उदयपुर। फ़ेडेरेशन ऑफ़ इंटरनेशनल फिलाटेली के सरंक्षण में इंडोनेशिया के जकार्ता में 4 से 9 अगस्त तक आयोजित की गई इन्टरनेशनल एक्सपो में मूलतः जोधपुर हाल निवासी उदयपुर राजस्थान के वीरेन्द्र शर्मा ने गोल्ड मेडल जीत विश्व में राजस्थान के नाम का झण्डा फहराया।
वीरेंद्र शर्मा ने आज यहाँ आयोजित प्रेस वार्ता में बताया कि उन्होंने “ब्रिटिश इंडिया क्वीन विक्टोरिया पोस्टल स्टेशनरी” शीर्षक के कलेक्शन को आठ फ्रेम में लगाया था, इस प्रदर्शनी में भारत के 35 लोगों ने भाग लेकर 2 ने गोल्ड प्राप्त किया। जिसमें से एक वीरेन्द्र शर्मा थे। इस एक्सीबिशन में सीनियर ग्रुप में 12 मुख्य वर्ग थे।
इस प्रदर्शनी में उन्होंने ब्रिटिश इंडिया द्वारा जारी प्रथम पोस्टकार्ड, लिफाफा, रजिस्टर्ड पत्र के अनेक प्रकार एक गहन अध्ययन के साथ दिखाया। उस समय भारत में प्रचलित डाक सामग्री थॉमस दी ला रुए, लंदन द्वारा प्रिंट होती थी। यहीं भारतीय डाक सामग्री तथा स्टाम्प बर्मा, पर्शियन गल्फ, अदन, ब्रिटिश सोमालीलैंड एवं जंजीबार में भी भेजी जाती थी।
भारत में प्रथम डाक लिफाफा ब्रिटिश सरकार ने सन 1856 में जारी किया था। शर्मा के संग्रह में इस वर्ल्ड एक्सीबिशन में आर्काइवल, डाई प्रूफ, एस्से सामग्री लगायी गई जो ब्रिटिश ऑफिसर्स के अप्रूवल के लिए होती थी। इससे पूर्व शर्मा ने चीन और थाईलैंड में भी वर्ल्ड एक्सिबिशन में भाग लिया और देश के लिए कई मैडल प्राप्त किये। यह उनका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। उनका यह गोल्ड मेडल भारतीय कमिश्नर (पूर्व प्रशसनिक अधिकारी) सहदेव साहू ने प्राप्त किया। उन्होंने 2010 में भारतीय डाक विभाग द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय फिलाटेलिक एक्सीबिशन में सर्वोच्च गवर्नर ट्रॉफी भी प्राप्त की।
उदयपुर के अद्वैया सोलूशन्स में डायरेक्टर पद पर कार्यरत वीरेन्द्र शर्मा मूलतः जोधपुर हाल उदयपुर निवासी है, तथा फिलाटेलिक एक्सीबिशन के नेशनल अक्क्रेडिटेड़ जूरी में भी शामिल है।
भारत द्वारा वर्ष 2011 में नई दिल्ली में वर्ल्ड फिलाटेलिक एक्सीबिशन भारतीय डाक विभाग द्वारा इण्डिपेक्स-2011 आयोजित की गई थी।
इस अवसर पर उदयपुर फिलाटेलिक एवं नुमिस्मैटिक सोसाइटी के अध्यक्ष ऍम आर भंडारी ने बताया की इस अद्भुद उपलब्धि के अतरिक्त वीरेंद्र ने भारतीय डाक विभाग, इंडिया स्टडी सर्किल-यूनाइटेड किंगडम, द रॉयल फिलाटेली सोसाइटी-लंदन के माध्यम से कई वेबिनार में अपनी रिसर्च प्रदर्शित की है। सीनियर फिलटलिस्ट एवं उद्धयमी अनोश ईलाविया ने इसे भारतीय फिलाटेली के लिए एक मील का पत्थर बताया।
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