बीते दो दिन से चुनाव के नतीजों की चर्चा सुर्खियां बटोर रही है। सबसे ज़्यादा चर्चा गुजरात विधानसभा के चुनाव की चल रही है जबकि यहाँ नतीजा हर कोई पहले से जानता था। बेशक भाजपा की यहाँ राज्य के चुनावी इतिहास की सबसे बड़ी जीत है। और इस जीत के हक़दार पीएम मोदी ही है। लेकिन दो अन्य बड़े चुनाव के नतीजों में हिमाचल प्रदेश और दिल्ली एमसीडी में जहाँ भाजपा सत्तारूढ़ थी, उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
यहीं नहीं अन्य राज्यों के विधानसभा के उपचुनाव और यूपी के मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के नतीजों में यूपी की रामपुर विधानसभा को छोड़कर भाजपा के लिए कोई खास उत्साहित नतीजे नहीं मिले है। लेकिन तथाकथित मैनस्ट्रीम मीडिया में सिर्फ गुजरात ही छाया हुआ है। गुजरात में भाजपा की जीत पहले से ही तय थी। बस मार्जिन का ही सवाल था जो की भाजपा ने बिलाशक अच्छे से कवर किया है।
भाजपा की इस प्रचंड जीत में आप और कांग्रेस का योगदान भी कम नहीं रहा। खासकर कांग्रेस का जो की गुजरात में चुनावो के दौरान कहीं नज़र ही नहीं आई। नतीजा कांग्रेस ने अपने कोर वोटर भी खो दिए। वहीँ जोर शोर से प्रचार करने वाली आम आदमी पार्टी के पास खोने को कुछ नहीं था लेकिन उसने कांग्रेस की कीमत पर पांच सीट और 13 फीसदी वोट हासिल राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर लिया। यानि गुजरात में भाजपा को ही नहीं आप को भी बड़ा फायदा मिला है।
जहाँ मीडिया में केवल गुजरात के नतीजों पर फोकस किया है। वहीँ हिमाचल और दिल्ली एमसीडी में भाजपा की हार पर तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया की चुप्पी समझ से परे है। ऐसा नहीं की भाजपा ने केवल गुजरात में ही मेहनत की थी। भाजपा ने इन सभी जगह पर मेहनत में कोई कमी नहीं रखी है। पूरा प्रचार तंत्र झोंका है, यहाँ भी पीएम के नाम पर चुनाव लड़ा गया लेकिन फिर भी अपेक्षित नतीजे नहीं मिले। इस पर भी चर्चा होनी चाहिए।
गुजरात का जीत का सेहरा किसी के सर पर बाँधा जा रहा है तो हिमाचल दिल्ली एमसीडी की हार का ठीकरा किसी और के सर क्यों ? खैर मेनस्ट्रीम मीडिया तो इस पर कतई नहीं बोलेगा। एक चैनल पिछले सप्ताह से पहले बोला करता था वह भी अब खामोश है। ग़ालिब के शे'र की तरह "इक शमा थी दलीले सहर, सो वो भी खामोश है"
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