शौकत अजमेरी के प्रथम उपन्यास " कीपर्स ऑफ़ द फैथ" पर एक परिचर्चा

 शौकत अजमेरी के प्रथम उपन्यास " कीपर्स ऑफ़ द फैथ" पर एक परिचर्चा

""कीपर्स ऑफ़ द फैथ" एक व्यंग्यात्मक शीर्षक है की जो धर्म के तथाकथित रक्षक, धर्मगुरु और धर्म के ठेकेदारों पर एक तंज़ है की यदि उनके आदेशों की पालना ना हो तो आप न सिर्फ घर्म विरोधी हो बल्कि आपको सामाजिक बहिष्कार का दंश भी झेलना पड़ सकता है।
 
शौकत अजमेरी के प्रथम उपन्यास " कीपर्स ऑफ़ द फैथ" पर एक परिचर्चा
अंग्रेजी भाषा में रचित उपन्यास  "कीपर्स ऑफ़ द फैथ" के बारे में बताते हुए शौकत ने बताया की 70 के दशक में एक समुदाय विशेष में सामाजिक बहिष्कार का दंश भोग रहे एक प्रेमी युगल अकबर और रुखसाना की प्रेम कहानी को अत्यंत मार्मिक तरीके से दर्शाया गया है। यह उपन्यासिक प्रेम कथा पाठकों को बहुत ईमानदारी और संवेदनशीलता से उदयपुर से मुंबई और वहां से अमेरिका तक ले जाती है। उपन्यास में सामाजिक बहिष्कार और उससे समुदाय में फैली नफरत की वजह से समाज के टुकड़े होने को अकबर और रुखसाना की ही नहीं , उन दोनों के परिवार की बेबसी को भी बहुत ही प्रभावशाली तरीके से रेखांकित किया गया है।
 

उदयपुर 21 फरवरी 2020। उपन्यासकार एवं लेखक शौकत अजमेरी के प्रथम अंग्रेजी उपन्यास " कीपर्स ऑफ़ द फैथ" पर एक परिचर्चा आज सायं 4 बजे सेवा मंदिर के सभागार में आयोजित की गयी। जिसमें लेखक और उपन्यासकार शौकत अजमेरी ने स्वयं उपस्थित रह कर उपन्यास के बारे में उपस्थित समूह से रूबरू हुए। जहाँ समाजसेवी नासिर जावेद ने उपन्यास के सम्बन्ध में कई रोचक सवाल किये जिसके शौकत अजमेरी ने बेबाकी से जवाब दिए।

वर्तमान में कनाडा में निवासरत और मूलतः उदयपुर में पढ़े लिखे , पले बढे, दुबई और कुवैत में अपनी जर्नलिज़्म अपने हुनर दिखा चुके लेखक और उपन्यासकार शौकत अजमेरी सामाजिक बहिष्कार और अन्य सामाजिक बुराईयों के विरूद्ध लिखने वाले प्रगतिशील लेखक माने जाते है।

अंग्रेजी भाषा में रचित उपन्यास  "कीपर्स ऑफ़ द फैथ" के बारे में बताते हुए शौकत ने बताया की 70 के दशक में एक समुदाय विशेष में सामाजिक बहिष्कार का दंश भोग रहे एक प्रेमी युगल अकबर और रुखसाना की प्रेम कहानी को अत्यंत मार्मिक तरीके से दर्शाया गया है। यह उपन्यासिक प्रेम कथा पाठकों को बहुत ईमानदारी और संवेदनशीलता से उदयपुर से मुंबई और वहां से अमेरिका तक ले जाती है। उपन्यास में सामाजिक बहिष्कार और उससे समुदाय में फैली नफरत की वजह से समाज के टुकड़े होने को अकबर और रुखसाना की ही नहीं , उन दोनों के परिवार की बेबसी को भी बहुत ही प्रभावशाली तरीके से रेखांकित किया गया है।

एक सवाल के जवाब में लेखक ने बताया की उपन्यास का शीर्षक ""कीपर्स ऑफ़ द फैथ" एक व्यंग्यात्मक शीर्षक है की जो धर्म के तथाकथित रक्षक, धर्मगुरु और धर्म के ठेकेदारों पर एक तंज़ है की यदि उनके आदेशों की पालना ना हो तो आप न सिर्फ घर्म विरोधी हो बल्कि आपको सामाजिक बहिष्कार का दंश भी झेलना पड़ सकता है।

