उदयपुर में कांग्रेस के नव संकल्प शिविर में एक व्यक्ति एक पद का अनुसरण करते हुए राहुल गाँधी ने संकेत दे दिए है यदि अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते है तो उन्हें राजस्थान के मुख्यमंत्री पद का त्याग करना होगा। अब जबकि प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की दिशा में अपने कदम बढ़ा ही लिए है तो लाज़िम है प्रदेश में मुख्यमंत्री के लिए कांग्रेस को नया चेहरा तलाश करना होगा। नए नामो में प्रमुखता से वर्तमान विधानसभा के स्पीकर डॉ सी पी जोशी और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का नाम सबसे ऊपर है।
इन दो नाम के बाद अगर किसी और नाम पर गौर किया जाये तो प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा, शांति धारीवाल भी रेस में दिखाई दे रहे है। जबकि अन्य चौंकाने वाले नामो से राजस्थान के जादूगर के पिटारे में से डॉ रघु शर्मा, डॉ बी डी कल्ला, परसादी लाल मीणा या कोई अन्य नाम भी निकल सकते है।
फिलहाल प्रदेश ही बल्कि देश की जनता की दिलचस्पी भी राजस्थान के संभावित नए मुख्यमंत्री को लेकर है। सबसे अधिक चर्चा डॉ सी पी जोशी और सचिन पायलट की हो रही है। सर्वविदित है की गहलोत का झुकाव सीपी जोशी की तरफ अधिक है। पायलट से उनके रिश्ते जगज़ाहिर है। ऐसे में डॉ सी पी जोशी की संभावनाए प्रबल है। हालाँकि गाँधी परिवार की बात की जाये तो राहुल और प्रियंका सचिन के पक्ष में मुहर लगा सकते है वहीँ सोनिया गाँधी डॉ सी पी जोशी के पक्ष में मुहर लगा सकती है।
72 वर्षीय डॉ सीपी जोशी ने राजनीती की शुरआत 49 वर्ष पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष के रूप में की थी। 1980 से लेकर अब तक 5 बार के नाथद्वारा के विधायक और 2009 में भीलवाड़ा से सांसद डॉ सी पी जोशी मनमोहन सरकार में केबिनेट मंत्री के रूप में अहम् पदों पर आसीन रहे है। उन्हें सड़क परिवहन, रेल मंत्रालय और पंचायती राज जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय की ज़िम्मेदारी सौपी जा चुकी है। 2008 में राजस्थान प्रदेश के चीफ रहते हुए उन्होंने कांग्रेस की सत्ता में वापसी करवाई थी हालाँकि उसी चुनाव में नाथद्वारा सीट 1 वोट से अपनी सीट हारना देश में चर्चा का विषय बना था और वह प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए थे।
राजस्थान की राजनीती में मेवाड़ का महत्व सदा से रहा है। राजस्थान के मुख्यमंत्री पद पर सर्वाधिक लम्बे समय तक एकछत्र राज मेवाड़ के ही स्वर्गीय मोहनलाल सुखाड़िया का रहा है। सुखाड़िया जी के बाद मेवाड़ से हरिदेव जोशी, शिवचरण माथुर, हीरालाल देवपुरा भी प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके है। वर्तमान में मेवाड़ की 35 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के पास मात्र 13 सीटें है जबकि 20 भाजपा और 2 पर बीटीपी काबिज़ है। ऐसे में मेवाड़ में खस्ताहाल कांग्रेस में जान डालने के लिए मेवाड़ के डॉ सी पी जोशी एक बेहतर विकल्प हो सकते है।
अगले वर्ष 2023 में पार्टी को विधानसभा चुनाव में जाने से पहले मेवाड़ को फतह करना ज़रूरी होगा। हालाँकि मेवाड़ में मज़बूत भाजपा भी गुटबाज़ी से अछूती नहीं है। मेवाड़ में कांग्रेस को भाजपा से ही नहीं बल्कि वागड़ और आदिवासी बेल्ट में बीटीपी की मिलने वाली चुनौती भी परेशान करने वाली और चिंता बढ़ाने वाली है। जिस प्रकार आदिवासी बेल्ट में बीटीपी का प्रभाव बढ़ रहा है उससे न केवल कांग्रेस बल्कि भाजपा भी चिंतित है। हाल ही में हुए धरियावद उपचुनाव में कांग्रेस की जीत ज़रूर हुई लेकिन बीटीपी के बागी उम्मीदवार थावरचंद ने भाजपा को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। ऐसे में मेवाड़ के किसी कांग्रेसी नेता के हाथ में प्रदेश की कमान सौंपने में आलाकमान मुहर लगा सकता है। डॉ सीपी जोशी उच्च वर्ग यानि ब्राह्मण समाज से आते है। कभी कांग्रेस का वोटर रहा उच्च वर्ग अभी भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रहा है इसलिए कांग्रेस मेवाड़ के समीकरण और ब्राह्मण चेहरे के रूप में डॉ जोशी के पक्ष में दांव खेल सकती है।
