चुनावी किस्से-राजस्थान की चार सीट जहाँ रिश्तेदार एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे है चुनाव


चुनावी किस्से-राजस्थान की चार सीट जहाँ रिश्तेदार एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे है चुनाव

धौलपुर से देवर-भाभी, दांता रामगढ़ से पति-पत्नी, नागौर एवं खेतड़ी से चाचा-भतीजी एक दूसरे के सामने

 
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राजनीती में जहाँ स्थापित नेता रिश्तेदारों को टिकट दिलवाने की जुगत में रहते है वहीँ कई बार राजनीती में रिश्तेदार भी एक दूसरे के सामने खड़े होकर चुनौती दे डालते है। आज राजस्थान विधानसभा की ऐसी चार सीटों को ज़िक्र करेंगे जहाँ पति-पत्नी, चाचा-भतीजी और देवर-भाभी एक दूसरे के सामने चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे है। 

राजस्थान के धौलपुर विधानसभा सीट से देवर-भाभी एक दूसरे के सामने है मज़े की बात यह है कि दोनों देवर-भाभी पिछले चुनाव में भी एक दूसरे के सामने थे तब दोनों की पार्टी अलग थी इस बार दोनों पार्टी बदलकर फिर से एक दूसरे के सामने है तो सीकर ज़िले की खेतड़ी विधानसभा सीट और नागौर विधानसभा सीट से चाचा-भतीजी एक दूसरे के सामने है जबकि झुंझुनू ज़िले की दांता रामगढ़ विधानसभा सीट से तो पति-पत्नी एक दूसरे के सामने चुनाव लड़ रहे है। 

दांता रामगढ़ विधानसभा सीट 

इस विधानसभा सीट से पति-पत्नी एक दूसरे के सामने चुनाव लड़ रहे है। कांग्रेस ने वर्तमान विधायक वीरेंद्र सिंह चौधरी को टिकट दिया है तो वीरेंद्र सिंह की पत्नी रीता चौधरी जननायक जनता पार्टी से चुनाव लड़ रही है। इस प्रकार इस विधानसभा सीट से पति पत्नी एक दूसरे के सामने चुनाव लड़ रहे है। इस सीट से भाजपा ने गजानंद कुमावत को उम्मीदवार बनाया है।  पिछले चुनावो में रीता चौधरी ने कांग्रेस से टिकट मांगा था लेकिन कांग्रेस से सात बार के विधायक और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष नारायण सिंह सिंह चौधरी के बेटे वीरेंद्र चौधरी (रीता चौधरी के पति) को टिकट दिया था। वीरेंद्र चौधरी वर्तमान में विधायक है।  

सीकर ज़िले की यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है। भाजपा ने कभी भी यहाँ से जीत हासिल नहीं की है। 1977, 1980 में निर्दलीय तो 1990 में जनता दल और 2008 में सीपीआई ने जीत दर्ज की थी। इसके अतिरिक्त कांग्रेस के नारायण सिंह यहाँ से सात बार विजयी रहे है। 

धौलपुर विधानसभा सीट 

इस सीट से देवर-भाभी आमने सामने है। दिलचस्प बात यह है की पिछली बार भी देवर-भाभी आमने सामने थे लेकिन 2018 में देवर डॉ शिवचरण कुशवाहा कांग्रेस के उम्मीदवार थे और भाभी शोभारानी कुशवाहा भाजपा की उम्मीदवार थी लेकिन अब परिस्थितयां बदल गई है। 2018 में भाजपा की टिकट पर जीती शोभारानी कुशवाहा को राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग करने के चलते भाजपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। शोभारानी कुशवाहा को कांग्रेस ने इस बार उम्मीदवार बनाया जबकि भाजपा ने पिछली बार के कांग्रेसी उम्मीदवार डॉ शिवचरण कुशवाहा को उम्मीदवार बनाया है। शोभारानी कुशवाहा के पति डॉ शिवचरण के भाई है। 

कभी 1985 में वसुंधरा राजे ने इसी सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा में प्रवेश किया था। इस सीट पर पिछले 10 चुनावों में 3 बार कांग्रेस, 1 बार बसपा तथा 6 बार भाजपा चुनाव जीत चुकी है। यह चुनाव इस बार दिलचस्प होने जा रहा है जहाँ देवर-भाभी एक बार फिर आमने सामने है। 

नागौर विधानसभा सीट 

इस विधानसभा सीट पर मिर्धा परिवार की आपसी जंग है। यहाँ चाचा-भतीजी एक दूसरे के सामने है। हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुई भतीजी ज्योति मिर्धा को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया है तो कांग्रेस ने ज्योति मिर्धा के चाचा पूर्व विधायक हरेंद्र मिर्धा को उम्मीदवार बनाया है। पिछली बार इस सीट से भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए हबीबुर्रहमान को भाजपा के मोहन राम से पराजय मिली थी। 

कांग्रेस ने इस सीट पर आखिरी बार 1998 में जीत दर्ज की थी। उससे पूर्व 1985 में भी कांग्रेस जीती थी। 2003 से 2018 तक इस सीट पर भाजपा जीतती आई है। 1990 में जनता दल ने भी एक बार यह सीट जीती है। 

खेतड़ी विधानसभा सीट 

झुंझुनू ज़िले की खेतड़ी विधानसभा सीट से भी चाचा-भतीजी एक दूसरे के सामने चुनाव लड़ रहे है भाजपा ने जहाँ चाचा धर्मपाल गुर्जर को अपना उम्मीदवार बनाया है तो भतीजी मनीषा गुर्जर को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया है। दोनों ही चाचा भतीजी पहले भाजपा में थे और भाजपा से टिकट के दावेदार थे। चाचा धर्मपाल गुर्जर को टिकट मिलने से नाराज़ भतीजी मनीषा गुर्जर ने भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया और अब कांग्रेस से टिकट हासिल कर चाचा के सामने ताल ठोक दी है। 

पिछली बार के चुनाव में कांग्रेस के जितेंद्र ने करीबी मुकाबले में 957 वोटो से भाजपा के धर्मपाल गुर्जर को हराया था। 1977 से लेकर अब तक 5 बार भाजपा ने तो चार बार कांग्रेस से इस सीट पर चुनाव जीता है वहीँ 1990 में निर्दलीय के रूप में हजारीलाल ने चुनाव जीता था।  

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