'द वॉयस सर्वे' ने भारत में जीवन कौशल शिक्षा की स्थिति पर बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की है। बड़े पैमाने पर किए गए इस सर्वे का मकसद जीवन कौशल को लेकर युवाओं, अभिभावकों, स्कूली शिक्षकों/आईटीआई प्रशिक्षकों और तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण (टीवीईटी) संस्थानों के प्रशिक्षकों की धारणा और उनमें जागरूकता के स्तर को समझना है। लाइफ स्किल्स कोलैबोरेटिव ने ब्रेकथ्रू, क्वेस्ट एलायंस और प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन के साथ मिलकर इस सर्वे को अंजाम दिया।
'द वॉयस सर्वे-2023' राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, हरियाणा और मिजोरम के 11 जिलों में किया गया। यह सर्वे जीवन कौशल शिक्षा के संबंध में युवाओं के सामने आने वाली चुनौतियों और अवसरों की बारीक समझ प्रदान करता है।
प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) रुकमणि बनर्जी ने कहा:
"द वॉयस सर्वे के नतीजे तत्काल ऐसी पहल किए जाने की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं, जो युवाओं को न सिर्फ जीवन कौशल को समझने, बल्कि उसे हासिल करने के अवसर प्रदान भी करती हैं। इस उद्देश्य की प्राप्ति में सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। दरअसल, सर्वे से पता चला है कि जीवन कौशल से वाकिफ अधिकांश युवाओं ने अपने शिक्षकों से इसके बारे में सुना था। इससे जीवन कौशल शिक्षा को पाठ्यक्रम में एकीकृत करने में सार्वजनिक शिक्षा प्रणालियों की महत्वपूर्ण भूमिका उजागर होती है।”
सर्वे में फोकस, समूह चर्चाओं के माध्यम से गुणात्मक अन्वेषण के साथ मात्रात्मक संकेतकों को शामिल करते हुए एक बहु-विधि दृष्टिकोण अपनाया गया है| घर-घर जाकर किए गए इस सर्वे में कुल 15,856 युवा और 13,806 अभिभावक शामिल हुए। इस दौरान जीवन कौशल को लेकर उनके विचारों की व्यापक समझ हासिल हुई। 2,366 स्कूली शिक्षकों ने भी सर्वे में हिस्सा लिया, जिससे एक शिक्षक के नज़रिए से जीवन कौशल को लेकर बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्राप्त हुई।
सर्वे के मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार हैं:
व्यावसायिक/कौशल प्रशिक्षण का अनुभव
सर्वे से सामने आया है कि ग्रामीण भारत के लगभग 80 फीसदी युवाओं ने अभी तक व्यावसायिक/कौशल प्रशिक्षण नहीं लिया है, जो कौशल विकास के मामले में एक बड़े अंतर की तरफ इशारा करता है। इससे पता चला है कि जिन लोगों ने प्रशिक्षण हासिल किया है, उनके बीच कंप्यूटर कोर्स पहली पसंद रहे हैं।
व्यावसायिक/कौशल प्रशिक्षण को लेकर लैंगिक असमानताएं भी देखने को मिली हैं। 33 फीसदी युवकों के मुकाबले 39 प्रतिशत युवतियां व्यावसायिक प्रशिक्षण का विकल्प चुनती हैं।
क्षेत्रीय अंतर भी स्पष्ट रूप से सामने आए हैं। मिजोरम के लुंगलेई में 96 फीसदी युवाओं ने कोई व्यावसायिक प्रशिक्षण नहीं लिया है, जबकि महाराष्ट्र के सोलापुर और सतारा में ऐसी ट्रेनिंग हासिल करने वाले युवाओं की संख्या क्रमश: 44 प्रतिशत और 43 प्रतिशत दर्ज की गई है।
ये निष्कर्ष युवाओं के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण के अवसरों में अंतर और असमानताओं को दूर करने के वास्ते लक्षित प्रयास किए जाने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
डिजिटल उपकरणों तक पहुंच
सर्वे से स्मार्टफोन पर ग्रामीण युवाओं की स्पष्ट निर्भरता का खुलासा हुआ है। इसमें शामिल 92 फीसदी प्रतिभागियों ने विशेष रूप से संचार, 95 फीसदी ने मनोरंजन और 88 फीसदी ने पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने की बात कही।