कद्दावर कांग्रेसी, गुर्जर नेता और स्वर्गीय राजीव गाँधी के करीबी के रूप में विख्यात राजेश पायलट के सुपुत्र सचिन पायलट के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए ही 2018 में कांग्रेस ने प्रदेश में सत्ता में वापसी की थी। युवा वर्ग में खासे लोकप्रिय सचिन पायलट 2018 में अशोक गहलोत की सरकार में उप मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन उसके बाद 2020 में गहलोत और पायलट के मनमुटाव और गुड़गांव के मानेसर स्थित रिसोर्ट की राजनीती में सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के पद से हाथ धोना पड़ा था। अब जबकि उनके मुख्य प्रतिस्पर्धी अशोक गहलोत केंद्र की राजनीती में जा रहे है तो एक बार फिर सचिन पायलट और उनके समर्थको में उत्साह है।
2004 में दौसा संसदीय क्षेत्र से उस समय भारत के यंगेस्ट सांसद बने थे। टीम राहुल में सक्रियता के चलते उन्हें भी मनमोहन मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री का ज़िम्मा मिला था। सचिन ने कॉर्पोरेट अफेयर और आईटी मंत्रालय में अपनी सेवा दी थी। सचिन के पक्ष में प्रियंका गाँधी बताई जा रही है। उनके अतिरिक्त राज्य का युवा वर्ग और कांग्रेस का एक तबका सचिन के पक्ष में खड़ा हुआ है। राज्य में गुर्जर मतदाताओं के वर्चस्व को देखते हुए युवा नेता सचिन पायलट पर भी कांग्रेस अपना दांव लगा सकती है। अशोक गहलोत से कथित मनमुटाव के चलते सचिन को दिक्क़ते आ सकती है। यही एक कारण सचिन को प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से दूर कर रहा है।
अशोक गहलोत के करीबी और वर्तमान में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा को अशोक गहलोत के करीबी होने का फायदा मिल सकता है। 2008 से लगातार तीसरी बार लक्ष्मणगढ़ सीकर से विधायक चुने जाने वाले गोविन्द सिंह डोटासरा 2018 में प्रदेश के शिक्षा मंत्रालय की ज़िम्मेदारी संभाल चुके है हालाँकि इस दौरान वह काफी चर्चित और विवादित भी रहे है। 2020 में सचिन पायलट एपिसोड के बाद अशोक गहलोत के करीबी होने के चलते उन्हें कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत के चलते उन्हें मंत्री पद से मुक्त कर दिया गया था। अभी भी गोविन्द सिंह डोटासरा को गहलोत के करीबी होने का फायदा मिल सकता है।
इसी प्रकार 79 वर्षीय कांग्रेस के कद्दावर नेता और कोटा से एक बार के सांसद और कोटा उत्तर से तीन बार की विधायक शांति धारीवाल वर्तमान में गहलोत के करीबी और यूडीएच जैसे भारी भरकम मंत्रालय की कमान संभाले हुए है। शांति धारीवाल की गिनती वैश्य वर्ग और कोटा हाड़ौती अंचल के बड़े नेताओ में होती है. राजनीती के घाघ खिलाडी पर कांग्रेस अपना दांव लगा सकती है हालाँकि इसकी सम्भावना कम है।
इसी प्रकार गाँधी परिवार और आलाकमान प्रदेश के कांग्रेस के बड़े नेता डॉ रघु शर्मा, डॉ बी ड़ी कल्ला, परसादी लाल मीणा जैसे नाम पर विचार कर सकती है लेकिन इनकी संभावनाए भी क्षीण ही लगती है।
अब देखना होगा की अशोक गहलोत के दिल्ली जाने के बाद जयपुर की गद्दी किसके खाते में आती है। इस सवाल का जवाब आने वाले दिनों में ही मिल पायेगा की राजनीती का ऊँट किस करवट बैठता है।
यदि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन का दिल्ली जाते है तो आप किसे राजस्थान का मुख्यमंत्री देखना चाहते है ? आप कमेंट सेक्शन में अपनी विचार व्यक्त कर सकते है।
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