हार तब होती है, जब मान लिया जाता है और जीत तब होती है जब ठान लिया जाता हैं

हार तब होती है, जब मान लिया जाता है और जीत तब होती है जब ठान लिया जाता हैं

लोक प्रशासन विषय के असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर चयनित भींडर निवासी दृष्टिबाधित अली असगर बोहरा की उदयपुर टाइम्स से बातचीत 

 
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हार तब होती है, जब मान लिया जाता है और जीत तब होती है जब ठान लिया जाता हैं। ज़िंदगी की जद्दोजहद से लड़ने के लिए इंसान को सहारे की जरुरत होती हैं। इंसान को जब सहारा मिलता है तो वो कुछ भी कर जाता हैं। एक ऐसे ही शख्स की प्रेरणादायक कहानी हैं। भींडर निवासी दृष्टिबाधित अली असगर बोहरा का लोक प्रशासन विषय के असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए चयन हुआ हैं। 

उदयपुर टाइम्स से उन्होंने बात करते हुए बताया कि अपनी प्रारंभिक शिक्षा उदयपुर के अंध विद्यालय से प्राप्त की। इसके बाद वर्ष 2013 में राजस्थान बोर्ड से कक्षा 12 की कला संकाय की बोर्ड परीक्षा में उदयपुर जिले में टॉप किया। 

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1. क्या आपको उम्मीद थी कि आप का असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए चयन होगा?

नहीं मैने नहीं सोचा था कि मेरा सलेक्शन हो जाएगा, क्योंकि मैं एम. ए करने के बाद सिविल सर्विस की तैयार करने में लगा हुआ था। एम.ए. करने के दौरान ही नवंबर 2017 की नेट परीक्षा का इम्तिहान दिया था जिसमें मेरा नेट क्वालीफाई हो गया था। इसके साथ पी.एच.डी में भी सलेक्शन हो गया है जो फिलहाल जारी है। उदयपुर टाइम्स से उन्होंने बात करते हुए उन्होंने कहा कि वह रिर्सच का शौक रखते है इसलिए वह अभी पब्लिक पॉलिसी पर रिर्सच कर रहे हैं।  

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2. आप अपने विद्यार्थियों के बारे में कितना जानना चाहेंगे। ताकि आप उनके लिए सहायक बन सकें?

हायर एजुकेशन में बच्चे समझदार हो जाते हैं। स्टूडेंट को जब लगेगा कि आप उनकी उम्र और भावनाओं को समझने वालों में से एक है तो न सिर्फ वे आपके कहने में रहेंगे, बल्कि जो सब्जेक्ट्स आप उन्हें पढ़ाएंगे उसमें उनकी दिलचस्पी भी बढ़ेगी। एक टीचर की सबसे बड़ी खासियत स्टूडेंट्स को इंगेज कर पाने की उसकी क्षमता हैं। जो टीचर पढ़ाते हुए स्टूडेंट्स को  इंगेज कर पाते हैं, सब्जेक्ट के प्रति प्रेम पैदा कर पाते हैं, उसमें आगे बढ़ने और एक्सप्लोर करने के लिए बच्चों को उकसा पाते हैं, उनके लिए पढ़ाना आनंददायक काम साबित होता है। सभी तरह से स्टूडेंट को इंवॉल्व करने का हुनर आना चाहिए। खासकर एक ऐसे वक्त में जब स्टूडेंट्स के पास सूचना और जानकारी पाने के स्त्रोत बढ़ गए हैं, टीचर को इसे अपने लिए एक चुनौती की तरह लेना चाहिए। वह यह देखें कि कैसे टेक्नीकल एंडवांसमेंट के साथ अपने टीचिंग मेथड का तालमेल बिठा सकते हैं।

3. अभी तक आपको कौन-कौन से अवार्ड से नवाज़ा गया हैं?

अली असगर बोहरा को अपनी शैक्षिक उपलब्धियों के कारण कई अवार्ड भी मिल चुके हैं। वर्ष 2013 में स्वाधीनता दिवस समारोह पर जिला प्रशासन द्वारा तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री दयाराम परमार के हाथों से मुझे को सम्मानित किया गया। उसी वर्ष गुवाहाटी में अमेरिकन फेडरेशन ऑफ मुस्लिम्स ऑफ इंडियन ओरिजिन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भी को गोल्ड मेडल प्रदान किया गया। 

4. जो बच्चे देख नहीं सकते, सुन नहीं सकते, कुछ काम नहीं कर सकते उन बच्चों से आप क्या कहना चाहेंगे?

बच्चों के लिए बेहद जरुरी है उनके आस-पास का वातावरण कैसा हैं। इस दुनिया मे दो तरह के लोग होते हैं। पहले वो लोग जो सोचते है कि ऐसे बच्चे कुछ नहीं कर सकते और दूसरे वो लोग जो सोचते है कि ऐसे बच्चे बहुत कुछ कर सकते हैं। मुझे यह सफलता अपने परिवार की वजह से हासिल हुई है क्योंकि मेरा परिवार और स्कूल दोनों तरफ का वातावरण बेहद अच्छा था। लेकिन जिन बच्चों को ऐसा वातावरण नहीं मिल पाता है वह आगे नहीं बढ़ पाते हैं। अधिकतर स्कूलों में वेट टाइम के कॉन्सेप्ट में यकीन रखते हैं। जब आप बच्चे से कुछ कहें तो उन्हे कम से कम 7-8 सेकेंड का समय दें ताकि वे आपकी बात समझ सकें। सभी बच्चों को कहना चाहूंगा कि सभी एग्जाम देते रहे। शिक्षा के बिना सब कुछ अधूरा।  

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