आज फिर से मैंने अपनी कलम उठाई है न जाने क्यों मन में उठा गुबार बार-बार यही समझना चाहता है कि मैं कल भी अपने सफ़र में थी और मैं आज भी अपना सफर हंसते मुस्कुराते तय कर रही हूं ,फर्क जिंदगी ने बस इतना समझा दिया है कि कल तक मैं लोगों की तलाश में थी, आज सिर्फ अपने आप को तलाश कर रही हूं। मेरा आज मेरा वर्तमान कल भूत हो जाएगा भूत ना हुआ तो अवधूत हो जाएगा।
मुझे लगता है आज सिर्फ मैं नहीं मुझे जैसी हर नारी के मन की व्यथा कुछ ऐसी ही होगी, फर्क सिर्फ इतना है मैं व्यक्त कर रही हूं कुछ मन में दबा रही है। क्यों होता है यह बचपन से पचपन का सफर इतना अलग क्यों बेफिक्री से फिक्र करना सीख जाते हैं हम।
मैंने मेरी संस्कृति, सभ्यता को समझा लोगों को जाना, लोगों को परखा, मां-बाप का हौसला और अभिमान बनी, कल तक मैं उनकी पहचान से थी, आज मैं उनकी पहचान से खुद को बना पाई, कल तक मुझे उन्होंने उंगली पड़कर चलाया, आज मैं उनका हाथ थामे हुए हूं, आज की आधुनिकता में उनका भरोसा बनी हुई हूं, मेने यही जाना मेरे परिवार से ही मेरी जिंदगी है, और इस जिंदगी को, मेरे परिवार को, मैं बार-बार गले लगाना चाहती हूं।
यह मैं समझती तो थी कि परिवर्तन संसार का नियम, लेकिन कुछ बातें समझ में तभी आती हैं जब वह हमें अपने साथ उस दौर में लेकर जाती हैं। मैंने सफर का एक पड़ाव पार कर लिया है, अब यह बचपन वयस्क हो गया है लोगों की नजरों में, लेकिन मेरा दिल जानता है और यही कहता है, मैं यह बचपन उम्र के हर पड़ाव पर जीना चाहती हूं अपनों का साथ चाहती हूं।
इस सफर के दूसरे पड़ाव में मुझे एक हमसफर मिला, जिंदगी कुछ अलग सी लगने लगी, कुछ नए रिश्ते, नया घर, नई भावनाएं मन में आई, जिंदगी यूं ही खूबसूरत से निकलने लगी। मेरी ख्वाहिशें कभी दबी कभी पूरी हुई, मेरे सपने कभी खोए कभी पाए, कभी चेहरे पर मुस्कुराहट रही कभी दर्द भरे लम्हात थे, कभी नासमझे इशारे तो कभी मद्धम बरसात थी। मेरी राहों में उलझने थी तो साथ ही उनसे निकलने की कोशिशें, मैं मझधार में भी गई और किनारा भी मिला।
मैं और मेरा मन………………………………………………………. अंत में यही कहता है मैं कोमल हूं कमजोर नहीं
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