अज़ाँ आई, गजर बजे, सिहर हुई
लिहाफ में आँखें मूँद सोए कोई
अरे उठो अब तो.. आवाज़ रसोई से आई
रब का कुछ तो डर करो,
बच्चों का तो ख्याल करो
दिल में तुम्हारे दीन नही है
सुस्ती जिस्म में पुरखों की भरी है,
कूकर की सीटी से मेरे ख्वाबों की रेल रुकी है
ख्वाबों की गठर को बांध उठूँ अब,
चलो यारों वुज़ू करूँ अब,
खूंटी से ज़रा आज अचकन अचकाई
जानती हो जैसे आज समेटने की बारी मेरी आई
यारों में तो बहुत चहकते हो ...
बैठो आज पास मेरे ,पर रुको ज़रा ...
सिरहानों को सीधा कर लो
देखो रब की तस्वीर हुई है टेढ़ी
तुम भी सीधे हो कर सीधा कर लो
मदिरालय को अब भूल जाओ
शिवालय का, दीप जलाओ..
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