बीते को जीता रहने दे...सुर कोई अपना आलाप | Power of Individuality
कलमकार की कलाकारी,
दुनिया की है रीत निराली,
समझ ना आए रीत ये सारी...
कुछ लफ़्ज़ों की कर हेराफेरी,
लिख डाली बुढ़िया की जवानी...
बुड्डा था पर गूड बहुत था,
लाली लगा कर दे डाली गाली।
बीते को जीता रहने दे,
सुर कोई अपना अलाप...
देख फिर तू उसका ताप !!
जो भी हो, तेरा अपना हो,
किसी और का सपना ना अपना हो...
छोड़ ये मिलावटी गाना,
छेड़ कोई आपना तराना।
चंद सिक्कों की झंकार की खातिर...
ऐसे तो बन ना तू माहिर !!
शायर के दिल की थी ये रुबाई,
खुद टूट कर जो थी उसने बनाई...
فرحت
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