानिकों व उनकी टीम को सम्मानित किया गया।
इसी प्रकार भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली में तैयार किस्म एचडी 3369 पूसा, एचडी. 3406, एचडी 3411, 3407 जैसी किस्मों को भी हरी झंडी दी गई। इसी प्रकार अघारकर अनुसंधान संस्थान पूणे ने दो किस्में एम.ए.सी.एस. 6768 व 4100 तैयार की जिनका अनुमोदन किया गया। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की पीबीडबल्यू 833, 872, 826 किस्में भी जारी की गई।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना व आई.ए.आर.आई. - क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र इंदौर को ऑल इंडिया कोर्डिनेटर रिसर्च प्रोजेक्ट में श्रेष्ठ कार्य करने पर सम्मानित किया गया।
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