अब्दुल और देवांशी जैसे दिव्यांग तैराक लेंगे हिस्सा, जो हर दिव्यांग के लिए बनेंगे प्रेरणा

अब्दुल और देवांशी जैसे दिव्यांग तैराक लेंगे हिस्सा, जो हर दिव्यांग के लिए बनेंगे प्रेरणा

राष्ट्रीय पैरालम्पिक में 8 गोल्ड और 3 सिल्वर मैडल जीत चुके अब्दुल और अब तक 20 गोल्ड मैडल जीत चुकी देवांशी सतीजा 
 
abdul and devanshi

स्वप्रेरणा से मेडल्स की झड़ी लगा चुकी है देवांशी

दुर्घटना ख्वाहिश ना तोड़ सकी अब्दुल की

झीलों की नगरी उदयपुर में पैरालिम्पिक कमेटी ऑफ इण्डिया एवं नारायण सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में महाराणा प्रताप खेलगांव स्थित तरण ताल परिसर में 25 से 27 मार्च तक 21वीं राष्ट्रीय पैरा स्विमिंग चैम्पियनशिप में रतलाम के अब्दुल कादिर इंदौरी और फरीदाबाद की देवांशी सतीजा जैसे कुछ ऐसे दिव्यांग तैराक लेंगे हिस्सा जो हर दिव्यांग के लिए बनेंगे प्रेरणा। इस आयोजन में देश के करीब 400 (पुरूष-महिलाएं) नामी पैरालम्पिक स्विमिंग स्टार्स हिस्सा लेंगे । 

एक दुर्घटना में अपने दोनों हाथ गँवा चुका एवं राष्ट्रीय पैरालम्पिक में 8 गोल्ड और 3 सिल्वर मैडल जीत चुके अब्दुल कादिर इंदौरी तथा जन्म से ही दाएं हाथ से दिव्यांग और अब तक 19 वर्ष की उम्र में वह वह 50 से अधिक गोल्ड मैडल जीत चुकी देवांशी सतीजा 21वीं नेशनल पैरा स्वीमिंग चैम्पियनशिप में हिस्सा लेते हुए सैकड़ों दिव्यांगों का हौसला बढ़ाने के उद्देश्य से उदयपुर पहुंचे है।

दुर्घटना ख्वाहिश ना तोड़ सकी अब्दुल की

रतलाम (मध्यप्रदेश) निवासी अब्दुल कादिर इंदौरी (15 वर्ष) 2014 में अपने दोस्तों के साथ लुका-छुपी खेल रहे थे। छुपने के लिए अब्दुल छत की तरफ दौड़कर गए लेकिन हाई टेंशन लाइन का उन्हें भान ना था। परिणाम स्वरुप वो 11 केवी करंट की चपेट में आ गए। अब्दुल के साथ खेल रहे अन्य साथियों ने दुर्घटना की जानकारी तुरंत अब्दुल के परिवार को दी। पिता हुसैन उसे अस्पताल लेकर गए। इस दुर्घटना से अब्दुल को दोनों हाथ खोने पड़े। 

abdul qadir indori

एक दिन अब्दुल ने सोशल मीडिया पर एक तैराक को देखा जिसके दोनों हाथ नहीं थे। बालक अब्दुल उससे इतना अधिक प्रभावित हुआ कि तैराक बनने का फैसला कर लिया। रतलाम में ही एक स्विमिंग कोच ने अब्दुल की प्रतिभा देखते हुए आगे आकर हुसैन से संपर्क किया और कहा कि वह अब्दुल को निशुल्क तैराकी प्रशिक्षण देना चाहते है। तब क्या था.... जैसे बच्चे को कोच के रूप में राजा भैया भगवान के रूप में मिल गए। बालक का तैराकी प्रशिक्षण रोज होने लगा। 

कड़ी मेहनत और संघर्ष के बूते अब्दुल अब तक 15 वर्ष उम्र में ही राष्ट्रीय पैरालम्पिक में 8 गोल्ड और 3 सिल्वर मैडल जीत चुके हैं। नौवीं कक्षा में पढ़ रहे अब्दुल 21 वीं राष्ट्रीय पैरालंपिक में हिस्सा लेने उदयपुर आ रहे है। वह स्वयं दिव्यांगों के लिए प्रेरणास्रोत बनेंगे।

स्वप्रेरणा से मेडल्स की झड़ी लगा चुकी है देवांशी

फरीदाबाद निवासी देवांशी सतीजा जन्म से ही दाएं हाथ से दिव्यांग है। उनकी बड़ी बहन दिव्या एक तैराक है। एक बार बड़ी बहन ने स्विमिंग की स्टेट चैंपियनशिप प्रतियोगिता में भाग लिया था। तब दिव्या का खेल देखने पूरा परिवार गया। बहन का मनोबल बढ़ाने के लिए छोटी बहन देवांशी स्विमिंग पूल के पास खड़ी होकर चीख-चिल्ला उत्साह बढ़ा रही थी कि अचानक वह पानी में गिर गई। लोग सोच रहे थे कि बच्ची पानी में डूब जायेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ, देवांशी पानी में तैरती हुए स्विमिंग पूल से बाहर आ गई।

devanshi satija

फिर क्या था देवांशी का जीवन ही बदल गया और उसने भी बहन की भांति तैराक बनने का निर्णय लिया। बड़ी बहन दिव्या ने देवांशी की प्रतिभा को देख उसे हर रोज स्विमिंग का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। स्कूल खत्म होने के बाद देवांशी हर रोज घण्टों तक तैराकी प्रशिक्षण लेती रही।

अब तक 19 वर्ष की उम्र में वह वह 50 से अधिक गोल्ड मैडल जीत चुकी है। इनमें 20 गोल्ड मैडल वह राष्ट्रीय पेरालिम्पिक में जीत चुकी है। बी. कॉम. में पढ़ने वाली देवांशी 21वीं नेशनल पैरा स्वीमिंग चैम्पियनशिप में हिस्सा लेते हुए सैकड़ों दिव्यांगों का हौसला बढ़ाने के उद्देश्य से उदयपुर पहुंची है।
 

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