ग्रामीण युवक न सिर्फ मनोरंजन, बल्कि शैक्षिक उद्देश्यों के लिए भी स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं, जो उनके जीवन में इस उपकरण की बहुमुखी भूमिका पर प्रकाश डालता है। युवा महिलाओं के बीच “नयी चीजें सीखने” की दिलचस्पी में उल्लेखनीय वृद्धि देखना उत्साहवर्धक है।
14 से 18 और 19 से 22 साल के आयु वर्ग के क्रमशः 44 प्रतिशत और 51 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले लगभग 67 फीसदी और 77 फीसदी महिलाओं ने नयी चीजें सीखने के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने की बात कही।
सर्वे में शामिल बड़ी उम्र (19 से 22 साल) के लगभग 90 फीसदी युवाओं के पास मोबाइल फोन तक पहुंच थी, जबकि कम उम्र (14 से 18 साल) के लोगों के मामले में यह आंकड़ा 71 प्रतिशत था। मोबाइल फोन तक पहुंच के मामले में उल्लेखनीय लैंगिक अंतर भी देखने को मिला। मिसाल के तौर पर, बड़ी उम्र के युवाओं के बीच केवल 5.5 फीसदी पुरुषों को मोबाइल फोन तक पहुंच हासिल नहीं थी, जबकि इस आयु वर्ग की महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा तीन गुना अधिक यानी 16.3 प्रतिशत दर्ज किया गया।
जिन युवाओं के पास मोबाइल फोन है, वे ‘जीवन कौशल’ शब्द के बारे में उन लोगों से लगभग दोगुना अधिक जानते हैं, जिनके पास मोबाइल फोन नहीं है। इसी तरह, जो युवा कंप्यूटर का इस्तेमाल करना जानते हैं, वे कंप्यूटर का उपयोग न करने वालों की तुलना में इस शब्द से लगभग दोगुना परिचित हैं।
“वॉइसेज फ्रॉम द ग्राउंड” को सुनना यह सुनिश्चित करने का एक अनिवार्य हिस्सा है कि हम जो काम कर रहे हैं, वह वास्तव में उन समुदायों के लिए सार्थक है, जिनके साथ हमने साझेदारी की है। यहां प्रतिभागी संचार, आलोचनात्मक सोच, समस्या-समाधान, भावनात्मक बुद्धिमत्ता और लचीलापन जैसी महत्वपूर्ण दक्षताओं का पता लगाते हैं; इंफ्लूएंसर और गेटकीपर लोगों को प्रेरित करते हैं, वे लोगों को जीवन कौशल को रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं तथा समुदाय हमारी तरफ से जुटाए गए डेटा को महत्व देना सीखते हैं, जमीनी स्तर पर उसके परिणाम देखते हैं और अपनी प्रतिक्रिया भी जाहिर करते हैं।" सोहिनी भट्टाचार्य, मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ), ब्रेकथ्रू
समाचार/जनसंचार माध्यमों तक पहुंच
लगभग 80 फीसदी ग्रामीण युवा जहां शायद ही कभी (49%) या कभी नहीं (31%) समाचार देखते-सुनते-पढ़ते हैं। वहीं, ज्यादा उम्र के युवाओं (19-22 साल) के मामले में यह आंकड़ा 13 फीसदी, जबकि कम उम्र के लोगों के मामले में 6 प्रतिशत दर्ज किया गया है। हालांकि, खबरों की दुनिया में दिलचस्पी के मामले में लैंगिक अंतर बहुत मामूली है। ग्रामीण युवाओं के बीच देश-दुनिया की हलचल को लेकर जागरूकता का स्पष्ट अभाव है, जो जीवन कौशल पाठ्यक्रमों को अपनाने की दर बढ़ाने के लिए खबरों की दुनिया तक उनकी पहुंच में सुधार करने के लिए लक्षित हस्तक्षेप करने का संकेत देता है।
जीवन कौशल को लेकर युवाओं के बीच जागरूकता और धारणाएं
सर्वे जीवन कौशल के बारे में युवाओं में मौजूद जागरूकता के स्तर का पता लगाता है। इससे पता चलता है कि लगभग हर 10 में से चार युवाओं ने ‘जीवन कौशल’ या ‘21वीं सदी के कौशल’ शब्द के बारे में सुना है। उम्र, शैक्षणिक योग्यता और डिजिटल उपकरणों तक पहुंच जागरूकता का स्तर निर्धारित करती है। कुल मिलाकर, 41 फीसदी युवा जीवन कौशल या 21वीं सदी के कौशल के बारे में जानते हैं। ज्यादा उम्र के युवा (50%) अपने से कम उम्र के लोगों (38%) के मुकाबले इन शब्दों के बारे में अधिक जानकारी रखते हैं। अलग-अलग जिलों में अलग स्तर की जागरूकता दर्ज की गई है। हरियाणा के करनाल (61%) और झज्जर (55%) में जागरूकता का स्तर सर्वाधिक है, जबकि उत्तर प्रदेश के गोरखपुर (13%) में यह सबसे कम है। समग्र रूप से कोई लैंगिक अंतर नहीं है, लेकिन लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में पुरुष (42%) महिलाओं (28%) की तुलना में अधिक जागरूक हैं, जबकि सतारा (महाराष्ट्र) और देहरादून (उत्तराखंड) में स्थिति इसके उलट है।
