मुंबई आतंकी हमले की कहानी के चश्मदीद रहे कमांडो राव हिम्मतसिंह की ज़ुबानी

मुंबई आतंकी हमले की कहानी के चश्मदीद रहे कमांडो राव हिम्मतसिंह की ज़ुबानी 

टीवी पर खबर देखते ही हम तैयार हो गए, 15 मिनट में कॉल आई रातभर रेस्क्यू में आंतकियों के चंगुल से 175 लोगों को बचाया

 
commando himmat singh rao

26 नवम्बर 2008 की 13वीं बरसी.......  

मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले से पूरी मुंबई दहल उठी थी। कई लोग मारे गए। इसके बाद आतंकियों को काबू करने और महानगर में फिर से अमन-चैन लौटाने में मारकोस कमांडो की खास भूमिका रही। उसी कमांडो टीम का हिस्सा रहे हिम्मतसिंह राव मूलत सिरोही जिले के पिंडवाडा उपखंड क्षेत्र के बसंतगढ़ के रहने वाले है तथा वर्तमान में उदयपुर जिले की बडगाँव तहसील में नायब तहसीलदार हैं। 

सिरोही जिले के बसंतगढ़ निवासी हिम्मतसिंह राव 18 साल के थे तब 1999 में बतौर इंजीनियरिंग मैकेनिक भारतीय नेवी में शामिल हुए। कम समय में ही 2004 में वे सबसे जांबाज माने जाने वाले मारकोस कमांडो के लिए क्वालिफाइ हुए व मार्कोस बने। कई प्रकार के कठिन प्रशिक्षणो के साथ स्नाइपर, माउंटेनियरिंग बेसिक व एडवांस की ट्रेनिंग भी ली। वर्ष 2014 में सेना से सेवानिवृत्ति के बाद दो साल उदयपुर में रहकर आरएएस की तैयारी की। वे चित्तौड़ जिले के कपासन में आबकारी निरीक्षक के पद पर भी रह चुके है। दोबारा आरएएस की परीक्षा देकर तहसीलदार सेवा के लिए चयनित हुए। वहीं गौरतलब है कि हिम्मत सिंह व उनके पिता स्वरुप सिंह एक ही दिन सेवानिवृत हुए। हिम्मतसिंह की पत्नी हुकम कंवर भी राजसमंद जिले की देलवाडा तहसील की तहसीलदार हैं। राव ने 26 नवम्बर 2008 की 13 वीं बरसी पर अपने अनुभव साझा किए।

टीवी पर खबर देखते ही हम तैयार हो गए

commando himmat singh rao

राव ने बताया कि 26 नवंबर 2008 रात करीब 9.30 बजे थे। मारकोस कमांडो टीम के रूप में हमारी पोस्टिंग नवी मुंबई के पास आइलैंड में थी। अचानक टीवी ब्रेकिंग न्यूज फ्लैश होती है। मुंबई में फिर गैंगवार। कई लोगों के मरने की खबर। कुछ देर बाद पता चला कि यह गैंगवार नहीं, आतंकी हमला है। गेट वे आफ इंडिया के पास लियो पार्ड केफे,  होटल ताज, होटल ट्राइडेन्ट व नरीमन हाउस इन जगहों पर आंतकियों ने अंधाधुंध फायरिंग के साथ कुछ जगहों पर लोगों को बंदी बना लिया। हम वह खबर सुनकर ही अलर्ट हो गए क्योंकि ऐसे मामलों में अक्सर मारकोस को एप्रोच की जाती है। 

10 से 15 मिनट में कॉल आ भी गई। मै तीसरी टीम का सदस्य था। जहां हमले हुए, वह जगह दूर थी। हमारी टीम समुद्री रास्ते से पहुंचती है। इसके बाद अलग-अलग जगह बंट गई। मार्कोस टीम होटल ताज व होटल Trident में घुसी। होटल ताज में टीम का दो बार आंतकियों से सीधी मुठभेड़ होती है। चूंकि वहां वीआईपी गेस्ट सहित कई लोग फंसे होते हैं, इसलिए हमारे लिए सीधी फायरिंग करना आसान नहीं था। हमारी प्रायोरिटी आतंकीयो को और डेमेज करने से रोकना और सभी बंदीयो को सही सलामत रिहा करवाना था। हम इसमें कामयाब रहे। रात 11.30 बजे से सुबह तक चले रेस्क्यू में हमने 175 लोगों को सुरक्षित निकाल लिया। होटल ताज मे आतंकियों के ग्रेनेड, जिंदा कारतूस, हथियार और कुछ वस्तुएं बरामद कीं। हमारे एक कमांडो प्रवीण गम्भीर रूप से चोटिल हुए। 

ज़हन में मौत नहीं, सिर्फ मिशन 

26 नवम्बर 2008 का यह रेस्क्यू जीवन का सबसे महत्वपूर्ण व यादगार मिशन रहा, लेकिन ऐसे भीषण समय में खुद को बचाने के लिए क्या सोच रखा था? इस सवाल पर हिम्मतसिंह कहते हैं कि यह बात तो जहन में आती ही नहीं है। हमारे सामने सिर्फ और सिर्फ मिशन होता है। मार्कोस की तैयारी व हमारा साजो सामान इतना आला दर्जे का होता है कि वो किसी भी विपरीत परिस्थिति में कॉल मिलते ही निकल कार्यवाही करने में सक्षम होते हैं। 

हमे देखते ही लोगो ने नारे लगाकर उत्साह बढायाः-

हिम्मतसिंह राव ने बताया कि आतंकियों से मुठभेड़ के समय वह गेट वे आफ इंडिया पर अपनी स्नाईपर के साथ तैनात थे । ताकि कहीं से कोई आतंकी किसी भी रास्ते से भागने के मंसूबे को अंजाम ना दे सके। ताज होटल वहां से 300 मीटर दूरी पर है। तब तक अंदर व बाहर दूर तक कई लोग जमा थे। जैसे ही उन्हें पता चला कि मारकोस कमांडो आ चुके हैं, वे नारे लगाते हुए हमारा उत्साह बढ़ाने लगे। मान लिया जैसे अब कोई खतरा नहीं। उनके चेहरों पर यह चमक देखी तो सुकून मिला। लगा जीवन का लक्ष्य पा लिया।

 

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