उदयपुर। मेवाड़ के शासक रहे महाराणा कुंभा जहाँ अप्रतिम योद्धा ,कुशल शासक, महान निर्माता ,कला मर्मज्ञ, संगीतकार ,साहित्यकार होने के साथ विद्वानों कलाकारों और गुणी जनों का आश्रय दाता थे वहीं वे साहित्य के प्रति गहरी रूचि रखते थे और यहीं कारण है कि उन्होंने अपने शासनकाल में अनेक साहित्य ग्रन्थों की रचना करवायी।
यह कहना था महाराणा कुंभा एंव हिन्दुस्तानी संगीत पुस्तक की लेखिका डाॅ. नूतन कवटिकर का। जिनकी पुस्तक का विमोचन आज यहाँ किया गया। डॉ नूतन कविटकर द्वारा लिखित इस पुस्तक मे कुंभा द्वारा हिंदुस्तानी संगीत के विकास में दिए गए योगदान की व्याख्या की गई है। मेवाड़ के शासक रहे महाराणा कुंभा सभी दृष्टियों से योग्य एवं प्रतिभा संपन्न शासक थे। ये समस्त गुण महाराणा कुंभा में केवल ज्ञान के स्तर पर ही नहीं वरन् उनके जीवन व्यवहार में भी सभी गुण विद्यमान थे।
महाराणा कुंभा ने अपने शासनकाल में मेवाड़ में कई निर्माण कराए थे। उनमें कई दुर्ग ,शहर तथा वैष्णव व जैन मंदिर ,कुएं बावड़िया राजमहल ,कीर्ति स्तंभ जैसे विशिष्ट स्मारकों का निर्माण कराया था ,सैन्य तथा युद्ध परक गतिविधियों एवं स्थापत्य निर्माण कार्यों के साथ ही महाराणा कुंभा ने अपने शासनकाल में कई प्रकार के साहित्य ग्रंथ की भी रचना कराई थी। उनके शासनकाल में सनातन धर्म के अंतर्गत शैव एवं वैष्णव संप्रदाय साहित्य लिखा गया और जैन धर्म के अंतर्गत श्वेतांबर एवं दिगंबर संप्रदाय से संबंधित साहित्य का लेखन हुआ।
धार्मिक साहित्य के अतिरिक्त कुंभा के शासनकाल में कला परक एवं प्रकीर्ण साहित्य का भी प्रभुत सृजन हुआ। कला परक साहित्य के अंतर्गत स्थापत्य कला, मूर्ति कला एवं संगीत कला पर भी कई विशेष ग्रंथों की रचना हुई। महाराणा कुंभा के शासनकाल में रचे गए विविध पक्षीय साहित्य में से संगीत कला के प्रसंग में रचे गए। साहित्य का विशेष महत्व है, इसका प्रमुख कारण यह है कि कुंभा के काल में रचे गए संगीत कला परक लगभग सभी ग्रंथ महाराणा कुंभा द्वारा स्वयं लिखें गए थे। यही नहीं कुंभा ने शासन काल में स्वय कुंभा द्वारा संगीत कला परक दो ग्रंथ लिखे गए। उनमें से एक ऐसे ग्रंथ की रचना सम्मिलित है, जो हिंदुस्तानी संगीत की दृष्टि से अपनी साहनी की एक अकेली रचना हैस इस रचना का नाम संगीत राज है। संगीत राज ग्रंथ 16000 श्लोकों तथा सुविस्तृत 5 कोषों में विभाजित कर पुनः 20 उप खंडो में बांटकर कुल 80 अध्यायों की एक सुविस्तृत रचना है। जिसमें मानव जीवन में संगीत के महत्व और महिमा से लेकर गायन, वादन ,नृत्य एवं संगीत कला के इन तीनों पक्षों से संबंधित प्रत्येक पक्ष की विस्तार से जानकारी प्रस्तुत की गई है।
इस पुस्तक में लेखिका ने महाराणा कुंभा के सृजनात्मक व्यक्तित्व की व्याख्या, कुंभा द्वारा हिंदुस्तानी संगीत के विकास में दिए गए, योगदान की व्याख्या,कुंभा द्वारा सृजनात्मक कलाओं के साथ हिंदुस्तानी संगीत के विशेषताओं को समेकित स्वरूप में प्रस्तुत करने संबंधी चेष्टाओं की गई है एवं कुंभा द्वारा रचित संगीत राज ग्रंथ के तीन कोष प्रमुख कोषों, गीत रत्न कोष एवं वाद्य रत्न कोष एवं नृत्य रत्न कोश की विषय वस्तु की संक्षिप्त व्याख्या प्रस्तुत की गई है।
कुंभा द्वारा रचित संगीत राज ग्रंथ भारतीय शास्त्रीय संगीत संबंधी रचनाओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और प्रमुख स्थान रखता है ग्रंथ संगीत साधना करने वालों के लिए विशेष दृष्टि प्रदान करने वाला है। इस ग्रंथ में भारतीय अथवा हिंदुस्तानी संगीत के सिद्धांत एक दार्शनिक आध्यात्मिक एवं व्यवहारिक पक्ष मुखर हुए हैं महाराणा कुंभा का संगीत राज ग्रंथ मध्य युग तक हिंदुस्तान के शास्त्रीय संगीत में संशोधन परिवर्तन की प्रक्रिया को प्रकट करने वाला ग्रंथ है।
लेखिका डॉ नूतन द्वारा संगीत राज ग्रंथ के संगीत विशेषताओं का और उनका भारतीय शास्त्रीय संगीत के संदर्भ में महत्व का प्रतिपादन हुआ है महाराणा कुंभा समग्र रूप में कला अनुरागी एवं विशिष्ट रूप में संगीत कला का परम अनुरागी था उसने संगीत राज ग्रंथ की रचना करके भारतीय शास्त्रीय संगीत की अनुपम सेवा की है और संगीत राज ग्रंथ की रचना में भारतीय शास्त्रीय संगीत समृद्ध हुआ है। पुस्तक का विमोचन डाॅ. यशवन्तसिंह कोठारी, डाॅ. प्रेम भण्डारी,सुशील दशोराव आर्या बुक के प्रकाशक व लेखिका डाॅ.नूतन कविटकर ने किया।
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