इसी साल अगस्त में अडानी ग्रुप ने NDTV में अप्रत्यक्ष रूप से 29 फीसदी हिस्सा खरीद लिया था। फिर बाकी की हिस्सेदारी खरीदने के लिए ओपन ऑफर का ऐलान किया था। इसके बाद से ही NDTV से रविश कुमार, प्रणय रॉय और राधिका रॉय कि विदाई की अटकले लगाईं जा रही थी। अब वह अटकले सही साबित हो गई हैं।
रविश कुमार का इस्तीफ़ा, प्रणय रॉय और राधिका रॉय के RRPR होल्डिंग प्रा लि के निदेशक पद से इस्तीफ़ा देने के बाद आया है, जिसकी पुष्टि NDTV ग्रुप की प्रेसीडेंट सुपर्णा सिंह की तरफ से की गई है।
खैर, अब जब NDTV पर भी कब्ज़ा हो गया है तो, NDTV की वह पहचान जिसके लिए वह जाना जाता, थी क्या वह बरकरार रह पाएगी? जिन मुद्दों को रविश उठाया करते थे, क्या वह मुद्दे अब उठ पाएंगे? रविश अकेले नहीं थे, उनके पीछे प्रणय रॉय चट्टान के तरह खड़े थे। कहते हैं, पैसो से ईंट पत्थरो से बना मकान तो खरीदा जा सकता है लेकिन घर परिवार नहीं। NDTV का शरीर तो किसी ने खरीद लिया लेकिन NDTV की आत्मा नहीं खरीद पाए, क्योंकि प्रणय रॉय और रविश कुमार ही तो NDTV की आत्मा थे।
आने वाले दिनों में NDTV में भी फ़िज़ूल के मुद्दों पर वहीँ शोर शराबा और हल्ला गुल्ला देखने को मिलेगा जो तक़रीबन हर चैनल पर देखने को मिलता है। रविश तो अपने सवाल यू ट्यूब या अन्य माध्यम से उठा ही लेंगे लेकिन प्राइम टाइम में वह जिन मुद्दों को जनता के सामने रखते थे उस चैनल पर अब वह शायद न मिले। अब NDTV पर भी बेरोज़गारी की बजाय चिड़ियाघर के मोर, बुलबुल और चीतों की गूँज सुनाई देगी।
बकौल रविश कुमार "जब बेटी विदा होती है तो वो दूर तक पीछे मुड़कर अपने मायके को देखती है, आज मैं इसी स्थिति में हूँ"। उन्होंने कहा की "इस वक़्त अपने संस्थान को लेकर कुछ ख़ास नहीं कहूंगा, क्योंकि भावुकता में आप तटस्थ नहीं रह सकते। NDTV में 26-27 साल गुज़ारे है। कई शानदार यादें है जो अब किस्सा सुनाने के काम आएगी"।
बिलकुल सही कहा रविश कुमार ने NDTV अब शायद किस्सा ही रह जाये। वह NDTV जो सत्ता से सवाल करती थी। अब सत्ता के सुर में सुर मिलाकर जुगलबंदी करेंगी। जिन लोगो ने NDTV की अधिकांश हिस्सेदारी खरीदी है, उनका सत्ता के साथ तालमेल जगज़ाहिर है। NDTV से रविश और प्रणय की विदाई महज़ एक चैनल से किसी की विदाई नहीं। बल्कि निष्पक्ष पत्रकारिता की विदाई कही जा सकती है।
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