बाहों में भरकर तुझे चुम लूँ ज़िन्दगी, आ तुझे जी लूँ, ज़िंदगी...

बाहों में भरकर तुझे चुम लूँ ज़िन्दगी, आ तुझे जी लूँ, ज़िंदगी...

 
बाहों में भरकर तुझे चुम लूँ ज़िन्दगी, आ तुझे जी लूँ, ज़िंदगी...
By: Farhat Hussain

थम जा, ठहर जा... रुक जा ज़रा,
तुझे जी लूँ, ज़िंदगी।
 

बरसों से घर के अनछुए कोनो को संवार लूँ,
अलमारी की तहों में... दबे लिफाफों सी,
आज कुछ पुरानी यादों को... जी लूँ, ज़िंदगी।

छत की मुँडेरें, जो रोज़ ताकती थीं ,
मुझे आते जाते, कार-ए-जहां करते ,
देखूं परिंदों को आसमान में आते जाते, 
उन मुंडेरों से सुहानी शामों को निहारूं।

थम जा, ठहर जा... रुक जा ज़रा,
तुझे जी लूँ, ज़िंदगी। 

वो शजर जिसने तपिश-ए-जहां में छाँव दी,
उस शजर को सँवारा तो शाखें फिर से हरी हुईं।
वो कलियाँ अपने चमन की, न जाने कब गुल हुईं,
आज जब शिद्दत से निहारा उन्हें, तो जाना मुकम्मल हुईं। 

जम सा गया था...कार-ए-जहां में,
थम जाऊं थोडा... पिघल जाऊं थोड़ा,
 बाहों में भरकर तुझे चुम लूँ, ज़िन्दगी।

थम जा, ठहर जा... रुक जा ज़रा,
तुझे जी लूँ, ज़िंदगी।  

अरमानों की रक़ाबत ने हैरान कर दिया,
कुछ हसरतें कम हो जाएं तो हम इन्सां हो जाएं,
फिर संभल जाएं तो इन्सां हो जाएं।

अपने आशियाँ के लुत्फ़ समझा है आज,
आओ अपने आशियाँ को बहिश्त कर लूँ, ज़िन्दगी। 

थम जा, ठहर जा... रुक जा ज़रा,
तुझे जी लूँ, ज़िंदगी।

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