दीपावली के दीपक: तमस से तेज की यात्रा
लेखक: भगवान प्रसाद गौड़, उदयपुर
दीपक का स्वभाव है - प्रकाश देना। चाहे आँधियाँ हों, चाहे अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, दीपक जलने का साहस रखता है। उसका जीवन भले ही छोटा है, किंतु उद्देश्य महान है। वह स्वयं जलकर भी दूसरों के लिए रोशनी देता है। इसी तरह चंदन का स्वभाव है स्वयं घिसकर भी दूसरों को खुशबू देना। ये दोनों हमें जीवन का सार सिखाते हैं कि सच्चा सुख दूसरों को सुख देने में है, सच्चा तेज स्वयं को जलाने में है।
जब हम रोज दीपक जलाते हैं, तो यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि आत्मसंस्कार का प्रतीक है। हर दिन जलाया गया दीप हमें यह याद दिलाता है कि जीवन की सबसे बड़ी सुंदरता देने में है। सबसे बड़ी शक्ति सहने में है। धीरे-धीरे व्यक्ति उस दीपक की तरह तेजस्वी हो जाता है जो न केवल बाहर का अंधकार मिटाता है, बल्कि भीतर के भ्रम और नकारात्मकता को भी समाप्त करता है।
फिर भी न जाने क्यों आज का मनुष्य इसका अर्थ भूल गया है। वह दीप तो जलाता है, पर भीतर द्वेष, ईर्ष्या और स्वार्थ का अंधकार रखता है। हम दूसरों के दीप बुझाने में आनंद खोज लेते हैं, जबकि किसी और का दीप बुझाने से अपना ही प्रकाश कम होता है। यही कारण है कि भौतिक समृद्धि के बावजूद मन का अंधकार मिट नहीं पाता।
दीपावली केवल घर सजाने या दिखावे के दीये जलाने का पर्व नहीं है। यह आत्मा को प्रकाशित करने का अवसर है। यह हमें सिखाती है कि चाहे जीवन कितना भी कठिन क्यों न हो, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी प्रतिकूल हों दीपक की तरह जलते रहो। उसकी लौ हर झोंके के साथ थरथराती है, पर बुझती नहीं। यही उसकी प्रतिबद्धता है। यही उसकी साधना है। दीपक की तरह ही हमें भी जीवन की चुनौतियों के बीच अपने उद्देश्य की ज्योति बनाए रखनी चाहिए।
आज जरूरत है ऐसे दीप जलाने की, जो केवल दीवारों को नहीं, दिलों को रोशन करें। एक दीप असहाय के घर में जले, ताकि उसे आशा मिले। एक दीप सैनिकों के नाम का जले, ताकि हमारी स्वतंत्रता की रक्षा करने वालों का आभार व्यक्त हो। और एक दीप अपने भीतर जलाएँ -अहंकार, क्रोध और ईर्ष्या को मिटाने के लिए। जब भीतर का अंधकार समाप्त होगा, तभी बाहर का प्रकाश अर्थपूर्ण होगा।
दीपावली हमें केवल उत्सव नहीं, बल्कि जीवन जीने की प्रेरणा देती है। यह हमें याद दिलाती है कि प्रकाश केवल तभी सुंदर है जब वह निरंतरता और समर्पण से जलाया जाए। दीपक की प्रतिबद्धता हमें सिखाती है कि संघर्षों के बीच भी हारना नहीं, बुझना नहीं। क्योंकि जब एक दीप जलता है, तो सैकड़ों अन्य दीपों को प्रज्वालित रहने की प्रेरणा बनता है।
इस दीपावली, केवल घर में नहीं, अपने भीतर भी दीप जलाइए। जो कभी न बुझे, जो हर अंधकार को उजाले में बदल दे। यही दीपावली का सच्चा अर्थ है - जलना, देना और रोशन होना।
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