कहते है की जंग सिर्फ ज़ख्म देती है, उम्मीद करते है यह ज़ख्म अब और गहरा न हो और अब इस युद्ध पर विराम लगे वरना एक बार फिर इंसानियत की हार होगी।
हाल ही चल रहे रूस यूक्रेन विवाद में न सिर्फ दोनों ओर के सिपाहियों की जान जा रही है बल्कि पूरा विश्व कहीं न कहीं इस विवाद से ज़ख़्मी हो रहा है। हमारे देश भारत से पढाई करने यूक्रेन गए छात्र भी इस विवाद की चपेट में आ गए, जहाँ वह अपना भविष्य दांव पर लगाकर जान बचाने की खातिर वापस अपने वतन लौट रहे है। यूक्रेन से मेडिकल की पढाई कर रही दिव्यश्री राठौड़ भी रूस यूक्रेन विवाद के चलते उपजे संकट से दो चार हो कर अपने घर लौट आई है। दिव्यश्री ने उदयपुर टाइम्स की टीम से अपना अनुभव साझा किया है।
उदयपुर टाइम्स की टीम से बातचीत में उन्होंने बताया की यूक्रेन मे वह संकट के पहले तक मौजूद थी। उन्होंने बताया की इंडियन एम्बेसी की तरफ से उन्हें 2 एडवाइजरी मिली थी, जिसमे से पहली एडवाइजरी मे इतनी गंभीरता नहीं थी पर दूसरी एडवाइजरी मे गंभीर रूप से सभी लोगो को यूक्रेन छोड़ने की बात कही गयी थी। इसलिए उन्होंने और उनके साथ वहाँ पढ़ने वाले सभी स्टूडेंट्स ने उसको गंभीरता से लेते हुए फ्लाइट्स के टिकट बुक करवाए लेकिन तब तक कुछ छात्रों को ही फ्लाइट्स की टिकिट मिल पाई अधिकांश को तुरंत टिकट नहीं मिले। हालाँकि दिव्यश्री को पहले की टिकट मिल गयी जिस की वजह से वह सकुशल लौट आयी घर।
उन्होंने बताया की उनके भारत निवासी सभी दोस्त सकुशल अपने वतन पहुंच गए है लेकिन वर्तमान में उनके यूक्रेनी दोस्त, जो अभी जॉब में वह हॉस्टल से निकल कर बंकर में छिपे हुए है और अभी भी वही फंसे हुए है और जल्द बाहर निकलने की कोशिश कर रहे है।
दिव्यश्री ने उदयपुर टाइम्स को बताया की इंडियन एम्बेसी की दोनों गाइडलाइन्स 10 दिनों के अंतराल पर मिली थी। पहली और दूसरी गाइड लाइन्स मे लगभग 10 दिन का अंतराल रहा होगा।
उनसे जब हमने जान ने की कोशिश की वह कौनसी ख़ास वजह है जिस कारण उन्होंने यूक्रेन मे ही मेडिकल फील्ड मे पढ़ने का निर्णय किया, तो इस पर उन्होंने जवाब दिया की वहाँ की फीस और रहन-सहन उचित एवं सही है साथ ही कुछ और देशो के मुकाबले लैंग्वेज बैरियर भी नहीं है, मतलब की कुछ देशो मे इस तरह का प्रावधान है की वहाँ की स्थानीय भाषा सीखनी ही पढ़ती है लेकिन यूक्रेन मे भाषाई बाध्यता जैसा कुछ नहीं है वहाँ की पढ़ाई इंग्लिश भाषा मे ही है।
दिव्यश्री ने बताया की अभी वह और दूसरे स्टूडेंट्स जो यूक्रेन से लौटे है, थोड़ा इंतज़ार कर रहे है हालत सुधरने का साथ ही भारत सरकार से भी उनके साथियों का ग्रुप कोशिश कर रहा है उन्हें यहीं भारत मे पढ़ने का मौका मिल जाए तो इनके लिए अच्छा रहेगा, हलाकि कुछ देशो ने जैसे की पोलैंड और हंगरी ने इन्हे अपने यहाँ के फॉर्म्स भेजे है पर इस पर उन्होंने यह बात भी कही है की अगर और किसी देश जाएंगे तो वापस उनके लिए वीसा और दूसरे डाक्यूमेंट्स को क्लियर करवाने मे समय भी लगेगा और वापस सब जीरो से शुरू करने जैसा होगा। ऐसी स्थिति मे भारत मे ही कुछ ऑप्शन मिल जाए तो उनके लिए बेहतर रहेगा।
उन्होंने यह भी बताया की उनके ओरिजिनल डाक्यूमेंट्स जो कॉलेज मे दिए थे वो नहीं मिल पाए है हालाँकि कोशिश जारी है। यदि उनके ओरिजिनल डॉक्युमेंट्स जल्द मिल जाए तो अच्छा है।
उदयपुर टाइम्स की इस ख़ास बातचीत से यह साफ़ है की देश मे लौटे भारतीय स्टूडेंट्स अब यही चाहते है की भारतीय सरकार उन्हें यही कुछ बेहतर ऑप्शन दे ताकि उनका समय बच सके और जल्द से जल्द वह अपनी बची हुई स्टडीज को पूरा कर पाए।
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