जीवन कौशल जागरूकता के स्रोत
ग्रामीण युवाओं के बीच शिक्षकों का मार्गदर्शन (65%) और स्कूली पाठ्यपुस्तकें (36%) जीवन कौशल को लेकर जागरूकता पैदा करने वाले प्राथमिक स्रोत के रूप में सामने आई हैं। आयु वर्गों के बीच असमानताएं लक्षित शैक्षिक रणनीतियां अपनाने के महत्व पर रोशनी डालती हैं। शिक्षकों के साथ साझेदारी और शैक्षिक सामग्री के जरिये युवाओं को जीवन कौशल अवधारणाओं से अवगत कराया जा सकता है। जीवन कौशल सीखने की दिशा में जो चुनौतियां मौजूद हैं, उनमें ज्ञान और सामग्री की कमी के अलावा घर और स्कूल में सीमित चर्चा शामिल है। जीवन कौशल शिक्षा के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाने, चुनौतियों का समाधान करने और विविध युवा समूहों की विशिष्ट आवश्यकताओं एवं धारणाओं के अनुरूप सामग्री तैयार करने की जरूरत है।
अभिभावकों के बीच जीवन कौशल जागरूकता
सर्वे में शामिल अभिभावकों, खासतौर पर मांओं में जीवन कौशल शब्द को लेकर सीमित जागरूकता देखने को मिली। इनमें से एक-तिहाई से अधिक माँ कभी स्कूल नहीं गई थीं और केवल 21 फीसदी ने जीवन कौशल शब्द के बारे में सुना था। वहीं, उच्च शिक्षा दर वाले पिताओं में अधिक जागरूकता (35% से ज्यादा) देखने को मिली। माता-पिता में जागरूकता के स्तर में अंतर लक्षित जागरूकता अभियान और समावेशी पारिवारिक शिक्षा कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
मोबाइल फोन तक अभिभावकों की पहुंच
माता-पिता के बीच मोबाइल फोन तक पहुंच में लैंगिक असमानताएं बनी हुई हैं, जो युवा जनसांख्यिकी में देखी गई प्रवृत्तियों को प्रतिबिंबित करती हैं। सर्वे में शामिल केवल आधी माताओं के पास मोबाइल फोन था, जबकि पिताओं के मामले में यह आंकड़ा 80 प्रतिशत दर्ज किया गया। इसके अलावा, स्मार्टफोन तक महिलाओं की पहुंच कम है, जिसके चलते इसके इस्तेमाल के पैटर्न में भी उल्लेखनीय अंतर देखने को मिलता है। मोबाइल फोन तक पहुंच के मामले में लिंग आधारित पैटर्न सभी माता-पिता के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के वास्ते प्रौद्योगिकी संबंधी असमानताओं को दूर करने के महत्व को रेखांकित करते हैं।
“लाइफ स्किल्स कोलैबोरेटिव एक ऐसा मंच मुहैया करता है, जहाँ कई संगठन यह सुनिश्चित करने के लिए एक साथ आ सकते हैं कि जीवन कौशल औपचारिक शिक्षा का एक अभिन्न अंग बन जाए। यह एकीकृत मंच सामूहिक आवाज को बल देता है और जीवन कौशल के लिए मानक निर्धारित करने में मदद करता है। यह इन मानकों के अनुरूप पाठ्यक्रम और मूल्यांकन प्रणाली बनाने में सरकारी निकायों का मार्गदर्शन भी करता है। इसके अलावा, यह 21वीं सदी में फलने-फूलने के लिए इन कौशलों की आवश्यकता की जोरदार वकालत करता है।” - आकाश सेठी, मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ), क्वेस्ट अलायंस
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Pratham is an innovative learning organization created to improve the quality of education in India. As one of the largest non-governmental organizations in the country, Pratham focuses on high-quality, low-cost, and replicable interventions to address gaps in the education system. Established in 1995 to provide education to children in the slums of Mumbai, Pratham has grown both in scope and geographical coverage.
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