उपन्यास के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए लेखक बताते है की सामाजिक बहिष्कार और उससे परस्पर उपजी घृणा से पारिवारिक और सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने की सच्ची घटनाओं को इस उपन्यास में सिलसिलेवार इस तरह पेश किया गया है कि उपन्यास के हर एक चरित्र में पाठक स्वयं को उपस्थित पाता है, कहीं कहीं तो लगता है कि सब कुछ उसके आस पास और इर्द-गिर्द ही घटित हो रहा है। उपन्यास पढ़ते हुए पाठक कई बार स्वयं को अकबर और रुखसाना, कभी उसके दोस्त तो कभी उसके रिश्तेदार के रूप में भी छटपटाता पाता है।  



मुंशी प्रेमचंद और सआदत हुसैन मंटो से प्रेरित लेखक शौकत ने बताया की उन्होंने उपन्यास में प्रेम कहानी और फिक्शंस को चुना क्यूंकि प्रेम भावनाओ को दर्शाने का सबसे सशक्त माध्यम है। उनका उपन्यास प्रेम कहानी के साथ 1970 से लेकर 2000 तक के सफर में तत्कालीन घटनाक्रम के साथ साथ चलता है। जिनमे राष्ट्रीय अंतरार्ष्ट्रीय घटनाक्रम का एक व्यक्ति के निजी जीवन पर किस प्रकार प्रभावित होता है। यह सब उपन्यास में बड़ी खूबसूरती से पेश किया गया है।

एक अन्य सवाल के जवाब में लेखक उपन्यासकार शौकत अजमेरी ने बताया की उनके उपन्यास से समाज का कुछ वर्ग उनका विरोध करेंगे यहाँ तक की उनके खिलाफ फतवा भी जारी हो सकता है। लेकिन एक लेखक को इन सबकी परवाह न करते हुए सच्चाई को समाज के सामने लाने में हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। बल्कि कई बार विरोध में जा रही बाते आपको और भी सशक्त बनाती है।

लेखक ने बताया की "लिखना मेरा शौक है, अगर मैं कुछ न लिखू तो मुझे बेचैनी महसूस होती है" बस इसी भावना से उन्हें उपन्यास लिखने की प्रेरणा मिलती रही। उपन्यास के लिखने और प्रकाशित होने में लगभग पांच वर्ष लगे। भविष्य में लेखक ने उ "कीपर्स ऑफ़ द फैथ" को उन्होंने हिंदी, गुजराती और उर्दू में अनुवाद करने की भी मंशा जताई ताकि अधिक से अधिक लोगो को अपना सन्देश पहुंचा सके।

परिचर्चा में सेवा मंदिर में उपस्थित छात्रों की जिज्ञासा शांत करते हुए लेखक ने छात्रों के कई रोचक सवाल का सुंदरता से जवाब दिया। उन्होंने छात्रों को आह्वान किया की हमेशा कुछ न कुछ लिखते रहे, आने आस पास घटने वाले घटनाक्रम, समाज में बदलाव और नए विचारो की सृजनशीलता लिखने और किताबे पढ़ने से ही मिलेगी। हालाँकि आज के युग में दुर्भाग्यपूर्ण रूप से किताबे पढ़ने का चलन कम हो गया है।



अंत में लेखक शौकत अजमेरी ने उपस्थित जन समूह और सेवा मंदिर का बआभार जताते हुए कहा की सेवा मंदिर ने उनके उपन्यास पर परिचर्चा के सभागार उपलब्ध करवाया। इस अवसर पर कार्यक्रम का सफल संचालन करने वाले नासिर जावेद, सेवा मंदिर के मुख्य कार्यकारी निदेशक रौनक शाह, वर्षा राठौड़, सेवं मंदिर की लाइब्रेरी के समस्त स्टाफ, शब्बीर नासिर, अख्तर हुसैन बोहरा आदि मौजूद थे।  

To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on   GoogleNews |  Telegram |  Signal