अरावली कि नई व्याख्या ओर इसका भविष्य
विश्व की प्राचीनतम पर्वत श्रृंखला अरावली की नई परिभाषा जो सरकार ने तय की वह माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर ली है वह एक नयी चुनौती सारे योजनाकार व पर्यावरण रक्षकों के लिए बनेगी।
अरावली पहाड़ियों की परिभाषा के बारे में पर्यावरण मंत्रालय की एक समिति की सिफारिशें मंज़ूर हुई एवं इन सिफारिशों के अनुसार, जिस भी पहाड़ी की ऊंचाई आसपास की ज़मीन से 100 मीटर या उससे अधिक होगी, उसे तथा उसके ढलानों और आसपास के क्षेत्र सहित अरावली पहाड़ियों का हिस्सा माना जाएगा. यानि जो पहाड़ियाँ 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली है, वे मानवीय प्रयोग मसलन खानों व व्यावसायिक प्रयोग व निर्माण हेतु प्रयुक्त हो सकेगी।
सोचें की दो 100 मीटर वाली पहाड़ियां एक दूसरे किलोमीटर दो किलोमीटर की दुरी पर हैं और उन्हें जोड़ने वाली छोटी पहाड़ियों की श्रृंखला जो इस ऊंचाई वाली स्थिति में नहीं है, उनका कटान, खनन या गृह निर्माण के लिए हो सकेगा। इससे पर्वत श्रृंखला का श्रृंखलागत ढांचा तो समाप्त हो जायेगा या यों कहे पर्वत जो आपस में जुड़े है, उनकी निरंतरता समाप्त हो जाएगी व बिखरे हुवे पर्वत नजर आएंगे।
ज्ञात हो कि अरावली पर्वत कम ऊंचाई वाले पहाड़ है। इन पहाड़ों कि निरंतर श्रृंखला जो गुजरात के पालनपुर व हिम्मतनगर से आरम्भ हो, दिल्ली के रायसीना हिल तक है, उसकी निरंतरता समाप्त हो जाएगी व छितरायें पहाड़ ही नजर आएंगे ? इन पहाड़ों से कितनी ही नदियां, नाले व उन पर निर्भर जलाशय, बांध व झीलें है। इसके मूल स्वरुप में परिवर्तन से वर्षा जनित जल का बहाव व बहाव की दिशा भी बदलेगी जिसके गंभीर परिणाम होंगे। हम नहीं भूले कि दो बनास, खारी, गोमती, मैनाली, बेडच, सुखड़ी, कोठारी आदि नदियां के बहाव क्षेत्र का बदलना गंभीर होगा।
यह पर्वत माला अपने आप में अनेक वाइल्ड लाइफ के अभयारण्य का घर है। ये अभयारण्य गुजरात, राजस्थान व हरियाणा में हैं। इन अभ्यारण के जंगली जानवरों का आबादी क्षेत्र में आना एक समस्या है, पहाड़ियों की निरंतरता के अभाव में और समस्या और गंभीर होगी, मनुष्य व जानवरों का संघर्ष बढ़ेगा। पिछले दो दशक से उचित मानसून से पहाड़ियों की हरीतिमा बढ़ी है, परन्तु पहाड़ियों के व्यवसायिक प्रयोग से वन क्षेत्र फिर घटेगा।
अरावली पर्वत माला का लगभग 80 प्रतिशत क्षेत्र राजस्थान में है। इस पर्वत माला ने थार के मरुस्थल के फैलाव को रोके रखा है। हवा के प्रवाह, मानसून में वर्षा के भी ये कारक है।
अधिकांश रूप से राजस्थान में रचा बसा यह पर्वत राज्य को दो भागों में बांटता है, इसके दोनों ओर आबोहवा, वर्षा, खेती व हवामान अलग अलग है। अरावली पर्वत माला का क्षय पहले ही मानवीय आवश्यकताओं मसलन भवन निर्माण व कम ऊंचाई वाले पहाड़ों को समतल कर खेती आदि व खातेदारों द्वारा प्रयोग से त्रस्त है। माननीय सर्वोच्च अदालत के फैसले व सरकार द्वारा नियुक्त कमिटी की रिपोर्ट का अनुमोदन कहीं न कहीं भूल व गंभीर क्षति की ओर ले जाने वाले हैं। वैसे पर्वतों पर स्थित ऐतिहासिक महत्व के स्थान वाले पर्वत, रामसर क्षेत्र आदि इन परिवर्तन में शामिल नहीं हैं और वे यथावत रहेंगे पर फिर भी अरावली का क्षय गंभीर पर्यावरण चुनौती है।
Disclaimer: इस लेख में शामिल विश्लेषण व आकलन लेखक के विचार हैं।
#Aravalli #EnvironmentNews #SupremeCourt #RajasthanNews #UdaipurUpdates #AravalliHills #SaveAravalli #WildlifeCorridors #ClimateImpact #RajasthanEnvironment #GujaratNews #HaryanaNews #SustainableDevelopment
To join us on Facebook Click Here and Subscribe to UdaipurTimes Broadcast channels on GoogleNews | Telegram | Signal
