नेहरू गार्डन का काया कल्प किसके लिए ? पर्यटकों के लिए या शादियों के लिए

नेहरू गार्डन का काया कल्प किसके लिए ? पर्यटकों के लिए या शादियों के लिए 

7.47 करोड़ रूपये खर्च करेगी यूआईटी नेहरू गार्डन को संवारने के लिए

 
NEHRU

फतेहसागर झील नेहरू गार्डन के काया कल्प होने वाला है। यूआईटी इन्हे सँवारने के लिए 7.47 करोड़ खर्च करेगी। नेहरू गार्डन में फुटपाथ, छतरियां, फाउंटेन, सुविधा घर और दोनों रेस्टॉरेंट्स को नए सिरे से बनाया जाएगा।  लाइटनिंग, साउंड सिस्टम के साथ हॉर्टिकल्चर के कार्य भी करवाए जाएंगे। सभी कार्यो को पूरा करने का टारगेट दिसंबर तक रखा गया है।  

यानि अगले बरस तक पर्यटकों और स्थानीय लोगो को नेहरू गार्डन का बदला हुआ स्वरुप मिलेगा। बहुत अच्छा कार्य हो रहा है और होना भी चाहिए।  झील के मध्य बना यह गार्डन वाकई आकर्षण केंद्र है।  यूआईटी ने 5 साल से उपेक्षित और अनदेखी के बाद आखिरकार इन्हे संवारने का जिम्मा उठा ही लिया।  

मीडिया में छपी खबर के अनुसार नेहरू गार्डन के बदले स्वरुप में सैर के साथ साथ खाने पीने के व्यंजन की भी सुविधा मिलेगी। यही नहीं गार्डन में ओपन थिएटर और लोक कला मंडल व शिल्पग्राम की तरह स्टेज भी तैयार करवाएंगे। और तो और काम पूरा होने के बाद गार्डन में शादियां भी करवाने का प्लान है। 

अब सवाल यह उठता है वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में मशहूर होती जा रही है लेकसिटी में क्या मैरिज गार्डन की वाकई इतनी कमी हो गई है की अब नेहरू गार्डन को भी वेडिंग हॉल में तब्दील किया जाये ? 

जिस दिन नेहरू गार्डन में शादी होगी, उस दिन देश विदेश से और दूर दूर से आने वाले पर्यटक क्या नेहरू गार्डन देखे बिना लौटेंगे ? मान लीजिये नेहरू गार्डन के किसी एक हिस्से में ही वेडिंग हो रही हो और दुसरे हिस्से में पर्यटक घूमने के लिए आएंगे तो स्थिति क्या बनेगी ? शादी करने वाला परिवार भी डिस्टर्ब होगा और पर्यटक भी डिस्टर्ब होगा। 

और अगर नेहरू गार्डन में शादियां होने लगेगी तो बैंड बाजा, डीजे, आतिशबाज़ी से जलीय जीव आनंद तो नहीं लेंगे लेकिन परेशान ज़रूर होंगे। यह बात और है कि उनकी परेशानी सुनने वाला कोई नहीं होगा।  क्यूंकि वह तो बेचारे न धरना प्रदर्शन करते है न ही किसी को ज्ञापन दे सकते है और न हीं किसी अदालत का दरवाज़ा खटखटा सकते है। 

क्या यूआईटी इतनी रकम इसलिए खर्च कर रही है कि नेहरू गार्डन में शादियां करवा के कमाई की जा सके ? कमाई के लिए नेहरू गार्डन तक चलने वाली नाव का ठेका, वहां पर संचालित रेस्टॉरेंट्स के ठेके काफी नहीं है।  नेहरू गार्डन बरसो से आमजन और पर्यटक के लिए घूमने का स्थान था और सार्वजानिक पार्क था तो इसे सार्वजानिक पार्क ही रहने दिया जाना चाहिए। क्या शादियों के लिए शहर में पहले से मैरिज हॉल, वाटिकाएँ, सामुदायिक भवन बहुतायत में मौजूद नहीं है? शहर में शाही शादी के लिए भी क्या बड़े बड़े होटल्स पहले ही मौजूद नहीं है?

ज़ाहिर है इन सब सवालों का जवाब यूआईटी और शहर के कर्णधारो के पास मौजूद होगा लेकिन हम अपने पाठको से भी चाहेंगे की इस पर अपनी राय ज़रूर भेजे। 
 

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