My Roads are Silent but Neat, My Lakes are Lonely but Clean and Mesmerizing, My Gardens are empty but greener and pristine. Nature has hit its Reset button. Life will be back with more Love for Nature.
इस जंग को जीतने की ललक, दिखती हर कहीं है - a poem by Udaipur based Khatoon, on the awesome loneliness that has become a part of life for quite some time. The pictures of some of the beautiful and once crowded parts of Udaipur being showcased through this poem, ably supported by mesmerizing music by Navaid, who is a school student from Udaipur. Enjoy the poem, go through the beauty of Udaipur and live the music...by Navaid who has got together two genres, with lo-fi hip hop suggesting Nature's comback in the first part coupled with flowline by Balo alongwith Ethnic encompassing Indian Folk.
अजब दौर से गुज़र रही, दुनिया यहां अभी है,
बंद आदमी है, रास्तों पर वो दिखता कहीं नहीं है...
अपनी ताक़त और ज़ेहानत पर नाज़ करने वाला,
डरा हुआ उस कीटाणु से, जो दिखता कहीं नहीं है...
तेज़ रफ़्तार दौड़ती ज़िन्दगी को थामने वाली,
इक रूहानी ताक़त है, जो दिखती कहीं नहीं है...
ख़ामोशी है, सन्नाटा है, सहमा हुआ जहां है,
उम्मीदों की किरणें, फिर भी दिखती हर कहीं हैं...
इंसाँ को बचाते हुए, इंसाँको संभालते हुए,
खाकी-सफ़ेद लिबास में, ख़ुदा दिखता हर कहीं है...
भूखों को खिलाते, बेसहारों को आसरा देते,
इंसानियत के ख़ूबसूरत चेहरे, दिखते हर कहीं हैं...
आसमानों की चमक, हवाओं की ताज़गी, पंछियों की चेहचाहट,
कुदरत को मिली नयी ज़िन्दगी के, सुबूत दिखते हर कहीं हैं...
इक दूसरे से दूर मगर मज़बूती से जुड़े, पुर-उम्मीद इंसानों की,
इस जंग को जीतने की, ललक दिखती हर कहीं है।
इस जंग को जीतने की, ललक दिखती हर कहीं है।।
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